मोती डूंगरी गणेश मंदिर, जयपुर: इतिहास
मोतीडूंगरी की तलहटी में स्थित भगवान गणेश का यह मंदिर जयपुर वासियों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। इतिहासकार बताते हैं कि यहां स्थापित गणेश प्रतिमा जयपुर नरेश माधोसिंह प्रथम की पटरानी के पीहर मावली से 1761 ई. में लाई गई थी। मावली में यह प्रतिमा गुजरात से लाई गई थी। उस समय यह पांच सौ वर्ष पुरानी थी। जयपुर के नगर सेठ पल्लीवाल यह मूर्ति लेकर आए थे और उन्हीं की देख-रेख में मोती डूंगरी की तलहटी में इस मंदिर को बनवाया गया था।
मोती डूंगरी गणेश मंदिर, जयपुर: स्थिति
जयपुर के परकोटा इलाके से बाहर जेएलएन मार्ग पर मोती डूंगरी के निचले भाग में गणेश का प्राचीन मंदिर है। गणेश मंदिर के ही दक्षिण में एक टीले पर लक्ष्मीनारायण का भव्य मंदिर है, जिसे ‘बिरला मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। हर बुधवार को यहां मोती डूंगरी गणेश का मेला भरता है, जिस कारण जेएलमार्ग पर दूर तक वाहनों की कतारें लग जाती हैं। मोती डूंगरी गणेश जी के प्रति भी यहां के लोगों में श्रद्धा है। जेएल मार्ग से एमडी मार्ग पर स्थित यह मंदिर लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है।
मोती डूंगरी गणेश मंदिर, जयपुर: स्थापत्य शैली
दूसरे प्रस्तर पर निर्मित मंदिर भवन साधारण नागर शैली में बना है। मंदिर के सामने कुछ सीढ़ियां और तीन द्वार हैं। दो मंजिला भवन के बीच का जगमोहन ऊपर छत तक है तथा जगमोहन के चारों ओर दो मंजिला बरामदे हैं। मंदिर का पिछला भाग पुजारी के निवास स्थान से जुड़ा है।
नये वाहनों का पूजन
मंदिर में हर बुधवार को नए वाहनों की पूजा कराने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ लगी होती है। माना जाता है कि नए वाहन की पूजा मोती डूंगरी गणेश मंदिर में की जाए तो वाहन शुभ होता है। लोगों की ऐसी ही आस्था जयपुर की पहचान बन चुकी है।
यहां दाहिनी सूंड़ वाले गणेशजी की विशाल प्रतिमा है, जिस पर सिंदूर का चोला चढ़ाकर भव्य श्रंगार किया जाता है। मोती डूंगरी गणेश मंदिर के बाद भी अनेक मंदिर स्थित हैं। ‘गणेश चतुर्थी’ के अवसर पर यहां आने वाले भक्तों की संख्या लाख का आंकड़ा पार कर जाती है।