अटाला माता मंदिर जौनपुर, उत्तर प्रदेश

अटाला माता मंदिर जौनपुर, उत्तर प्रदेश

जिसे वामपंथन रोमिला थापर ने ‘इस्लामी कला’ से जोड़ा, वह मस्जिद इब्राहिम शर्की ने मंदिर तोड़ बनवाई थी: जानिए अटाला माता मंदिर लेने क्यों हिंदू पहुँचे कोर्ट

अनेक प्रमाण है, जिसमें साफ तौर पर दर्ज है कि अटाला माता के मंदिर को तोड़कर अटाला मस्जिद बनाई गई थी और उसका नाम भी इसीलिए अटाला मस्जिद पड़ा।

अटाला माता मंदिर जौनपुर, उत्तर प्रदेश

Name: अटाला माता मंदिर जौनपुर (अटाला मस्जिद)
Location: Rizwikhan, Jaunpur, Uttar Pradesh 222001 India
Deities:
Affiliation: Hinduism
Founder: कन्नौज साम्राज्य के राजपूत राजा राजा विजय चंद्र
In 1377 A.D., Firuz Shah Tughlaq began the building of the mosque by demolishing the atala Devi temple, The Mosque was completed by Ibrahim Shah Sharqi of the Jaunpur Sultanate in 1408 A.D.
Construction cost:
Completed: 13th Century
Site area:

जौनपुर की अटाला मस्जिद को हिंदू मंदिर बताने वाली याचिका कोर्ट में दाखिल हुई है। अब पूरे देश में बहस छिड़ गई है कि क्या अटाला मस्जिद वाकई में हिंदू मंदिर को तोड़कर बनाया गया है? किवदंतियों को छोड़ दें तो तमाम विद्वानों ने समय-समय पर ये साबित किया है कि अटाला मस्जिद को अटाला माता मंदिर की जगह पर ही बनाया गया है। ऐसे एक नहीं, अनेक प्रमाण है, जिसमें साफ तौर पर दर्ज है कि अटाला माता के मंदिर को तोड़कर अटाला मस्जिद बनाई गई थी और उसका नाम भी इसीलिए अटाला मस्जिद पड़ा। चूँकि जौनपुर में उस समय राज कर रहे मुस्लिम शर्की शासकों द्वारा माता मंदिर को तोड़कर अटाला मस्जिद बनाई गई, बावजूद इसके वामपंथी इतिहासकार इसे इस्लामी वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना बता प्रचारित करते रहे। हालाँकि तमाम तत्थों से ये साफ है कि अटाला मस्जिद का निर्माण अटाला माता के मंदिर पर ही हुआ है।

इस दावे की पुष्टि तमाम विद्वानों की लिखी किताबें भी करती हैं। The Art and Architecture of Islam: 1250-1800 में शीला ए. ब्लेयर और जोनाथन एम ब्लूम ने पेज नंबर 198-199 पर लिखा है, ‘अटाला मस्जिद (1408) में इब्राहीम शर्की ने अटाला माता को समर्पित हिंदू मंदिर को तोड़कर उसी की नींव पर बनवाया था। ये उस समय की बाकी मस्जिदों से अलग भी है।’

The Art and Architecture of Islam: 1250-1800
The Art and Architecture of Islam: 1250-1800

मध्य कालीन भारतीय समाज एवं संस्कृति में प्रो (डॉ) फणींद्र नाथ ओझा ने पेज नंबर 93 पर ‘हिंदू-इस्लामी वास्तुकला का विकास’ शीर्षक के तहत लिखा है, ‘अटाला मस्जिद वास्तुकला की शर्की शैली का सबसे प्रांरभिक और सर्वाधिक सुंदर नमूना है। जिस जगह पर उसका निर्माण हुआ, वहाँ पहले अटाला देवी का मंदिर था। मंस्जिद का निर्माण उस मंदिर की सामग्री से हुआ।’

हिंदू-इस्लामी वास्तुकला का विकास
हिंदू-इस्लामी वास्तुकला का विकास

The Wonder That Was India Volume 2 में सैय्यद अतहर अब्बास रिजवी ने अटाला मस्जिद के इतिहास को लिखा है। उन्होंने शर्की वंश और अटाला मस्जिद के निर्माण के बारे में लिखा, “शर्की डायनेस्टी कम समय तक जौनपुर में रहा, लेकिन उसके एक रूलर इब्राहीम शाह शर्की (1401-40) एक महान निर्माता थे। साल 1408 में उन्होंने अटाला मस्जिद का काम पूरा करवाया। ये अटाला देवी मंदिर की जगह पर बना था, जिसे फिरूज ने 1376 में तोड़ा था। अटाला मस्जिद में हिंदू मंदिर के पिल्लरों, छतों व अन्य सामानों का इस्तेमाल किया गया। इसे 22.87 मीटर ऊँचा बनाया गया।”

