अंशु की बा: कस्तूरबा गांधी के जीवन से प्रेरित कहानी

अंशु की बा: कस्तूरबा गांधी के जीवन से प्रेरित कहानी

“मुझे तो समझ ही नहीं आता कि तुम इतनी दब्बू क्यों हो?” मनीषा ने गुस्से से कहा।

“हाँ, जो भी आता है, तुम्हें चार बातें सुना कर चला जाता है” अंकुर ने तुरंत कहा।

अंशू सिर झुकाये अपने दोस्तों की बातें चुपचाप सुन रही थी।

“अब कुछ बोलोगी भी या नहीं?” मनीषा ने तेज आवाज़ में कहा।

“मुझे लगता है कि उन सबकी बातें सही होती है” अंशू ने धीरे से कहा।

“चलो, मान लिया कि उनकी बातें सही होती है पर कभी सोचा है कि तुम हमेशा गलत कैसे हो सकती हो?” अमित ने पूछा।

तभी सामने से रोहित आता दिखा। हमेशा की तरह वह कुछ सोचता हुआ चला आ रहा था।

उसे अपने सामने से जाते देख मनीषा ने पूछा – “अभी तो इंटरवल खत्म होने में दस मिनट बाकी है तुम क्लास में क्यों चले जा रहे हो”?

“अरे, अभी अभी पता चला है गाँधी जयंती पर हमारे यहाँ बहुत सारे कार्यक्रम होने जा रहे है। इसलिए सभी अब्छों को ऑडिटोरियम में बुलाया गया है। मैं सोच रहा हूँ कि महात्मा गाँधी के रोल के लिए अपना नाम लिखवा दूँ”।

रोहित की बात सुनते ही अंशू को छोड़कर सारे बच्चे कूदकर खड़े हो गए और बोले – “हम भी चलेंगे”।

“अब तुम्हारे लिए क्या अलग से निमंत्रण पत्र छपवा दे?” रोहित ने अंशू की तरफ़ देखते हुए पूछा।

अब अंशू कैसे कहे कि सबके सामने बोलने में उसे कितनी झिझक महसूस होती है पर फ़िर बिना कुछ कहे उस ने अपना टिफ़िन बॉक्स उठाया और सबके साथ चल दी।

सभी बच्चे ख़ुशी ख़ुशी ऑडिटोरियम की तरफ़ दौड़े दौड़े जा रहे थे।

वहां पहुँचकर पता चला कि नाटक के साथ साथ नृत्य, गीत, निबंध, रस्सी कूद और दौड़ भी थी।

सभी बच्चे अपनीअपनी पसंद के हिसाब से अपना नाम लिखवा रहे थे।

मनीषा, रोहित, और अंकुर ने भी नाटक में तुरंत अपना नाम लिखवा दिया।

तभी हिंदी की टीचर मिश्रा मैडम बोली – “अंशू, तुम क्या करोगी”।

अंशू सकपका गई और धीरे से बोली – “जो आप कहे”।

“ठीक है, तुम कस्तूरबा गाँधी का रोल करना”।

मिश्रा मैडम के इतना कहते ही आसपास खड़े बच्चे अंशू की तरफ़ देखने लगे और अंशू के चेहरे पर तो पसीना छलक आया।

मनीषा आगे बढ़कर बोली – “मैडम, आप तो जानती ही है कि अंशू किसी के सामने ठीक से बोल नहीं पाती है इसलिए मैं ये रोल कर लेती हूँ”।

पर मिश्रा मैडम ने मनीषा की बात को अनसुनी करते हुए कहा – “अगर स्कूल में बोलना नहीं सीखेगी तो कहाँ सीखेगी? तुम हर जगह तो उसकी मदद करने के लिए तो खड़ी नहीं रहोगी”।

मिश्रा मैडम की बात सुनकर सभी बच्चे चले गए पर अंशू अभी भी उनके सामने चुपचाप खड़ी थी।

“क्या हुआ?” मिश्रा मैडम ने पूछा।

“मुझे लगता है कि मनीषा सही कह रही है वह बहुत समझदार और अच्छी है। आप उसी को यह रोल कर लेने दीजिये।” अंशू ने एक ही साँस में कहा।

