Guru Arjan Dev Ji shaheedi Purab: गुरु अर्जुन देव जी सिखों के पांचवें गुरु तथा सिख धर्म के पहले शहीद हुए हैं। इन्हें शहीदों का सरताज कहा जाता है। इनकी शहीदी के बाद इनके सुपुत्र गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने शांति के साथ-साथ सैनिक बनने का भी उपदेश दिया। श्री गुरु अर्जुन देव जी का प्रकाश श्री गुरु रामदास जी के गृह में माता भानी जी की कोख से वैशाख वदी 7 सम्वत, 1620 को गोइंदवाल साहिब में हुआ। इनका पालन-पोषण गुरु अमरदास जी जैसे गुरु तथा बाबा बुड्ढा जी जैसे महापुुरुषों की देखरेख में हुआ। ये बचपन से ही बहुत शांत स्वभाव व पूजा भक्ति करने वाले थे। गुरु रामदास जी के तीन सुपुत्र बाबा महादेव जी, बाबा पृथी चंद जी तथा अर्जुन देव जी थे जिनमें से गुरु रामदास जी ने हर तरह की जांच-पड़ताल करने के बाद अर्जुुन देव जी को गुरुगद्दी सौंपी।
शहीदों के सरताज: गुरु अर्जन देव
पृथी चंद को गुरु जी के इस फैसले की इतनी नाराजगी हुई कि वह इनका हर तरह से विरोध तथा झगड़ा करने लगा। गुरु राम दास जी ने उसे समझाने के बहुतेरे यत्न किए पर वह न माना। उस पर गुरु पिता की शिक्षाओं का कोई असर न हुआ। जब उसने अपने पिता की बात भी न मानी तो गुरु जी ने उसके लिए बहुत कठोर शब्दों का प्रयोग किया तथा उसेे ‘मीणा’ तक कहा।
गुरुगद्दी संभालने के बाद गुरु अर्जुन देव जी ने लोक भलाई तथा धर्म प्रचार के कामों में तेजी ला दी। इन्होंने गुरु रामदास जी द्वारा शुरू किए गए सांझे निर्माण कार्यों को प्राथमिकता दी तथा संतोखसर एवं अमृतसर जी के विकास कार्यों को और भी तेज कर दिया। अमृत सरोवर के बीच इन्होंने श्री हरिमंदिर साहिब जी का निर्माण कराया, जिसका शिलान्यास मुसलमान फकीर साईं मियां मीर जी से करवा के धर्म निरपेक्षता का सबूत दिया। इन्होंने तरनतारन साहिब, करतारपुर साहिब (निकट जालंधर), छेहरटा साहिब, श्री हरगोबिंदपुर आदि नए नगर बसाए।
गुरु अर्जुन देव जी ने विश्व को सर्व सांझीवालता का संदेश दिया। इसका सबसे बड़ा परिणाम श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का संपादन है। गुरु जी ने श्री गुरु नानक देव जी से लेकर सभी गुरु साहिबान के साथ-साथ भक्तों तथा भट्टों की बाणी को एक ही जगह एकत्रित करके श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की पवित्र बीड़ तैयार की।
अमृतसर साहिब जी में रामसर के किनारे इन्होंने भाई गुरदास जी, जो रिश्ते में इनके मामा लगते थे, को लिखारी लगाकर यह पवित्र बीड़ तैयार करवाई। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में गुरु जी ने अनेक धर्मों, वर्णों और जातियों से संबंधित भक्तों, महापुरुषों, संतों की बाणी को सिख गुरु साहिबान के बराबर सम्मान देते हुए शामिल किया क्योंकि सभी गुरुओं, भक्तों, संतों की बाणी का सिद्धांत भी एक है तथा शिक्षाएं भी एक जैसी ही हैं।
गुरु अर्जुन देव जी ने सदा ही अपने सिखों को परमात्मा पर भरोसा रखने का संदेश दिया। इनके प्रचार के कारण सिख धर्म तेजी से फैलने लगा। अनेक हिन्दू तथा मुसलमान भी सिख धर्म में शामिल होने लगे। अकबर की संवत 1662 में हुई मौत के बाद उसका पुत्र जहांगीर गद्दी पर बैठा, जो बहुत ही कट्टर विचारों का था। अपनी कट्टरता के चलते वह सिख धर्म का मुख्य दुश्मन बन गया। अपनी आत्मकथा ‘तुजके जहांगीरी’ में उसने स्पष्ट लिखा है कि वह गुरु अर्जुन देव जी के बढ़ रहे प्रभाव से बहुत दुखी था।
इसी दौरान जहांगीर का पुत्र खुसरो बगावत करके आगरा से पंजाब की ओर आ गया। जहांगीर को सूचना मिली थी कि श्री गुरु अर्जुन देव जी ने खुसरो की मदद की है, इसलिए उसने गुरु जी को गिरफ्तार करने के आदेश जारी कर दिए। श्री गुरु अर्जुन देव जी को लाहौर में 30 मई, 1606 ई. को भीषण गर्मी के दौरान ‘यासा व सियासत‘ के तहत लोहे की गर्म तवी पर बिठाकर शहीद कर दिया गया। यासा के अनुसार किसी व्यक्ति का रक्त धरती पर गिराए बिना उसे यातनाएं देकर शहीद किया जाता है। गुरु जी के शीश पर गर्म रेत डाली गई। जब गुरु जी का शरीर अग्नि के कारण बुरी तरह जल गया तो उन्हें ठंडे पानी वाले रावी दरिया में उतार दिया गया, जहां गुरु जी का पावन शरीर रावी में ही अलोप हो गया। श्री गुरु अर्जुन देव जी ने लोगों को विनम्र रहने का संदेश दिया। वह विनम्रता के पुंज थे। कभी भी आपने किसी को भी दुर्वचन नहीं बोले।
श्री गुरु अर्जुन देव जी का संगत को एक बड़ा संदेश था कि परमेश्वर की रजा में राजी रहना। जब जहांगीर के आदेश पर इन्हें आग के समान तप रही तवी पर बिठा दिया, तब भी आप परमेश्वर का शुक्राना कर रहे थे: