लोहड़ी: हर्ष, उमंग एवं सद्भावना का त्योहार

लोहड़ी: हर्ष, उमंग एवं सद्भावना का त्योहार

यह हर्ष तथा सद्भावना का त्यौहार है, जो माघ महीने की संक्रांति से पहली रात को मनाया जाता है। किसान सर्द ऋतु की फसलें बो कर आराम फरमाता है। जिस घर में लड़का पैदा हुआ हो, उसकी शगुन एवं हर्ष से लोहड़ी डाली जाती है। आजकल तो लड़कियों की लोहड़ी भी खुशी एवं उमंग से मनाई जाती है। इस दिन प्रत्येक घर में मूंगफली, रेवड़ियों, चिरवड़े, गच्चक, भुग्गा, तिलचौली, मक्की के दाने, गुड़, फल इत्यादि बांटने के लिए रखे जाते हैं। गन्ने के रस की खीर बनाई जाती है। दही के साथ इसका अपना ही सवाद होता है।

लोहड़ी का त्योहार

इस दिन घर के आंगन, मोहल्लों, बाजारों इत्यादि में खड़ी लकड़ियों के ढेर बनाकर या उपलों का ढेर बना उसकी अग्नि को सेंकने का लुत्फ लिया जाता है। समस्त परिवार बैठ कर हर्ष की अभिव्यक्ति के लिए गीत गायन करते हैं। रिश्तों की सुरभि, मोह-ममता तथा प्यार का नजारा चारों ओर देखने को मिलता है और एक सम्पूर्ण खुशी का आलम होता है।

लोहड़ी के त्यौहार के साथ कई कथाएं प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध योद्धा दूल्हा भट्टी ने एक निर्धन ब्राह्मण की दो बेटियों सुन्दरी एवं मुन्दरी को जालिमों में छुड़ा का उनकी शादियां कीं तथा उनकी झोली में शक्कर डाली थी। उनकी शादियां कर पिता के फर्ज निभाए। इस सम्बध में लोक गीत आज भी प्रचलित है:

सुंदर मुंदरिये हो!
तेरा कौन विचारा हो!
दुल्ला भट्टी वाला हो!
दुल्ले धी व्याही हो!

सेर शक्कर पाई हो!
कुड़ी दे जेबे पाई!
कुड़ी दा लाल पटाका हो!
कुड़ी दा सालू पाटा हो!

सालू कौन समेटे हो!
चाचे चूरी कुट्टी हो!
जमींदारां लुट्टी हो!
जमींदार सदाए हो!

गिन-गिन पोले लाए हो!
इक पोला रह गया!
सिपाही फड़ के लै गया!
सिपाही ने मारी ईंट!

भावें रो भावें पिट्ट।
सानू दे दे लोहड़ी।
तुहाड़ी बनी रवे जोड़ी!

लड़के-लड़कियां इस दिन लोहड़ी मांगते हैं। ग्रुप बना कर लोहड़ी मांगने का अपना ही एक आनंद होता है। बेशक लोहड़ी के गीत लुप्त होते जा रहे हैं परन्तु वृद्ध-जनों को आज भी ये गीत जुबानी याद हैं, जैसे

कोठी हेठ चाकू, गुड़ दऊ मुंडे दा बापू। कोठी उत्ते कां, गुड़ दऊ मुंडे दी मां।

विवाहित जोड़ों (दम्पति) की भी लोहड़ी मनाई जाती है।

लोहड़ी वाले घर से अगर जल्दी लोहड़ी न मिले तो लड़कियां यह गीत कहती हैं:

साड़े पैरां हेठ रोड़, सानूं छेती-छेती तोर, साड़े पैरां हेठ दहीं, असीं मिलना वी नई, साड़े पैरां हेठ परात, सानूं उत्तों पै गई रात।

लोहड़ी के दूसरे दिन माघी का पवित्र त्यौहार मनाया जाता है। माघ माह को शुभ समझा जाता है। इस माह में विवाह शुभ मानते जाते हैं। इसी माह में पुन्य दान करना, खास करके लड़कियों की शादी करना शुभ माना जाता है। माघी का मेला अनेक शहरों में मनाया जाता है। खास करके मुक्तसर (पंजाब) में। सिखों के 5वें गुरु श्री अर्जुन देव जी ने माघ माह की बारह माह बाणी में प्रशंसा की है: माघ मंजन संग साधुआं धूढ़ी कर इस्नान। भगवान श्री कृष्ण ने गीता के 8वें अध्याय में माघ माह का अति सुन्दर वर्णन किया है:

अग्नि ज्योंतिरह शुक्ल, वण्मासा उतरायणन।

माघ से लेकर छ: माह का समय उत्तरायण कहलाता है जिसमें ब्रह्म को जानने वाले लोग प्राणों का त्याग कर मुक्त हो जाते हैं। प्रयाग तीर्थ में महात्मा लोग प्रकल्प करते हैं।

~ बलविन्दर बालम, गुरदासपुर

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