“अंशू, क्या तुम समझदार और अच्छी नहीं हो? जब तक तुम अपने अंदर आत्मविश्वास नहीं लाओगी तो खुद को हमेशा दूसरों से कमतर ही आँकती रहोगी।” मैडम ने प्यार से अंशू का हाथ पकड़ते हुए कहा।

अंशू की आँखें भीग गई।

वह रूंधे गले से बोली – “पर मुझे कस्तूरबा गाँधी के बारें में कुछ पता नहीं है”।

“लाइब्रेरी पीरियड में तुम जाकर उनके बारें में लिखी हुई पुस्तकें पढ़ो और जानकारी एकत्रित करो। इससे तुम उनके चरित्र को सहज भाव से निभा सकोगी”।

मिश्रा मैडम की बात सुनकर पहली बार अंशू को लगा कि वह भी कुछ कर सकती है।

सारे दिन वह सोचती रही कि वह नाटक जरूर करेगी पहली बार किसी ने उस पर इतना भरोसा किया है।

लाइब्रेरी पीरियड में वह कई किताबे लेकर बैठ गई जिनमें कस्तूरबा गांधी के बारें में जानकारी थी।

वह जितना कस्तूरबा गाँधी के बारे में पढ़ रही थी उतनी ही ज़्यादा उसके मन में उनके प्रति श्रद्धा उमड़ रही थी।

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उसने पढ़ा कि जैसे महात्मा गांधी को पूरा देश बापू के नाम से जानता है, उसी तरह गाँधी जी की पत्नी और एक समाज सेविका होने के नाते सभी उनका बहुत सम्मान करते थे और उनके गंभीर और स्थिर स्वभाव के चलते धीरे धीरे सभी प्यार से उन्हें ‘बा’ कहकर पुकारने लगे क्योंकि बा का अर्थ गुजराती में मां होता है।

तभी उसकी ही कक्षा का छात्र दीपेश आया और चिल्लाते हुए बोला – “चलो, उठो यहाँ से, मुझे पँखे के नीचे बैठकर पढ़ना है”।

अंशू डर गई और जैसे ही अपनी किताबें समेटने लगी – किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया।

अंशू ने हड़बड़ाते हुए देखा तो सामने बा बैठी हुई थी।

उन्होंने कहा – “इसे मना कर दो। गलत बात के आगे कभी नहीं झुकना चाहिए”।

और बा की बात सुनते ही ना जाने कहाँ से अंशू में हिम्मत आ गई और उसने दीपेश से कहा – “मैं अपनी जगह से नहीं हटूंगी”।

दीपेश का मुँह गुस्से से लाल हो गया। आज तक उसने अंशू को जब भी कुछ कहा था उसने डरते हुए तुरंत मान लिया था और आज सीधे मना कर दिया।

वह दाँत पीसते हुए बोला – “मैं तुम्हारे हाथ तोड़ दूँगा”।

“मैं तुम्हारी शिकायत मिश्रा मैडम से कर दूँगी” अंशू ने बिना डरे हुए जवाब दिया।

दीपेश ने अंशू की ओर देखा और चुपचाप जाकर दूसरी कुर्सी पर बैठ गया।

अंशू ने मुस्कुराते हुए बा की तरफ़ देखते हुए कहा – “आज पहली बार मैंने किसी की गलत बात को मानने से मना किया है”।

बा मुस्कुराते हुए बोली – “तुम्हें पता है कि मैं सिर्फ़ तेरह वर्ष की थी जब मेरी शादी हो गई थी और इस कारण मैं कभी विद्यालय जाकर पढ़ नहीं सकी। मुझे गाँधी जी ने घर पर ही पढ़ाया था…”

“आपका मतलब बापू ने…” अंशू ने आश्चर्य से उनकी बात के बीच में ही पूछा।

“हाँ, मुझे तो घर पर होने वाली तैयारियों से पता चला कि मेरा विवाह होने वाला है। सबने कहा अच्छे-अच्छे कपड़े पहनने को मिलेंगे, ढेर सारे बाजे बजेंगे, खूब सारी मिठाइयाँ खाने को मिलेगी और तो और मैं बापू से लगभग छह महीने बड़ी भी थी।” कहते हुए बा ठहाका मारकर हँस पड़ी।

