विरूपाक्ष महादेव मंदिर, बिलपांक, रतलाम

विरूपाक्ष महादेव मंदिर, बिलपांक, रतलाम

Name: भूल भुलैया वाला शिव मंदिर | विरुपाक्ष महादेव मंदिर (Virupaksha Temple Bilpank)
Location: 64GV+FPG, Bilpank, Madhya Pradesh 457441 India
Bilpank is a small village located on the National Highway 79, about 18 km south-west of Ratlam, in Madhya Pradesh
Deity: Lord Shiva
Affiliation: Hinduism
Completed: Said to be 1,000 years old temple
Constructed By: Paramara dynasty

मध्य प्रदेश के रतलाम जिले में एक अनूठा शिव मंदिर है, जिसे “भूल भुलैयां वाले शिव मंदिर” के नाम से भी जाना जाता है। जिले के बिलपांक गांव में स्थित इस मंदिर का नाम विरूपाक्ष महादेव मंदिर है।

मंदिर की स्थापना मध्ययुग से पहले, परमार राजाओं ने की थी और भगवान भोलेनाथ के 11 रुद्र अवतारों में से पांचवें रुद्र अवतार के नाम पर इस मंदिर का नाम विरूपाक्ष महादेव मंदिर रखा गया। मंदिर के चारों कोनों में चार मंडप बनाए गए हैं जिसमें भगवान गणेश, मां पार्वती और भगवान सूर्य की प्रतिमाओं को स्थापित किया गया है।

मंदिर को भूल भुलैयां वाला शिव मंदिर इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें लगे खंभों कौ एक बार में सही गिनती करना किसी के बस की बात नहीं है। सभी 64 खंभों पर की गई नक्काशी देखने योग्य है।

इस प्राचीन मंदिर के अंदर 34 खंभों का एक मंडप है और सभी चारों कोनों पर खंभों की गिनती 4 – 4 बनती है जबकि 8 खंभे अंदर गर्भगृह में हैं। ऐसे में एक बार में इन खंभों कौ सही गिनती करना मुश्किल है।

मंदिर में 5.20 वर्गमीटर के गर्भगृह में पीतल की चादर से आच्छादित 4.4 मीटर परिधि वाली जलधारी व 90 सैंटीमीटर ऊंचा शिवलिंग स्थापित है। 64 स्तम्भ वाले सभागृह में एक स्तम्भ मौर्यकालीन भी है। यहां 75 वर्षों से हर शिवरात्रि पर महारुद्र यज्ञ होता है जिसमें खीर का प्रसाद ग्रहण करने दूर-दूर से बड़ी संख्या में निःसंतान दम्पति आते हैं।

मंदिर के सभा मंडल में नृत्य करती हुई अप्सराएं वाद्य यंत्रों के साथ नजर आती हैं। मुख्य मंदिर के आसपास मौजूद सहायक मंदिरों में भी कई सुंदर तथा प्राचीन प्रतिमाएं देखने को मिलती हैं। जैसे कि हनुमान जी की ध्यानस्थ प्रतिमा, जलाधारी व शिव पिंड से लेकर विष्णु भगवान की गरुड़ पर विराजमान प्रतिमा।

विरूपाक्ष महादेव मंदिर का इतिहास:

मंदिर के पुजारी कन्हैयालाल शर्मा बताते हैं कि इस मंदिर के निश्चित निर्माण संबंधी प्रमाण तो अब तक उपलब्ध नहीं हो पाए हैं, लेकिन 1964 ई. में बिलपांक में ही खोदाई के दौरान प्राप्त एक शिलालेख इस तथ्य की पुष्टि करता है कि इस मंदिर का जीर्णाेद्धार संवत 1198 में गुजरात के चक्रवर्ती राजा सिद्धराज जयसिंह द्वारा मालवा राज्य को फतह कर जाते समय किया गया था। कई श्रद्धालुओं इसे 13वां ज्योतिर्लिंग भी मानते हैं। 64 स्तंभ (खंभों) पर मंदिर बना हुआ है और मान्यता है कि कोई इनको गिन नहीं पाता है। यहां पर लंबे समय से महाशिवरात्रि पर यज्ञ का आयोजन होता आ रहा है। निसंतान दंपती को प्रसाद के रूप में दूध की खीर दी जाती है। इसको ग्रहण करने से कई दंपतियों की मनोकामना पूर्ण हुई है। हिमाचल, अरुणाचल सहित देश के अनेक हिस्सों से श्रद्धालुओं यहां आते हैं।

बताया जाता है खीर का प्रसाद ग्रहण करने के बाद जब महिलाओं को संतान प्राप्त हो जाती है

विशेषता:

विरुपाक्ष महादेव मंदिर परमार, गुर्जर, चालुक्य (गुजरात) की सम्मिश्रित शिल्पशैली का अनुपम उदाहरण है। मंदिर का शिल्प सौंदर्य व स्थापत्य उस काल की शिल्पशैली के चरमोत्कर्ष पर होने का परिचय भी देता है। मंदिर में गर्भ गृह, अर्द्ध मंडप, सभा मंडप निर्मित है। सभा मंडप की दीवारों पर विभिन्ना वाद्य यंत्रों के साथ नृत्यांगनाओं को आकर्षक मुद्राओं में दर्शाया गया है।

सभा मंडप में स्थापित मौर्यकालीन स्तंभ इस बात का प्रमाण देता है कि यह मंदिर मौर्यकाल में भी अस्तित्व में था। स्तंभ पर हंस व कमल की आकृतियां बनी हुई हैं। मध्य में मुख्य मंदर के चारों कोनों में चार लघु मंदिर है। पंचायतन शैली के इस मंदिर में जैन, सनातन, बौद्ध, मुस्लिम शिल्पकला का बेहतर सम्मिश्रण नजर आता है। खोदाई के दौरान प्राप्त शिलालेख की शब्द रचना तत्कालीन चक्रवर्ती कवि जैनाचार्य श्री श्रीपाल ने की थी। शिलालेख पर शब्द टंकन गंगाधर ब्राह्मण नामक शिल्पी ने किया था।

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