पुरस्कार का असली हकदार: गरीब माँ-बाप के होनहार बेटे की शिक्षाप्रद कहानी

पुरस्कार का असली हकदार: गरीब माँ-बाप के होनहार बेटे की शिक्षाप्रद कहानी

पुरस्कार का असली हकदार: हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी सोनू के स्कूल में वार्षिक पुरस्कार वितरण समारोह होने वाला था, मगर इस बार इसे लेकर सोनू अति उत्साहित था क्योंकि उसने 10वीं कक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया था, जिसके लिए उसे भी सम्मानित किया जाना था।

उसके अध्यापकों ने उसे हिदायत दी कि पुरस्कार ग्रहण करने के लिए यदि वह फॉर्मल ड्रैस में आए तो अच्छा रहेगा मगर उसके पापा की इतनी हैसियत न थी कि बह अपने बेटे के लिए फॉर्मल ड्रैस खरीद पाते।

फिर भी सोनू की मम्मी के आग्रह पर उन्होंने अपने बजट में कई प्रकार को कटौतियां कर, उसे उसके मनपसंद कपड़े दिलवा ही दिए।

पुरस्कार का असली हकदार: प्रो. रणजोध सिंह

समारोह वाले दिन सफेद कमीज, ग्रे पैंट व नीला कोट पहनकर वह फूला नहीं समा रहा था। तभी उसके दोस्तों ने बताया कि इन कपड़ों के साथ स्पोर्ट्स शूज नहीं चलेंगे। उसका सारा नशा उतर गया। उसके पास चमड़े के जूते तो थे ही नहीं।

मम्मी जी ने उसे सुझाव दिया कि वह एक दिन के लिए अपने पापा के जूते पहन कर स्कूल चला जाए। सौभाग्यवश उसके पिता जी के जूते चमड़े के थे और सोनू को एकदम फिट भी आते थे।

उसने चुपचाप अपने पापा के जूते पहने और शीघ्रता से स्कूल के लिए निकल गया। थोड़ी ही देर में उसने महसूस किया कि पापा के जूते पहनकर चलना तो किसी दुर्गम पहाड़ी कौ चोटी पर चढ़ने जैसा कठिन था।

उनके जूते ऊपर से तो ठीक नजर आते थे, मगर अंदर से वह मृतप्राय हो चुके थे। जूतों का तला कौलें ठोक-ठोक कर किसी तरह सांसें ले रहा था। इस बीच कौलों ने सोनू के नाजुक पैरों को काटना आरंभ कर दिया था।

सोनू को एकबार तो अपने पापा पर बहुत गुस्सा आया। वह सोचने लगा कि जो व्यवित सरकारी नौकरी में होने के बावजूद अपने लिए ढंग के जूते नहीं खरीद सकता, वह व्यक्ति जीवन में और क्या करेगा।

उसे लगा कि उसके पापा दुनिया के सबसे कंजूस इंसान हैं। खैर ये सब बातें तो बाद की थीं, उस समय प्रश्न यह था कि इन जूतों के साथ समय पर स्कूल कैसे पहुंचा जाए। उसने किसी तरह घिसटते हुए एक बार फिर चलने कौ कोशिश की मगर उसकी कोशिश नाकाम साबित हुई।

उसका रोना निकल गया और वह सिर पकड़कर वहीं बैठ गया। अचानक किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। उसके आश्चर्य की सीमा न रही जब उसने देखा कि उसके पापा उसके सामने मुस्कराते हुए हाथ में नए जूतों का एक डिब्बा लेकर खड़े हैं।

हंसते हुए बोले, “तुम्हारी मम्मी ने मुझे बताया कि आज तुम फॉर्मल शूज के चक्कर में मेरे जूते पहन कर चले गए, परन्तु मेरे जूते तो बुरी तरह से घिस चुके हैं, उन्हें तो केवल मैं ही पहन सकता हूं। वैसे इस महीने मैं जूते खरीदने ही वाला था मगर फिर तुम्हारी फॉर्मल ड्रैस का मसला सामने आ गया और मैंने नए जूते खरीदने का विचार टाल दिया। अब ये लो नए जूते और पुरस्कार प्राप्त करो।”

इससे पहले कि सोनू कोई प्रतिक्रिया करता, उन्होंने शीघ्रता से नए जूतों का पैकेट सोनू को थमा दिया और स्वयं उसके पुराने जूते लेकर घर के लिए वापिस चल दिए।

आज सोनू को अपने स्कूल में प्रथम पुरस्कार मिला था। मंच से उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा हुई थी मगर वह लगातार अपने पिता जी के बारे में सोच रहा था। अब तक उसे समझ आ गया था ‘कि उसकी पढ़ाई के पीछे उसके मम्मी-पापा की कितनी अहम भूमिका है।

स्कूल से आते ही उसने अपने मम्मी-पापा के चरण स्पर्श किए और प्रथम पुरस्कार के रूप में मिला चमचमाता हुआ कप अपने पापा के कदमों में रख दिया और रुंधे हुए गले से बोला, “इस पुरस्कार के असली हकदार तो आप हो हैं।” पापा ने उसे हंसते हुए गले लगा लिया।

~ ‘पुरस्कार का असली हकदार’ story by ‘प्रो. रणजोध सिंह’

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