अंशू हँसते हुए बोली – “और मैंने पढ़ा है कि बचपन में आप लोगो में ‘कुट्टी’ भी हो जाती थी और बातचीत भी बंद हो जाती थी”।

“बिलकुल, क्योंकि मैंने कभी किसी कि भी गलत बात का समर्थन कभी नहीं किया और फ़िर वह चाहे बापू ही क्यों ना थे”।

अंशू सकुचाते हुए बोली – “पर बड़े होने पर तो आपने अफ़्रीका से लेकर चम्पारण तक हमेशा बापू का साथ दिया। एक जगह तो लिखा है कि आप एक-एक झोपड़ी में जाकर वहाँ की महिलाओं से मिलती थी और वे इतनी गरीब थी कि उनके पास पहनने को पूरी साड़ी तक नहीं होती थी”।

अंशू की बात सुनकर बा का चेहरा उदास हो गया।

कुछ देर रूककर उन्होंने कहा – “और फ़िर इसलिए मैंने कभी चरखा चलाना नहीं छोड़ा।”

“और तुम्हें पता है कि एक बार मैं चंपारन के सत्याग्रह के समय ही एक गाँव में दवा बाँटने गई थी तो अंग्रेज़ों ने मेरी झोपड़ी जलवा दी थी और मेरी उसी झोपड़ी में कई बच्चे पढ़ते भी थे” बा ने कुछ सोचते हुए कहा।

अंशू के चेहरे पर परेशानी के कई भाव एक साथ आ गए। वह चिंतित स्वर में बोली – ” तो फ़िर आप कहाँ रही थी और उतने दिन वे बच्चे पढ़ भी नहीं पाए होंगे।”

“नहीं, मैंने कभी किसी भी परिस्तिथि से हार नहीं मानी। मैंने सारी रात जागकर काम किया और घास की एक दूसरी झोपड़ी तैयार कर ली”।

“काश, मैं भी आपके जैसी बन सकती” अंशू ने बा की तरफ़ देखते हुए कहा।

“उसकी शुरुआत तो तुमने आज से ही कर दी है” बा ने हँसते हुए कहा।

“मैंने… कैसे!” अंशू ने आश्चर्य से कहा।

“वो देखो” कहते हुए बा ने एक ओर इशारा किया जहाँ पर दीपेश एक कोने में बैठा चुपचाप कोई पुस्तक पढ़ रहा था।

अंशू खिलखिलाकर हँस दी।

“यहाँ बैठकर हँस रही हो और उधर हिंदी का पीरियड शुरू होने वाला है”।

अंशू ने हड़बड़ाकर देखा तो सामने मनीषा खड़ी हुई थी।

“तुम… बा कहाँ गई” अंशू ने इधर उधर देखते हुए पूछा।

“ओह! तो इसका मतलब तुम उनके बारें में पढ़ते पढ़ते यहाँ सो गई थी” मनीषा मुस्कुराते हुए बोली।

अंशू हँस दी। बा के बारें में पढ़ने के बाद उसे इतना अच्छा लगा था कि वह आँखें बंद करके उनके बारें में सोचने लगी थी और शायद उसी बीच उसकी आँख लग गई थी।

वह मनीषा के साथ अपनी कक्षा की ओर जाते हुए बोली – “मुझे बा के बारें में पढ़कर बहुत अच्छा लगा और अब नाटक में, मैं उनका चरित्र पूरे आत्मविश्वास के साथ निभाऊंगी”।

“मेरे ख्याल से तुम रानी लक्ष्मीबाई का रोल और अच्छे से कर पाओगी” पीछे से दीपेश की आवाज़ आई।

अंशू और मनीषा ने एक दूसरे की ओर देखा और ठहाका मारकर हँस पड़े पर अंशू समझ नहीं पा रही थी कि अगर वो सपना था तो दीपेश को उसने कब मना कर दिया था।

~ अंशु की बा – मंजरी शुक्ला

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