दशहरा पर कविता: दशहरा का पर्व असत्य की सत्य पर जीत का पर्व है। दशहरा जिसे विजय दशमी भी कहते हैं यह पर्व अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को आता है। विजयदशमी यानी दशहरा नवरात्रि खत्म होने के अगले दिन मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने रावण का वध करने से पहले 9 दिनों तक मां दुर्गा की उपासनी की थी और 10वें दिन रावण का वध किया था।
इसे लेकर एक अन्य पौराणिक कथा कहती है कि एक महिषासुर नाम का राक्षस था जिसने ब्रह्मा जी की उपासना करके वरदान प्राप्त किया था कि वह पृथ्वी पर कोई भी उसे पराजित नहीं कर पाएगा अर्थात उसका वध नहीं कर पाएगा। महिषासुर से अपने पाप से हाहाकार मचा दिया था। तब ब्रह्मा विष्णु महेश ने अपनी शक्ति से दुर्गा मां का सर्जन किया था। मां दुर्गा और महिषासुर के बीच में 9 दिनों तक मुकाबला चला और 10वें दिन मां दुर्गा ने असुर का वध कर दिया।
दशहरा पर कविता: गोविन्द भारद्वाज
पाप का अन्त करने को,
फिर आया है दशहरा।
सत्य की जीत लेकर,
फिर भाया है दशहरा।
मार के रावण को राम ने,
दिया दुनिया को संदेश।
मिटा कर खौफ का राज,
बनाया सुंदर सा परिवेश।
असत्य की हानि हुई है,
जब-जब अत्याचार बढ़ा।
लिया है ईश्वर ने अवतार,
‘जब-जब अहंकार चढ़ा।
झूठ, निंदा, पाप सब छोडो,
कहती अपनी वसुंधरा।
पाप का अन्त करने को
फिर आया है दशहरा।
~ ‘दशहरा पर कविता‘ poetry by ‘गोविन्द भारद्वाज, अजमेर‘
दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है। यह हर साल अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के दिन मनाया जाता है। इस दिन भगवान राम से रावण का वध किया था। इसे विजयदशमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन रावण का पुतला बनाकर उसका दहन किया जाता है।