हिमाचल प्रदेश कांगड़ा जिला के इंदौरा में दुनिया का एकमात्र ऐसा शिवलिंग जो कि दो भागों में बंटा हुआ है। इस शिवलिंग की कुछ अनोखी ही कहानी है। आपको बता दें कि ये शिवलिंग मां पार्वती और भगवान शिव का प्रतिरूप माना जाता है। गर्मियों के मौसम में ये शिवलिंग अलग होकर दो भागों में बंट जाता है जबकि सर्दियों के मौसम में पुन: एक रूप धारण कर लेता है।
काठगढ़ महादेव, इंदौरा, कांगड़ा
मान्यतानुसार ग्रहों और नक्षत्रों के परिवर्तित होने के साथ ही शिवलिंग के बीच का अंतर बढ़ता और घटता रहता है। बताया जा रहा है कि यह पावन शिवलिंग अष्टकोणीय है और काले व भूरे रंग का है। शिव रूप में पूजे जाने वाले शिवलिंग की ऊंचाई 7 से 8 फुट है जबकि मां पार्वती को समर्पित शिवलिंग की ऊंचाई तकरीबन 5 फुट है।
ये हैं काठगढ़ महादेव के प्रगट होने की कथा
शिव पुराण की विधेश्वर संहिता के अनुसार पद्म कल्प के प्रारंभ में ब्रह्मा और विष्णु के मध्य श्रेष्ठता को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। श्रेष्ठता साबित करने के लिए दोनों दिव्य अस्त्र उठाए और युद्ध करने के लिए तैयार हो गए। यह देखकर शिव वहां आदिन अनंत ज्योतिर्मय स्तंभ के रूप में प्रकट हुए। इससे दोनों देवताओं के दिव्य अस्त्र स्वयं ही शांत हो गए।
बताया जा रहा है कि भगवान विष्णु शुक्र का रूप धारण कर स्तंभ का आदि जानने के लिए पाताल लोक की ओर निकल पड़े, लेकिन वह उसका अंत नहीं तालाश पाए। वहीं ब्रह्मा आकाश से यह कहकर केतकी फूल लेकर आ गए कि उन्होंने स्तंभ का अंत पा लिया है और यह केतकी का फूल उसके ऊपर लगा था। यह देखकर शिव वहां प्रकट हो गए और विष्णु ने उनके चरण पकड़ लिए।
तब विष्णु ने शिव को कहा कि तुम दोनों समान हो। तभी से यह अग्नि तुल्य स्तंभ काठगढ़ के रूप में जाना जाने लगा। वहीं, दूसरी ओर जब हम काठगढ़ मंदिर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की बात करें तो ईसा से 326 वर्ष पूर्व जब सिंकदर जब पंजाब पहुंचा तो उसने अपने करीब पांच हजार सैनिकों को खुले मैदान में विश्राम करने के लिए कहा। उसने यहां देखा कि एक फकीर शिवलिंग की पूजा में पूरी तरह लीन है।
जब सिंकदर ने फकीर से कहा कि आप मेरे साथ यूनान चलें, मैं तुम्हें ऐश्वर्य प्रदान करूंगा। तब फकीर ने उसकी बात को अनसुना करते हुए कहा कि आप थोड़ा पीछे हट जाएं और सूर्य की रोशनी मुझ तक आने दें। सिकंदर को फकीर की इस बात से गुस्सा आ गया। उसने फकीर की इस बात से प्रभावित होकर टिले पर काठगढ़ मंदिर के निर्माण के लिए भूमि को सरल बनाया और चारदीवारी कर दी। इतना ही नहीं उसने चारदीवारी के ब्यास नदी की ओर अष्ठकोणीय चबूतरे भी बनवाएं जो कि यहां आज भी मौजूद हैं।
मान्यता के अनुसार त्रेता युग में भगवान श्रीराम के भाई भरत जब अपने ननिहाल कैकेयी देश कश्मीर जाते थे तो काठगढ़ शिवलिंग की पूजा किया करते थे। शिवरात्रि पर्व पर यहां तीन दिनों का मेला लगता है। माना जाता है कि शिव पार्वती के इस अनूठे शिवलिंग के दर्शन करने से भक्तों के पारिवारिक और मानसिक दुखों का अंत होता है।