भ्रामरी प्राणायाम प्रक्रिया
ध्यान की अवस्था में बैठें। अपनी गर्दन और पीठ को सीधा रखें और अपनी आंखों को बंद करें। अपने अंगूठे की मदद से दोनों कानों को बंद करें ताकि बाहरी आवाज से आपको कोई समस्या ना हो। अपनी तर्जनी अंगुली माथे पर रखें और बाकी बची तीन उंगलियों को अपनी आंखों पर रखकर आंखें बंद करें।
सबसे पहले धीरे-धीरे सांस छोड़ें। फिर जितना संभव हो उतना अधिक हवा श्वास में भर लें और फिर एक मक्खी की तरह भिनभिनाहट की आवाज के साथ सांस धीरे-धीरे छोड़ें। एक बार भिनभिनाहट के आवाज के साथ सांस छोड़ना की प्रक्रिया एक चक्र या भ्रामरी प्राणायाम का चक्र कहलाता है। अपना ध्यान इस आवाज पर केंद्रित करें।
अवधि: इस प्राणायाम के 10-12 चक्र का अभ्यास करें।
श्वास की गति: जितना संभव हो उतनी हवा श्वास में अंदर लें और फिर धीमी सी आवाज निकालते हुए उसे छोड़ें।
सावधानियां
अपनी आवाज धीमी और मधुर रखें।
लाभ
भ्रामरी प्राणायाम मानसिक चंचलता या अस्थिरता को दूर करता है और तनाव, क्रोध, चिंता, कुंठा, अवसाद, नींद की कमी, भ्रम, आलस्य और माइग्रेन पर काबू पाने में मदद करता है। यह उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और गले की बीमारियों को नियंत्रित करता है और शरीर को युवा रखने में भी मदद करता है।