चौरंग सजा: अभिनेता रितेश देशमुख ने ‘X’ पर कुछ ऐसा पोस्ट किया है जो चर्चा का विषय बन रहा है। उन्होंने लिखा कि एक अभिभावक के रूप में वो पूरी तरह निराश हैं, दुःखी हैं और गुस्से से भरे हुए हैं। स्कूल के पुरुष सफाई कर्मचारी द्वारा 4 वर्ष की दो लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न की घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि विद्यालय को घर की तरह ही सुरक्षित स्थान माना जाता है, ऐसे में इस राक्षस को कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए। हालाँकि, इसके बाद उन्होंने जो लिखा वो गौर करने लायक़ है।
दिवंगत पूर्व CM विलासराव के बेटे रितेश देशमुख का कहना है कि छत्रपति शिवाजी महाराज ऐसे अपराधों में दोषियों को वो सज़ा देते थे जिनके वो हक़दार होते थे – चौरंग। अभिनेता ने माँग की कि अब इस सज़ा को वापस अमल में लाए आने की ज़रूरत है। कमेंट्स में भी लोगों ने उनका समर्थन किया। छत्रपति शिवाजी महाराज अपनी न्यायप्रियता और जन-भावनाओं के अनुरूप कार्य करने के लिए जाने जाते थे। आइए, ऐसे में जानते हैं कि ये ‘चौरंग’ सज़ा आखिर होता क्या है।
कृष्णाजी अनंत द्वारा लिखे गए ‘सभासद बखर’ में भी इस सज़ा की चर्चा है। इसे सन् 1697 में लिखा गया था। चूँकि वो छत्रपति शिवाजी महाराज के समकालीन थे, इसीलिए उनके द्वारा लिखे को हम मूल स्रोत के रूप में ले सकते हैं। उन्होंने बताया है कि कैसे शिवाजी एक आदर्श राजा थे, जो न्याय करने के लिए लोकप्रिय थे और अपने शासन में कानून का राज स्थापित करने के लिए प्रयासरत थे। इसमें सबसे कड़ी सज़ाओं में ‘चौरंग’ का जिक्र है। विश्वासघात, धोखाधड़ी या फिर विरोधी राज्य के लिए जासूसी में ये सज़ा दी जाती थी।
क्या थी चौरंग सजा, उस समय क्यों थी ज़रूरी:
खासकर के मराठा साम्राज्य के विरुद्ध जो लोग विश्वासघात या जासूसी करते थे उन्हें ये सज़ा दी जाती थी। आइए, अब जानते हैं कि इस सज़ा की प्रक्रिया क्या थी। इसमें अपराधी के हाथ और पाँव को अलग-अलग दिशा में 4 घोड़ों के साथ बाँध दिया जाता था। फिर उन घोड़ों को अलग-अलग दिशा में दौड़ने का आदेश दिया जाता था। स्पष्ट है, दो हाथ और दो पाँव अलग-अलग दिशा में बँधे होंगे और खींचे जाएँगे तो किसी का भी शरीर कई टुकड़ों में फट जाएगा। यही थी ‘चौरंग’ सज़ा।
चूँकि वो समय निरंतर युद्ध और राजनीतिक अस्थिरता का था, कई राज्य सिर्फ इसीलिए तबाह हो गए क्योंकि किसी गद्दार ने सारे भेद जाकर दुश्मन को बता दिए। ऐसे में खासकर राज्य के साथ विश्वासघात को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता था। इसका सीधा अर्थ है कि हिंदवी साम्राज्य के पहले छत्रपति एक ऐसे राजा थे जो दयावान भी थे लेकिन ज़रूरत पड़ने पर कड़ी सज़ा देने से भी नहीं हिचकते थे। अधिकारियों, जनता और दरबार में अनुशासन बनाए रखने के लिए उस समय इस तरह की सज़ा की ज़रूरत भी होती थी।
