नारानाग मंदिर समूह, गांदरबल जिला, जम्मू व कश्मीर

नारानाग मंदिर समूह, गांदरबल जिला, जम्मू व कश्मीर

नारानाग मंदिर समूह: दुनिया भर में प्रसिद्ध जम्मू-कश्मीर के हर एक कोने को प्रकृति ने नायाब सुन्दरता से नवाजा हुआ है। यहां कई ऐतिहासिक संस्चनाएं भी हैं, जिनमें से कइ्यों के बारे में लोगों को कम ही पता है।

ऐसा ही एक महत्वपूर्ण स्थल है गांदरबल जिले में स्थित नारानाग मंदिर समूह। इस मंदिर समूह को शोडरतीर्थ, नंदीकषेत्र व भूतेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।

Name: नारानाग मंदिर समूह (Naranag Temple Complex / Wangath Temple complex)
Location: Naranag, Ganderbal district, J&K, India
Deity: Lord Shiva
Affiliation: Hinduism
Architecture: नागर शैली
Creator: Lalitaditya Muktapida – Kayastha Naga Karkota Dynasty
Festivals: Shivratri
Completed In: 8th Century

कई मंदिरों का समूह:

परिसर में एक नहीं, बल्कि कई मंदिर हैं। मंदिर परिसर के पश्चिमी भाग में समूह में करीब 6 मंदिर हैं, जिसे शिव-ज्येष्ठ के नाम से जाना जाता है। वहीं पूर्वी भाग में भी कई मंदिरों का निर्माण दूसरे समूह में किया हुआ है। इन सबके बीच मुख्य मंदिर स्थित है, जो भगवान शिव को समर्पित है।

हालांकि, इस मंदिर परिसर के अधिकांश मंदिरों को स्थिति बेशक रख-रखाव के अभाव में जीर्ण-शीर्ण हो गई हो लेकिन इन्हें देखते ही इनकी भव्यता का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। परिसर अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन है।

Shiving within Naranag temple complex
Shiving within Naranag temple complex

कहां है नारानाग मंदिर:

श्रीनगर-सोनमर्ग मार्ग पर श्रीनगर से लगभग 50 किलोमीटर आगे बढ़ने पर गांदरबल जिले में कंगल क्षेत्र के अंतर्गतनारानाग गांव आता है। वांगथ नदी के किनारे बसा यह गांव प्राकृतिक सुन्दरता का धनी है। प्राकृतिक घास के मैदानों, झीलों, पहाड़ों और हरमुख पर्वत से घिरा यह स्थान गंगाबल झील को ट्रैकिग का बेस कैम्प भी है।

इसके अलावा पीर पंजाल श्रेणी के कई अब्य ट्रैकिंग स्थलों का बेस कैम्प भी इस क्षेत्र के आसपास ही है।

मंदिर का इतिहास:

पुरातात्विक विभाग के अनुसार नारानाग गांव का प्राचीन नाम सोदरतीर्थ था, जो उस समय के तीर्थयात्रा स्थलों में से एक प्रमुख नाम है। बताया जाता है कि मंदिरों के इस समृह का निर्माण 7वीं – 8वीं शताब्दी में राजा ललितादित्य के शासनकाल में करवाया गया था।

हालांकि कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इस मंदिर का अस्तित्व ककोंटा वंश के राजा ललितादित्य मुक्तिपिदा के शासनकाल से भी पहले था।

उन्होंने इन परिसरों को विकसित करने के लिए बडी मात्रा में धन दान में दिया था और मंदिर परिसर में एक मंदिर का निर्माण करवाया था, जिसे शिव ज्येष्ठेश को समर्पित किया गया था। इस मंदिर में 8वीं शताब्दी में राजा अवस्तिवर्मन ने भगवान भूतेश्वर की मूर्ति के स्नान के लिए एक पत्थर को चौकी और चांदी की नाली का निर्माण करवाया था।

Main Shiva Temple, Western Complex, Naranag
Main Shiva Temple, Western Complex, Naranag

नारानाग का अर्थ:

नारानाग शब्द मूल रूप से ‘नारायण नाग‘ शब्दों से मिलकर बना है। इसमें से ‘नाग’ शब्द कश्मीरी है, जिसका अर्थ चश्मा होता है। यह चश्मा आंखों पर लगाने वाला चश्मा नहीं होता, बल्कि पानी का चश्मा है।

कश्मीर में चश्मा उन क्षेत्रों को कहते हैं जहां जमीन पर मौजूद दरों से जमीन के नौचे से पानी खुद ही बाहर आता रहता है।

नारानाग मंदिर के ठीक सामने पत्थर से बना जल संचय का पात्र है, जिसका इस्तेमाल संभवत: धार्मिक कार्यों के लिए किया जाता था। इसके अलावा मंदिर में भगवान पर चढ़ाए. गए जल की निकासी के लिए नालियों की स्पष्ट बनावट भी नजर आती है। मंदिर के उत्तर- पश्चिमी भाग में एक प्राचीन कुंड भी बना हुआ है। पत्थरों से बनी मंदिर की चारदीवारी पर अभी भी कलाकृतियों के अवशेष दिखाई देते हैं।

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