चौमुखनाथ मंदिर: नाचना हिंदू मंदिर, पन्ना जिला, मध्य प्रदेश

चौमुखनाथ मंदिर: नाचना हिंदू मंदिर, पन्ना जिला, मध्य प्रदेश

चौमुखनाथ मंदिर – नचना हिंदू मंदिर, जिन्हें नाचना-कुथारा में नाचना मंदिर या हिंदू मंदिर भी कहा जाता है,पन्ना जिले, मध्य प्रदेश, भारत में भुमरा और देवगढ़ के साथ मध्य भारत में सबसे पहले जीवित पत्थर के मंदिर हैं। उनकी डेटिंग अनिश्चित है, लेकिन उनकी शैली की तुलना उन संरचनाओं से की जा सकती है जिन्हें दिनांकित किया जा सकता है, कुछ नाचना मंदिर 5 वीं या 6 वीं शताब्दी के गुप्त साम्राज्य के युग के विभिन्न प्रकार के हैं। चतुर्मुख मंदिर 9वीं शताब्दी का है। ये मंदिर हिंदू मंदिर वास्तुकला की उत्तर भारतीय शैली को दर्शाते हैं।

देश का सबसे पुराना शिवलिंग मिला, चौमुखनाथ मंदिर में मिले गुप्तकालीन मंदिर के अवशेष

Name: चौमुखनाथ मंदिर (Choumukh Nath Mandir)
Location: Unnamed Road, Bhitri Mutmuru, Kachhgawan, Madhya Pradesh 488333 India
Deity: Lord Shiva, Goddess Parvati, Goddess Durga, Lord Vishnu
Affiliation: Hinduism
Completed In: 6th – 9th Century
Architecture: Nagara Style: Nagara architecture is a style of temple architecture. It originated in northern India and spread to other parts of the subcontinent. It is characterized by its tall, pyramidal towers called shikharas. These are topped by a bulbous finial called a kalasha. Nagara temples are typically built on a high platform. A series of concentric walls surround them.
Build During:  Gupta Empire era

चौमुखनाथ मंदिर मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में सालेहा के पास नचना कुठार गाव के पास है ये शिवली “चौमुखनाथ” लगभग सातवीं आठवीं शताब्दी में प्रतिहार राजवंशों के शासनकाल में बना चौमुखनाथ मंदिर भारत का एकमात्र ऐसा शिवलिंग है जिसमे भोलेनाथ के चार अलह अलह चेहरों को शिवलिंग पर उकेरा गया हो.! इसी मंदिर परिसर में ही गुप्त काल का पार्वती मंदिर भी है जो अपनी प्राचीन वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्द है!

Choumukh Nath Mandir (चौमुखनाथ मंदिर) पन्ना जिले के सलेहा में स्थित है भोलेनाथ की दुर्लभ चतुर्भुज प्रतिमा, 5वीं सदी का बताया जा रहा मंदिर. एक ही मूर्ति में दूल्हा, अर्धनारीश्वर और समाधि में लीन शिव के दर्शन होते हैं वैसे तो अपनी-अपनी जगह सभी शिव मंदिरों का महत्व है लेकिन सलेहा क्षेत्र के नचने का (Chaumukh Nath Mandir) चौमुख नाथ महादेव मंदिर (Chaumukh Nath Shiva Temple) का इतिहास ही अनोखा है। कहते है अति प्राचीन इस मंदिर में भगवान शिव के चार मुख वाली प्रतिमा स्थापित है। प्रतिमा का हर मुख अलग-अलग रूप वाला है। इस मंदिर के नीचे आज भी मौजूद है चमत्कारी मणि, एक रात में बना था देवतालाब का शिव मंदिर।

चौमुखनाथ मंदिर में प्रतिष्ठित चार मुख वाली विलक्षण शिव प्रतिमा। चौमुखनाथ महादेव मंदिर के आलावा इसी क्षेत्र में अति प्राचीन सिद्धनाथ मन्दिर है। जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 60 किमी दूर स्थित यह अनूठा स्थल अगस्त मुनि आश्रम के नाम से विख्यात है। इस पूरे परिक्षेत्र में प्राचीन मन्दिरों व दुर्लभ प्रतिमाओं के अवशेष जहां – तहां बिखरे पड़े हैं, जिन्हें संरक्षित करने के लिए आज तक कोई पहल नहीं हुई। पन्ना जिले के सिद्धनाथ मन्दिर की शिल्प कला देखने योग्य है, ऊंची पहाडिय़ों से घिरे गुडने नदी के किनारे स्थित इस स्थान पर कभी मन्दिरों की पूरी श्रंखला रही होगी। मन्दिरों के दूर – दूर तक बिखरे पड़े अवशेष तथा बेजोड़ नक्कासी से अलंकृत शिलायें, यहां हर तरफ दिखाई देती हैं। जिससे प्रतीत होता है कि यहां कभी विशाल मन्दिर रहे होंगे।

जिस शिवलिंग का अभिषेक करते थे सम्राट विक्रमादित्य, उसे ASI ने खोजा: मंदिर के द्वार पर नक्काशी और गंगा-यमुना

इन मंदिरों पर कुछ पौराणिक कथाओं का भी चित्रण हैं। उन पर गुप्तकाल का प्रभाव है। डॉक्टर व्यास बताते हैं कि मंदिर स्थापत्य की शुरुआत गुफा मंदिरों से हुई थी। ईसा पूर्व की दूसरी शताब्दी में अजंता में हीनयान बौद्ध परंपरा की गुफाएँ बनी थीं। उसके बाद कुछ गुफाओं के साथ पत्थरों को जोड़कर मंदिर बनाने का नया आर्किटेक्ट विकसित हुआ था।

मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में खुदाई के दौरान अब तक का सबसे प्राचीन मंदिर और शिवलिंग मिला है। इस शिवलिंग के पहली सदी से लेकर पाँचवीं सदी के बीच की होने की संभावना जताई जा रही है। कहा जा रहा है कि यह मंदिर मठ से निर्मित किए गए होंगे। 4 मार्च 2024 से चल रही आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) द्वारा यह खुदाई चौमुखनाथ मंदिर आसपास मौजूद टीलों की हो रही है।

इस खुदाई में माना जा रहा है कि अभी कई और प्राचीन प्रतिमाएँ और मंदिरों के अवशेष मिल सकते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यह खुदाई पन्ना जिले के गाँव नचना कुठारा में चल रही है। यहाँ 2 प्राचीन मंदिर स्थित हैं। इन्हें आसपास इलाकों में चौमुखनाथ (चतुर्भुज नाथ) और पार्वती मंदिर के नाम से जाना जाता है। माता पार्वती मंदिर 5वीं की, जबकि चौमुखनाथ मंदिर 8वीं सदी की बताई जा रही है।

भारतीय आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) के जबलपुर सर्किल के पुरातत्वविद डॉक्टर शिवाकांत वाजपेयी के नेतृत्व में मंदिर परिसर के पास अवस्थित 8 टीलों में से 2 को चिह्नित किया गया है। इन्हीं टीलों के आसपास खुदाई का काम चल रहा है। लगभग 15 दिनों की खुदाई के बाद पार्वती मंदिर से लगभग 33 मीटर दूर मौजूद टीले से एक शिवलिंग निकला है।

पुरातत्वविदों का दावा है कि खुदाई में सामने आया शिवलिंग 1 से 5वीं सदी के बीच का हो सकता है। इतिहासकार इसे गुप्तकालीन शिवलिंग बता रहे हैं। शिवलिंग का निर्माण किस चीज से हुआ है, इसकी जाँच अभी चल रही है। पुरातत्वविद वाजपेयी के मुताबिक, खुदाई आगे बढ़ने के साथ अभी कुछ और ऐतिहासिक धरोहरें मिल सकती हैं।

जिस गाँव में यह शिवलिंग मिला है उसके बारे में पुरातत्वविदों का मानना है कि सम्भवतः यह जगह गुप्तकाल में कोई समृद्ध व्यापारिक केंद्र रहा होगा। फिलहाल ASI इस बात का पूरा ध्यान रख रहा है कि खुदाई से निकली शासकीय संपत्ति को कोई नुकसान न पहुँचे। औजारों को बेहद सावधानी से चलाया जा रहा है। खुदाई के लिए टीलों को धागे से चिह्नित करके वहाँ वीडियोग्राफ़ी और फोटो खींचना प्रतिबंधित कर दिया गया है।

वाजपेयी के मुताबिक, ASI के पहले महानिदेशक जनरल अलेक्जेंडर कनिंघम ने इस गाँव में 2 पुराने मंदिरों की खोज की थी। साल 1885 में इससे जुड़ी रिपोर्ट भी प्रकाशित हुई थी, जिसमें पहला पार्वती मंदिर और दूसरा चतुर्मुख शिव मंदिर की बात कही गई है। तब से ASI की लिस्ट में यह स्थान ऐतिहासिक धरोहरों के तौर पर शामिल था। बकौल वाजपेयी, वे भारत के सबसे पुराने मंदिर की तलाश में हैं।

पुरातत्वविद डॉक्टर नारायण व्यास कहते हैं कि नचना का पार्वती मंदिर उन शुरुआती उपासना स्थलों में से है, पत्थरों को काटकर बनाए गए स्थानों की जगह ले रहा है। यह मंदिर दो मंजिला है। इसमें एक मंडप और एक गर्भगृह है। इसकी छत सपाट है। इससे पता चलता है कि तब तक मंदिरों के शिखर बनना शुरू नहीं हुए थे। इसके प्रवेश द्वार पर खूबसूरत नक्काशी से गंगा और यमुना की छवि को उकेरा गया है।

मंदिरों पर कुछ पौराणिक कथाओं का भी चित्रण हैं। उन पर गुप्तकाल का प्रभाव है। डॉक्टर व्यास बताते हैं कि मंदिर स्थापत्य की शुरुआत गुफा मंदिरों से हुई थी। ईसा पूर्व की दूसरी शताब्दी में अजंता में हीनयान बौद्ध परंपरा की गुफाएँ बनी थीं। उसके बाद कुछ गुफाओं के साथ पत्थरों को जोड़कर मंदिर बनाने का नया आर्किटेक्ट विकसित हुआ था।

डॉ़क्टर व्यास का कहना है कि विदिशा के पास बेसनगर में एक पुराने मंदिर की नींव के अवशेष मिले हैं। शायद यह लकड़ी का बना हुआ और यह दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व का है। यहाँ एक गरूड़ स्तंभ है, जिसे स्थानीय लोग खाम्म बाबा कहते हैं। माना जाता है कि यह बेसनगर के मंदिर की ही छवि है।

कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इस मंदिर का डिजाइन शुरुआती ग्रीक मंदिरों से मिलता-जुलता है। इसे चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के समय 5वीं शताब्दी की शुरुआत में बनाया गया था। बताते चलें कि मध्य प्रदेश के कटनी जिले में बहोरीबंद के पास तिगवाँ गाँव में 36 पुराने मंदिरों का एक समूह है, जिसमें कंकाली मंदिर का ढाँचा अभी भी अच्छी स्थित में है। इसे 5वीं शताब्दी की शुरुआत का माना जाता है।

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