राष्ट्रभक्त तिकड़ी, जो अंग्रेज कलक्टर 'पंडित जैक्सन' का वध कर फाँसी चढ़े

नासिक की राष्ट्रभक्त तिकड़ी: अंग्रेज कलक्टर जैक्सन का वध कर फाँसी चढ़े

कौन थी वो नासिक की राष्ट्रभक्त तिकड़ी, जो अंग्रेज कलक्टर ‘पंडित जैक्सन’ का वध कर फाँसी पर झूल गई: नासिक का वो केस, जिसने सावरकर भाइयों को पहुँचाया कालापानी

नाटक के मंचन के दौरान ही अनंत लक्ष्मण कन्हेरे ने नासिक के कलेक्टर ए.एम.टी. जैक्सन के सीने में 4 गोलियाँ उतार दी। अनंत लक्ष्मण कन्हेरे के साथ ही बैकअप के तौर पर कृष्णाजी गोपाल कर्वे और विनायक नारायण देशपांडे भी थे।

नासिक की राष्ट्रभक्त तिकड़ी – तारीख : 21 दिसंबर 1909, जगह : विजयानंद थिएटर, नासिक। शाम का समय और संगीत शारदा मंडली द्वारा नाटक का मंचन। इस नाटक का मंचन किया जा रहा था नासिक के कलेक्टर अर्थर मेसन टिप्पेट्स जैक्सन (ए.एम.टी. जैक्सन) को विदाई देने के लिए। इस नाटक के मंचन के दौरान ही अनंत लक्ष्मण कन्हेरे ने नासिक के कलेक्टर ए.एम.टी. जैक्सन के सीने में 4 गोलियाँ उतार दी। अनंत लक्ष्मण कन्हेरे के साथ ही बैकअप के तौर पर कृष्णाजी गोपाल कर्वे और विनायक नारायण देशपांडे भी थे। अगर अनंत जैक्सन को नहीं मार पाते, तो ये काम कृष्णजी गोपाल कर्वे करते और वो भी चूक जाते तो विनायक नारायण देशपांडे। हालाँकि अनंत लक्ष्मण कन्हेरे चूके नहीं।

इस बात का जिक्र अब क्यों?

अनंत लक्ष्मण कन्हेरे, कृष्णाजी गोपाल कर्वे और विनायक नारायण देशपांडे को आज ही की तारीख यानी 19 अप्रैल 1910 को फाँसी पर लटका दिया गया था। इन तीनों ही क्रांतिकारियों की उम्र उस समय 18 से 20 वर्ष के बीच थी। इन तीनों को कितने लोग जानते हैं? महाराष्ट्र में जरूर अनंत लक्ष्मण कन्हेरे के बारे में लोगों को जानकारी है, लेकिन पूरे भारत में? इसीलिए उपरोक्त जानकारी दी गई। आज (19 अप्रैल) को तीनों हुतात्माओं का बलिदान दिवस है। इन तीनों हुतात्माओं के शरीर को उनके परिजनों को देने की जगह जेल में ही जला दिया गया और अवशेषों (अस्थियों) थाणे के पास में ही समंदर में फेंक दिया गया। ऐसा इसलिए किया गया, ताकि विद्रोह की ज्वाला भड़कने की जगह विद्रोहियों की मन में अंग्रेजी हुकूमत का खौफ कायम रहे।

ये पूरा मामला नासिक षड्यंत्र केस के नाम से जाना जाता है। इस केस में कुल अभिनव भारत सोसायटी के 27 सदस्यों को सजा सुनाई गई, जिसमें कई लोगों को कालेपानी की सजा भी शामिल है। इसी केस को आधार बनाकर वीर सावरकर को अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर बनाए गए सेल्यूलर जेल में कालेपानी की सजा के लिए भेजा गया था। इसी मामले में वीर सावरकर के बड़े भाई गणेश सावरकर को भी कालेपानी की सजा हुई थी। यही नहीं, इस केस में शंकर रामचंद्र सोमण, वामन उर्फ दाजी नरायण और गणेश बालाजीवैद्य को भी कालेपानी की सजा हुई।

अभिनव भारत का क्या था रोल?

अभिनव भारत सोसायटी की स्थापना वीर सावरकर और उनके भाई गणेश सावरकर ने नासिक में मित्र मेला के रूप में साल 1899 में की थी। तब वीर सावरकर खुद छात्र थे। साल 1904 में मित्र मेला का नाम बदलकर अभिनव भारत कर दिया गया था। वीर सावरकार साल 1906 में लंदन चले गए और एक ब्रांच वहाँ भी खुली। वीर सावरकर ने लंदन से 20 पिस्टल भेजे थे, उन्हीं में से एक पिस्टल का इस्तेमाल अनंत लक्ष्मण कन्हेरे ने नासिक के कलेक्टर ए.एम.टी. जैक्सन का वध करने के लिए किया था।

कौन था ए.एम.टी. जैक्सन? क्यों नासिक की राष्ट्रभक्त तिकड़ी ने किया वध?

ए.एम.टी. जैक्सन का वध जब हुआ, तब उसकी उम्र 47 वर्ष थी। वो संस्कृत और मराठी का भी जानकार था। उसे पंडित जैक्सन भी कहा जाने लगा था, क्योंकि वो दावा करता था कि वो पिछले जन्म में हिंदू संत था और इस जन्म में वो क्रिश्चियन है। वो सनातन परंपरा के खिलाफ षड्यंत्र कारी बातें करता था और लोगों के बीच आराम से घुलमिल जाता था। उसे स्थानीय स्तर पर पसंद भी किया जाता था, क्योंकि उसने स्वयं को कुछ इस तरह से पेश किया था कि वो लोगों का उद्धार कर रहा है। उसकी जहरीली नीतियों की वजह से अभिनव भारत सोसायटी से जुड़े क्रांतिकारियों ने उसके वध की योजना बनाई थी।

इन तीनों क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ युद्ध को अंजाम दिया। उन्होंने सनातन को बचाने के लिए भी ये कदम उठाया, क्योंकि उस समय जैक्सन भारी मात्रा में नासिक में धर्मांतरण कर रहा था। उसका कोई विरोध नहीं करता था। उसे इन कामों के लिए प्रमोशन मिला और उसे बॉम्बे का कमिश्नर बनाया गया था। उसने गणेश सावरकर की गिरफ्तारी के बाद उन्हें कालेपानी की सजा दिलवाने में भी अहम भूमिका निभाई थी, इसलिए भी क्रांतिकारियों के निशाने पर था। इन क्रांतिकारियों ने जैक्सन को मारने के बाद जहर खाकर या खुद को गोली मारकर खत्म करने का फैसला भी किया था, लेकिन इस हमले के बाद वो तुरंत पकड़ लिए गए और स्वयं को खत्म करने का मौका नहीं मिल पाया।

खैर, अनंत लक्ष्मण कन्हेरे, कृष्णाजी गोपाल कर्वे और विनायक नारायण देशपांडे को जितना सम्मान मिलना चाहिए था, वो तो नहीं मिला। क्यों नहीं मिला? क्योंकि इससे कम्युनिष्टों और कॉन्ग्रेसियों को दिक्कत हो जाती। महज 18-20 साल के इन बलिदानियों ने जो योगदान दिया, वो बाकियों पर भारी पड़ जाती। अब जब नरेंद्र मोदी सरकार ने आजादी के 75 वर्ष के मौके पर ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मनाया है, तो ऐसे भूल-बिसार दिए गए अनन्य बलिदानियों की कथा भी सामने आ रही है। इन शहीदों को शत् शत् नमन

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