श्री दुर्वेश्वर महादेव मंदिर धर्मशाला: देव भूमि हिमाचल प्रदेश में कई स्थान अपने गौरवमयी इतिहास के साथ-साथ आस्था के स्रोत बने हुए हैं। इनमें से कुछ तो विश्व प्रसिद्ध हैं, जबकि कइयों के बारे में इतनी जानकारी नहीं है, जिनके इतिहास और महानता के बारे में तो श्रद्धालुओं को वहां पहुंचने पर ही पता चलता है। कांगड़ा जिले में धर्मशाला से 10 किलोमीटर की दूरी पर पर्यटन नगरी नड्डी के समीप डल में श्री दुर्वेश्वर महादेव का मंदिर तथा डल झील इसका एक उदाहरण है।
श्री दुर्वेश्वर महादेव का यह मंदिर 200 साल पुराना है, जिसका निर्माण बताया जाता है कि गांव व डाकघर घरोह निवासी श्री कलेशर सिंह राणा ने करवाया था। मंदिर के द्वार तक पहुंचने के लिए सीढ़ियों से होते हुए पक्का रास्ता बना है। इस मंदिर में मुख्य मेला जन्माष्टमी के 15 दिन बाद राधाष्टमी को लगता है। इसके अतिरिक्त शिवरात्रि को भी मेला लगता है। मंदिर के आस-पास के गांवों की महिलाएं श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को व्रत रखकर श्री दुर्वेश्वर महादेव की पूजा करती हैं।
श्री दुर्वेश्वर महादेव मंदिर, धर्मशाला, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश
Name: | श्री दुर्वेश्वर महादेव मंदिर, धर्मशाला (Shri Durveshvar Mahadev Temple / Chota Manimahesh) |
Location: | Dal Lake-Mcleod Ganj, McLeod Ganj, Dharamshala, Himachal Pradesh 176216 India |
Deity: | Lord Shiva |
Affiliation: | Hinduism |
Architecture: | – |
Creator: | Kaleshwar Singh Rana, Gharoh |
Festivals: | – |
Completed In: | ~ 18th Century |
मंदिर के ठीक सामने स्थित है डल झील। एक दंतकथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें वरदान मांगने को कहा। महर्षि दुर्वासा ने लोगों की तत्कालीन समस्या को ध्यान में रखते हुए भगवान शिव से तपस्या स्थल के समीप पानी उपलब्ध कराने का आग्रह किया।
भगवान शिव ने वरदान दे दिया तथा वंचित स्थल पर सप्त ऋषि के रूप में सात जलधाराएं फूट पड़ीं और पानी एक झील के रूप में एकत्र हो गया तथा इस प्रकार डल झील की उत्पत्ति हुई। कालांतर में श्री दुर्वेशवर महादेव मंदिर की स्थापना हुई। डल झील की धार्मिक मान्यता के अनुसार इसे छोटा मणिमहेश की उपाधि भी दी जाती है। जो पुण्य मणिमहेश की यात्रा तथा स्नान एवं भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करने से प्राप्त है, वही पुण्य डल झील में स्नान तथा श्री दुर्वेशवर महादेव मंदिर की परिक्रमा तथा पूजा-अर्चना से प्राप्त होता है। ऐसी मान्यता है कि यहां पर राधा अष्टमी को स्नान करने से मणिमहेश नहाने जैसा पुण्य मिलता है। झील में तत्ता स्नान और ठंडा स्नान का अपना अलग महत्व है। अगर मेले की तिथि संक्रांति से 20 दिन बाद आती है तो ठंडा स्नान और 12 दिन पहले तत्ता स्नान किया जाता है। लोग तत्ता स्नान को अधिक महत्व देते हैं। सुबह चार बजे से शुभ मुहूर्त के साथ ही स्नान शुरू हो जाता है और दिन भर चलता है। जो लोग ‘मणिमहेश’ नहीं जा पाते, वे इस डल झील में स्नान और दुर्वेशवर महादेव के दर्शन करके अपना जीवन सफल बनाते हैं।
झील किनारे स्थित प्राचीन दुर्वेशवर मंदिर से भगवान शंकर के कलश को लेकर झील के पानी में डुबोकर झील की शुद्धि की जाती है, इसके बाद मंदिर के पुजारी स्नान करते हैं और फिर कलश को दुर्वेशवर महादेव मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है। पूजा-अर्चना और आरती के बाद श्रद्धालुओं का स्नान क्रम शुरू होता है। यह एक प्राकृतिक जल निकाय है, जो आसपास की पहाडिय़ों के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है। देवदार के पेड़ों से घिरी यह झील पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। हालांकि, आसपास के पहाड़ों से लगातार गाद जमने के कारण झील के पानी की गहराई कम हो गई थी। झील का लगभग आधा हिस्सा गाद से भर गया था और घास के मैदान में बदल गया था। स्थानीय लोगों का कहना है कि इसमें से गाद तथा नीचे जमी काई व घास निकालने कि लिए प्रशासन द्वारा सफाई अभियान चलाने के बाद झील का पानी रिसने लगा और यह लगभग सूखने के कगार पर पहुंच गई।
कुछ वर्षों में यह दूसरा मौका है, जब झील इतनी अधिक सूख गई है। 2011 में लोक निर्माण विभाग (पी.डब्ल्यू.डी.) द्वारा इसकी गहराई बढ़ाने के लिए इसके तल से गाद हटाने के बाद झील ने अपनी जल-धारण क्षमता खो दी थी। पिछले साल धर्मशाला के जल शक्ति विभाग ने जलाशय की सतह पर रिसाव को रोकने के लिए बेंटोनाइट का इस्तेमाल किया था। सोडियम बेंटोनाइट या ड्रिलर्स मड का इस्तेमाल अक्सर लीक हो रहे तालाबों को बंद करने के लिए किया जाता है। नमी के कारण बेंटोनाइट अपने मूल आकार से 11-15 गुना बढ़ जाता है और फैलने पर मिट्टी के कणों के बीच की जगह को बंद कर देता है।
हालांकि, विभाग के रिसाव की समस्या हल होने के दावे के बावजूद झील में फिर से पानी कम होने लगा है। इस धार्मिक महत्व की झील के पानी की समस्या का स्थायी समाधान आवश्यक है।