त्रिनेत्र गणेश मंदिर: प्रत्येक कार्य को शुरूआत गणेश पूजा से को जाती है। भारत में अनेक गणेश मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं, इनमें से एक है – रणथम्भौर का गणेश मंदिर। राजस्थान के सवाई माधोपुर शहर के निकट स्थित दुर्ग रणथम्भौर का गणेश मंदिर आस्था एवं श्रद्धा के लिए जन-जन में प्रसिद्ध है।
त्रिनेत्र गणेश मंदिर, रणथम्भौर दुर्ग, सवाई माधोपुर, राजस्थान
Name: | त्रिनेत्र गणेश मंदिर (Trinetra Ganesh Temple Ranthambore fort) |
Location: | Ganesh Mandir Marg, Ranthambore Fort, Rajasthan 322001 India |
Deity: | Lord Ganesha |
Affiliation: | Hinduism |
Architecture: | – |
Creator: | – |
Festivals: | Ganesh Chaturthi |
Completed In: | 1299 |
पूरी दुनिया में यह एक ही मंदिर है जहाँ भगवान गणेश जी अपने पूर्ण परिवार, दो पत्नी – रिद्दि और सिद्दि एवं दो पुत्र – शुभ और लाभ, के साथ विराजमान है।
अनूठी प्रतिमा वाला मंदिर
दुर्ग के मध्य-दक्षिणी परकोटे पर बने प्राचीन गणेश मंदिर के प्रति लोगों में अथाह श्रद्धा है। सिंदूर लेपन के कारण इसका वास्तविक रूप देखना संभव नहीं, परंतु कहा जाता है कि यहां के गणपति के मात्र मुख की पूजा होती है। अन्य अवयव इस प्रतिमा में नहीं है।
मान्यता है कि भगवान श्रीगणेश यहां स्वयंभू हो रहे थे, तभी किसी ने उन्हें देख लिया तथा ऐसे में उनका प्रकट्य रुक गया तथा वे इसी रूप में रह गए। यद्यपि ऐसी मान्यताएं सही हैं या नहीं, परंतु रणथम्भौर के गणेश जी लाखों लोगों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं, ऐसी आस्था जन-जन में है।
देश-विदेश से आते हैं गणेश जी के नाम पत्र
विवाह एवं अन्य मांगलिक कार्यों को प्रारंभ करने से पूर्व रणथम्भौर के गणेश जी को निमंत्रण देने एवं उनको कार्य में पधारने का आग्रह करना एक परम्परा है। यहां पर देश-विदेश से गणेश जी के नाम डाक आती है जिन्हे पुजारी मूर्ति के सामने भक्तों की कामना पूर्ण करने के लिए रखता है। ये पत्र विवाह निमंत्रण, गृहप्रवेश, पुत्रादि की कामना आदि विषयों से संबंधित रहते हैं।
मंदिर के निर्माण के बार में अनेक किंवदंतियां हैं, परंतु यह निर्विवाद है कि सन् 944 ई. मे दुर्ग निर्माण से पहले इस मंदिर का निर्माण किया गया होगा चौहान राजाओं के काल से ही यहां गणेश चौथ का मेला भरता आ रहा है। उस समय विशेष साज-सज्वा और उत्सव आयोजित किए जाते थे। रणथम्भौर के गणेश जी त्रिनेत्री हैं तथा गणेश जी की ऐसी मुखाकृति अन्य गणेश मंदिरों में नहीं मिलती।
रणथम्भौर पर मुस्लिमों के अनेक हमले हुए एवं यह दुर्ग मुगलों व खिलजी शासकों के अधीन भी रहा लेकिन अपनी चमत्कारिक शक्ति से यह देवालय सदियों से अक्षुण्ण रहाहै और आज भी अपने गौरवशाली अतीत को छोटे से गर्भगृह में समेटे जन-जन की. आस्था का वंदनीय स्थल बना हुआ है।
भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी, जिसे गणेश चतुर्थी भी कहते हैं, को यहां प्रतिवर्ष ऐतिहासिक एवं संभवत: देश का सबसे प्राचीन गणेश मेला भरता है। प्रतिदिन यहां सैंकड़ों दर्शनार्थी दर्शन के लिए आते हैं तथा बुधवार को यहां विशेष मेला लगता है।
यहाँ पर ग्रामीण तथा किसान बड़ी संख्या में मनौतियां मांगने आते हैं। मंदिर की दीवारों से टकराकर जो अन्न के दाने बिखरते है उन्हें किसान बीन कर ले जाते हैं और अपने बीजों में मिलाकर बुआई करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से उनकी पैदावर अच्छी होगी।
रणथम्भौर गणेश मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण घाटियों, मनोरम झीलों एवं बहुरंगी वस्त्रों से सुसज्जित ग्रामीणे के कारण बहुत सुंदर लगता है। यात्री 4 किलोमीटर पैदल चल कर व सकड़ों सीढ़ियां चढ़कर इस मंदिर पर पहुंचते हैं तो उनका मन शांत एवं प्रसन्नचित हो जाता है।
रणथम्भौर के गजानन या रणतभंवर के गजानन निश्चित ही अद्वितीय हैं।