The Wonder That Was India Volume 2
The Wonder That Was India Volume 2

वहीं, रोमिला थापर नाम की वामपंथी इतिहासकार ने रोमिला थापर ने फ्रिट्स लेहमान का नाम लेकर जौनपुर के शर्की वास्तुशिल्प के हिसाब से बने अटाला मस्जिद को मूलत: मंदिर साबित करने की कोशिश की है। रोमिला थापर ने उन तथ्यों और दावों को झुठलाने का भरपूर प्रयास किया है, जिसमें अटाला मस्जिद के वजूद को मूलत: मंदिर पर आधारित बताया गया है।

रोमिला थापर ने अपनी ‘किताब इतिहास की पुनर्व्याख्या’ के पेज नंबर 44 पर लिखा है, ‘अटाला मस्जिद का शिलालेख यह दर्शाता है कि कुशल हिंदू कारीगरों ने इस इमारत पर मुसलमानों के साथ मिलकर काम किया था। लेहमान इस दावे को झूठा साबित करने के लिए पर्याप्त प्रमाण प्रस्तुत करते हैं कि जौनपुर की अटाला मस्रिज (पर्सी ब्राउन के शब्दों में) “अटाला देवी के हिंदू मंदिर के स्थान पर बनी थी, और इसके निर्माण में इस मंदिर की सामग्री और आसपास के मंदिरों की सामग्री को साथ मिलाकर प्रयोग किया गया गया था।” ऐसी एक किवदंती 1802 के एक ग्रंथ जौनपुरनामा में दर्ज की गई थी, मगर ऐसी किसी देवी का उल्लेख न तो प्रतिमाशास्त्र के किसी ग्रंथ में मिलता है और न ही किसी उपसांस्कृतिक परंपरा में। न ही इमारन में (हिंदू समान के विपरीत) इस्लाम-पूर्व सामग्री का पर्याप्त इस्तेमाल हुआ है। लेहमान ने मस्जिद के नाम का स्रोत ‘अट्टाला’ में पाया है, जिसका अर्थ है छावनी या बहुत ऊँची इमारत और यह सुझाया है कि जौनपुरनामा की किवदंती काल्पनिक पुनर्ग्रहण की एक मिसाल है।’

बहरहाल, अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने कोर्ट में जो याचिका दाखिल की है, उसके बारे में उन्होंने विस्तार से मीडिया को भी जानकारी दी है। उन्होंने कहा है कि अटाला मस्जिद मूल रूप से अटाला माता मंदिर है। पुरातत्व विभाग और कई ऐतिहासिक स्रोतों के अनुसार अटाला माता मंदिर का निर्माण कन्नौज के राजा जयचंद्र राठौर ने करवाया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के प्रथम निदेशक ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि अटाला माता मंदिर को तोड़ने का आदेश फिरोज शाह ने दिया था, लेकिन हिंदुओं के संघर्ष के कारण मंदिर को नहीं तोड़ा जा सका। बाद में इब्राहिम शाह ने अतिक्रमण किया और मंदिर का उपयोग मस्जिद के रूप में करने लगा।

उन्होंने कलकत्ता स्कूल ऑफ आर्ट के प्रिंसिपल ईबी हेवेल की पुस्तक का भी हवाला दिया है, जिसमें अटाला मस्जिद की प्रकृति और चरित्र को हिन्दू बताया है। यही नहीं, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनेक रिपोर्ट्स में अटाला मस्जिद के चित्र दिए गए हैं। इनमें त्रिशूल, गुड़हल के फूल आदि मिले हैं। इसके अलावा साल 1865 के एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल के जनरल में अटाला मस्जिद के भवन पर कलश की आकृतियों का होना बताया गया है।

अटाला मस्जिद को लेकर जो केस दायर किया गया है, उस बारे में मूल खबर ये है। – “जिसे कहते हैं अटाला मस्जिद, उसकी दीवारों पर त्रिशूल-फूल-कलाकृतियाँ’: ​कोर्ट पहुँचे हिंदू, कहा- यह माता का मंदिर

How to reach Jaunpur:

By Air

  • The nearest airport from Jaunpur is Lal Bahadur Shastri international Airport Babatpur, Varanasi (40 Km approx.). The airport is well connected to other metro cities in India such as New Delhi, Mumbai, Agra, Chennai and Bangalore through a range of flights operated by both private as well as public carriers.

By Rail

  • Two stations namely Jaunpur City & Jaunpur Junction are situated in Jaunpur. Trains are available for most of the important cities/locations across the country.

By Bus

  • Jaunpur bus stand is situated in the heart of Jaunpur city. It is well connected to Varanasi, Lucknow,Gorakhpur, Allahabad and important cities. AC/non-AC services of UPSRTC buses are available for most of the adjacent cities.

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