हिन्द की चादर: सिखों के नौवें गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी विश्व के एकमात्र ऐसे धार्मिक महापुरुष हुए हैं जिन्होंने किसी दूसरे धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर किए। इनका प्रकाश श्री गुरु हरगोबिंद साहिब के गृह में 1621 ई. को माता नानकी जी की कोख से गुरु के महल अमृतसर साहिब में हुआ। ये बचपन से ही वैराग्य की प्रतिमूर्ति थे। एकांत में घंटों प्रभु की भक्ति में लीन रहते।
हिन्द की चादर: श्री गुरु तेग बहादुर
पहले इनका नाम त्याग मल्ल था परंतु करतारपुर साहिब गुरु हरगोबिंद साहिब जी के साथ मुगलों की हुई लड़ाई इन्होंने अपनी तलवार के ऐसे जौहर दिखाए कि गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने खुश होकर इनका नाम त्याग मल्ल जी से बदलकर (गुरु) ‘तेग बहादुर’ रख दिया।
बचपन से ही इनके द्वार पर जो भी कुछ मांगने के लिए आता वह खाली हाथ नहीं जाता था। इनके पास जो भी होता वह गरीबों को दे देते। इनके बड़े भ्राता बाबा गुरदित्ता जी की शादी के समय इनके लिए बहुत ही सुंदर वस्त्र तथा गहने बनाए गए, परंतु एक जरूरतमंद ने जब आपके कपड़ों की ओर लालसा भरी निगाहों से देखा तो इन्होंने गहने व कीमती कपड़े उसे दे दिए।
गुरु जी की शादी लाल चंद सुभिखिया की बेटी (माता) गुजरी जी से जालंधर के निकट करतारपुर साहिब में हुई।
गुरु हरगोबिंद जी के बाद तेग बहादुर जी के भतीजे गुरु हरि राय जी को गुरुगद्दी मिली तथा उनके बाद इनके पौत्र गुरु हरिकृष्ण जी सिखों के आठवें गुरु बने। गुरु हरिकृष्ण जी ने अपने दादा गुरु तेग बहादुर जी को गुरु गद्दी दी। गुरु तेग बहादर जी ने कई वर्ष बाबा बकाला नगर में घोर तपस्या कौ। यहां पर मक्खन शाह लुबाना “गुरु लाधो रे” कहते हुए इन्हें गुरु के रूप में दुनिया के सामने लाए।
गुरु जी के घर पुत्र गोबिंद राय जी का प्रकाश हुआ जो बाद में दशम गुर श्री गुरु गोबिंद सिंह जी बने। गुरु तेग बहादुर जी ने सतलुज नदी के किनारे पहाड़ी राजाओं से जमीन खरीदी तथा आनंदपुर साहिब नामक नगर बसाया। यहीं औरंगजेब, जो हिंदुओं को जबरदस्ती मुसलमान बनने के लिए विवश कर रहा था, के सताए हुए कुछ कश्मीरी ब्राह्मण पंडित कृपा राम जी के नेतृत्व में प्रार्थी बनकर अपना धर्म बचाने के लिए फरियाद लेकर गुरु जी के पास आए।
निवेदन स्वीकार करते हुए गुरु जी ने अपना बलिदान देने का निश्चय कर लिया। गुरु जी के साथ गए सिखों में से भाई मतीदास जी को औरंगजेब के आदेश पर आरे से जिंदा चीर दिया गया, भाई सतीदास जी को कपास में जिंदा लपेट कर आग लगा दी गई तथा भाई दयाला जी को देग (वलटोही) में पानी डालकर उसमें उबाल दिया गया।
गुरुजी को भी करामात दिखाने को कहा गया, परंतु इन्होंने इंकार कर दिया। आखिर 1675 ई. में इन्हें चांदनी चौक में शहीद कर दिया गया। लोगों को इन्होंने सदैव यही संदेश दिया कि मनुष्य का यह प्रमुख कार्य है कि वह प्रभु को भक्ति करे। इनका कहना था कि माया के मोह में फंसा हुआ मनुष्य प्रभु के सिमरन की जगह माया ही मांगता रहता है। मनुष्य दूसरों को ठगने की सोचता रहता है परन्तु अचानक ही मौत का फंदा उसके गले में डल जाता है।
श्री गुरु तेग बहादुर जी ने लोगों को समझाया कि कोई भी मनुष्य यदि परमात्मा की भजन-बंदगी छोड़कर तथा तीर्थ-स्नान करके, ब्रत रखकर, दान पुण्य करके अपने मन में अहंकार करता है कि मैं धर्मी पुरुष बन गया हूं तो उसके सभी पुण्य कर्म ऐसे व्यर्थ चले जाते हैं जैसे हाथी द्वारा किया गया स्नान। हाथी स्नान करने के बाद अपने शरीर पर दोबारा मिट॒टी फैंक लेता है। अहंकारी मनुष्य का भी यही हाल होता है।
श्री गुरु तेग बहादुर जी द्वारा हिंदू धर्म की रक्षा के लिए प्राण न्यौछावर करने के कारण इन्हें ‘हिन्द की चादर‘ (Hind Ki Chadar) कहा जाता है।
श्री गुरु तेग बहादुर जी के उपदेश
- गुरुजी ने लोगों को सदैव यही संदेश दिया कि मनुष्य का यह प्रमुख कार्य है कि वह प्रभु की भक्ति करे। भक्ति के बगैर मनुष्य अपना कीमती जीवन व्यर्थ गंवा लेता है। मनुष्य अपनी धन-दौलत, सम्पत्ति को सच्चा साथी मान कर उन पर गर्व करता है परन्तु अंत समय में इनमें से कोई उसका साथ नहीं देता।
- यह शरीर पंच तत्वों – मिट्टी, हवा, पानी, आग व आकाश से बना है। जिन तत्वों से यह शरीर बना है, अंत में उन्हीं में विलीन हो जाएगा फिर ऐ मनुष्य इस नश्वर शरीर के साथ मोह क्यों और प्रभु की भक्ति क्यों नहीं।
- गुरु जी किसी को भी डराने या किसी से डरने के पक्ष में नहीं थे। उनके अनुसार जो व्यक्ति न किसी से डरता है तथा न ही किसी को डराता है, वही ज्ञानी है।
- उनका कहना था कि माया के मोह में फंसा मनुष्य प्रभु के सिमरन की जगह माया ही माया मांगता रहता है परन्तु भगवान की मर्जी कुछ और ही हो जाती है। वह दूसरों को ठगने की सोचता रहता है परन्तु अचानक मौत का फंदा उसके गले में डल जाता है।
One comment
Pingback: Gurdwara Sis Ganj Sahib, Chandni Chowk, Delhi - Kids Portal For Parents