औरंगज़ेब के शासन वाला विशाल मुग़ल साम्राज्य और बगल में बीजापुर सल्तनत – शिवाजी महाराज के लिए सैन्य क्षमता के प्रदर्शन के साथ-साथ आंतरिक दुश्मनों को नेस्तनाबूत करना भी आवश्यक था। और शिवाजी का साम्राज्य तो नया-नया था, बड़ी मुश्किल से वो राजा बने थे और राज्याभिषेक के बाद सरदारों से मान्यता प्राप्त की थी। उनके समय जॉन फ्रायर नाम का एक ब्रिटिश शख्स भी भारत घूमने आया था, उसने भी मराठा साम्राज्य में दी जाने वाली कड़ी सज़ाओं का जिक्र किया है।
अक्सर उनके लोग अलग महिलाओं को बंदी बना कर लाते थे तो शिवाजी उन्हें रिहा करने का आदेश देते थे, साथ ही जो बहादुर बंदी उनकी सत्ता को स्वीकार करते थे उन्हें वो उपहार वगैरह भी देते थे। महिलाओं-बच्चों के अलावा जो आम लोग होते थे, उन्हें भी वो जाने देते थे। छत्रपति शिवाजी महाराज का अपनी सेना को स्पष्ट आदेश था कि महिलाओं-बच्चों और आम लोगों को गिरफ्तार न किया जाए, ब्राह्मणों को परेशान न किया जाए। लालमहल में जब शिवाजी ने मुग़ल सूबेदार शाइस्ता खान पर हमला किया था, तब भी उन्होंने महिलाओं पर हाथ नहीं उठाया।
न्यायप्रिय राजा थे छत्रपति शिवाजी महाराज:
छत्रपति शिवाजी महाराज माँ भवानी के भक्त थे, एक बार स्वप्न के बाद उन्होंने संगमरमर से माँ भवानी का मंदिर बनवाया। प्रतापगढ़ की पहाड़ी पर ये मंदिर आज भी है। माँ भवानी की प्रतिमा के लिए उन्होंने खजाने खोल दिए और कीमती आभूषण बनवाए। प्राचीन हिन्दू साहित्य और परंपरा के हिसाब से ही शिवाजी के शासनकाल की न्याय पद्धति चलती थी। राजा के दरबार को ‘हज़ार मजलिस’ कहा जाता था। उन्हें नौसेना के गठन का भी श्रेय दिया जाता है, उस समय पुर्तगाल, फ्रांस और ब्रिटेन समुद्र में ख़ासे सक्रिय थे।
छत्रपति शिवाजी महाराज गुरु समर्थ रामदास के अनुयायी थे, जो हनुमान जी के भक्त थे। छत्रपति शिवाजी महाराज का सार्वजनिक जीवन मात्र 19 वर्ष की उम्र में सन् 1646 में तोराना के किले पर नियंत्रण के साथ शुरू हुआ था, और अगले 34 वर्षों तक ये अनवरत चलता रहा। छत्रपति शिवाजी महाराज बिना हिंसा के सबको एक करना चाहते थे, लेकिन बीजापुर सल्तनत ने उनके पिता को धोखे से बंदी बना लिया था, उन पर कई हमले किए। शिवाजी के पास जब कल्याण के नवाब की बहू को बंदी बना कर पेश किया गया था तो उन्होंने उन्हें ससम्मान वापस भेजा।
एक बार पुणे के राँझे गाँव के एक पाटिल ने एक स्त्री का बलात्कार किया। शिवाजी ने दोनों पक्षों को दरबार में सुनवाई के लिए बुलाया तो आरोप सही पाए। उन्होंने तत्काल अपराधी के हाथ-पाँव तोड़ डाले जाने की सज़ा सुनाई। छत्रपति शिवाजी महाराज ने जब अपना अभियान शुरू किया था तो न उनके पास राज्य था और न थी सेना। वहाँ से उन्होंने सन् 1674 में राज्याभिषेक तक की यात्रा तय की। आज फिर उनके उनके शासनकाल को याद किया जा रहा है, जहाँ अत्याचारियों के लिए कोई जगह नहीं थी।