मम्मी तुरंत बोली – “बिल्ली सारा दूध पी जाया करेगी”।
“पर मम्मी मेरे सभी दोस्तों के पास पालतू जानवर है, मुझे भी एक चाहिए”।
मम्मी ने बात बदलते हुए कहा – “जाओ, जल्दी से जाकर पार्क में अपने दोस्तों के साथ खेल लो, वरना अँधेरा हो जाएगा”।
“मैं अभी जाता हूँ” टिक्कू खुश होते हुए बोला और बिल्ली की बात भूल कर पार्क की ओर दौड़ पड़ा।
थोड़ी देर बाद जब वह पार्क से लौटकर आया तो मम्मी कोई किताब पढ़ रही थी।
टिक्कू बोला – “मेरे दोस्त कह रहे हैं कि मैं कुत्ता पाल लूँ”।
बिल्ली से भी ज़्यादा मम्मी कुत्ता पालने की बात सुनकर घबरा गई।
वह तुरंत बोली – “कुत्ते को सुबह शाम सैर कराने के लिए बाहर ले जाना पड़ेगा। वह सारी रात भौंकेगा तो मैं ठीक से सो भी नहीं पाऊँगी”।
टिक्कू को मम्मी की बात सही लगी।
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वह कुछ देर बाद कुछ देर सोचने के बाद बोला – “हम खरगोश पाल लेते है”।
“खरगोश!” मम्मी ने टिक्कू की तरफ़ आश्चर्य से देखते हुए पूछा।
“सफ़ेद रंग के प्यारे-प्यारे खरगोश कितने सुंदर लगेंगे” कहते हुए टिक्कू के चेहरे पर चमक आ गई।
पर यहाँ भी मम्मी का जवाब पहले से ही तैयार था।
वह तुरंत बोली – “तुम्हें पता है, गाजर के साथ-साथ खरगोश तुम्हारे जूते, मोज़े, कपड़े और किताबें भी चबा जाएगा”।
यह सुनकर टिक्कू उदास हो गया और पढ़ाई करने बैठ गया।
मेज पर पड़ी किताबों को तो वह सिर्फ़ जैसे देख रहा था। उसके दिमाग में लगातार पालतू जानवर घूम रहे थे। वह सोच रहा था कि कौन सा जानवर पाले।
तभी अचानक उसे कुछ याद आया और वह दौड़ते हुए मम्मी के पास जाकर बोला – “हम कछुआ पाल लेते है। वह एक कोने में चुपचाप बैठा रहेगा”।
मम्मी हमेशा की तरह बोली – “क्यों चुपचाप बैठा रहेगा। अरे, वह धीरे-धीरे सारे घर में चलता रहेगा और उसे ढूँढना तो बहुत ही मुश्किल काम होगा”।
टिक्कू यह सुनकर चुपचाप अपने कमरे में चला गया।
तभी उसके मामा का फ़ोन आया, जो उसे बहुत प्यार करते थे।
टिक्कू ने जब उनसे फ़ोन पर बात करी तो उन्हें मम्मी की बाते बताते हुए वह बहुत दुखी हो गया।
उसके मामा हँसते हुए बोले – “तुम बिल्कुल परेशान मत हो। मैं कल तुम्हारे लिए एक बढ़िया सा गिफ़्ट लेकर आऊंगा”।
“सच…” कहते हुए टिक्कू मुस्कुरा दिया।
मामा बोले – “मम्मी को सुबह तक इस बारे में कुछ मत बताना। यह उनके लिए भी एक सरप्राइज गिफ़्ट होगा”।
टिक्कू यह सुनकर बहुत खुश हो गया और हँस पड़ा।
अगले दिन इतवार था इसलिए उसने देर रात तक मम्मी से ढेर सारी बातें की और एक जादूगर की कहानी भी सुनी।
यह ऐसा पहला इतवार था, जब सुबह टिक्कू को उठाने के लिए मम्मी को कोई मेहनत नहीं करनी पड़ी। वरना हर इतवार को उनका चिल्ला-चिल्ला कर गला दुख जाता था और टिक्कू बस पाँच मिनट… पाँच मिनट करके चादर ओढ़े बिस्तर पर पड़ा रहता था।
नहा धोकर तैयार होकर टिक्कू मामा का रास्ता देखने लगा।
तभी डोर बेल बजी।
मम्मी दरवाज़ा खोलने के लिए जाती, इससे पहले ही टिक्कू ने दौड़ कर दरवाजा खोल दिया।
सामने मामा खड़े मुस्कुरा रहे थे।
टिक्कू ने मम्मी की ओर देखा।
मम्मी ने घबराकर कुर्सी का हत्था पकड़ लिया था।
मामा यह देखकर जोरों से हँस पड़े और अंदर आ गए।
“यह क्या है?” मम्मी ने थूक निगलते हुए मामा से पूछा।
मामा ने अपने दाएँ कंधे की ओर देखा, जिस पर एक छोटा सा बंदर का बच्चा बैठा हुआ था।
“यह टिक्कू का गिफ़्ट है”।
मम्मी ने बन्दर के बच्चे को घूरते हुए कहा – “गिफ़्ट… पर ये बंदर”!
“हाँ, तुम्हें यह तो कुत्ता, बिल्ली, खरगोश, कछुआ… कोई भी पसंद नहीं है इसलिए मैं बंदर ले आया हूँ”।
“क्यों टिक्कू तुम्हें पसँद है ना?” मामा ने मुस्कुराते हुए पूछा।
टिक्कू तो खुशी के मारे ताली बजा-बजा कर हँसने लगा और बोला – “मुझे बहुत, बहुत और बहुत पसंद है”। और यह कहते हुए वह डाइनिंग टेबल से एक केला उठा कर ले आया और बन्दर के बच्चे को दिया।
बंदर के बच्चे ने तुरंत केला पकड़ लिया और छिलका छील कर खाने लगा।
मामा और टिक्कू ठहाका मारकर हँस पड़े और मम्मी, वह सोच रही थी कि उन्होंने शुरुआत में ही बिल्ली का बच्चा लाने के लिए क्यों मना कर दिया था।