राणा सांगा: तोप से डरे न तलवार से, 80 घाव लेकर भी खड़े रहे बाबर के खिलाफ

राणा सांगा: तोप से डरे न तलवार से, 80 घाव लेकर भी खड़े रहे बाबर के खिलाफ

तोप से डरे न तलवार से, 80 घाव लेकर भी खड़े रहे बाबर के खिलाफ मैदान में: सपा सांसद ने जिन ‘राणा सांगा’ को बताया ‘गद्दार’, उनके बारे में जानते ही क्या हैं आप

राणा सांगा ने दिल्ली, मालवा और गुजरात के सुल्तानों के साथ 18 भीषण युद्ध लड़े और सबको हराया। उनके शासन काल में आधुनिक राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, गुजरात के उत्तरी हिस्से और पाकिस्तान स्थित अमरकोट सहित कुछ अन्य हिस्सों पर विजय प्राप्त करके अपने राज्य में मिला लिया था। सन 1305 ईस्वी में परमार साम्राज्य के पतन के बाद उन्होंने पहली बार मालवा में राजपूत सत्ता को दोबारा स्थापित किया।

राणा सांगा: तोप से डरे न तलवार से, 80 घाव लेकर भी खड़े रहे बाबर के खिलाफ

उत्तर प्रदेश से समाजवादी पार्टी के राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन ने राणा सांगा के नाम से विख्यात महाराणा संग्राम सिंह को गद्दार बताकर एक बार फिर बहस छेड़ दी है। शनिवार (22 मार्च, 2025) को राज्यसभा में बोलते हुए उन्होंने कहा कि इब्राहिम लोदी को हराने के लिए राणा सांगा ने ही बाबर को बुलाया था। उन्होंने हिंदुओं को ‘गद्दार’ राणा सांगा की औलाद बताया। अब सवाल है कि इतिहास इस को लेकर क्या कहता है।

नफरत करने वाले लोग अक्सर ये दावा करते हैं कि दिल्ली तत्कालीन सुल्तान इब्राहिम लोदी को हराने के लिए राणा सांगा ने बाबर को भारत बुलाया था। हालाँकि, यह सच है कि राणा सांगा इब्राहिम लोदी को पहले ही बार-बार हरा चुके थे। इसके अलावा उन्होंने गुजरात और मालवा के सुल्तानों की सेना को कई बार अलग-अलग हराने के बाद दोनों की संयुक्त सेना तक को हराया था। ऐसे में उन्हें किसी बाहरी के सहायता की क्या जरूरत थी?

सन 1508 में मेवाड़ के शासक बने महाराणा सांगा ने अपने जीवन में कुल 100 से अधिक लड़ाइयाँ लड़ीं, लेकिन खानवा के सिवाय किसी में भी उनकी हार नहीं हुई थी। यही कारण है कि उनके पराक्रम को देखते हुए उन्हें ‘हिंदूपत’ की उपाधि मिली थी। इन लड़ाइयों की वजह से उकी एक आँख नहीं था। एक हाथ नहीं था। एक पैर काम नहीं करता था। शरीर पर 80 से अधिक गंभीर घाव के निशान थे।

महाराणा संग्राम सिंह के शासन में मेवाड़ा की सीमाएँ दूर-दूर तक फैल गईं। मेवाड़ की सीमा पूर्व में आगरा (वर्तमान में उत्तर प्रदेश) और दक्षिण में गुजरात की सीमा तक पहुँच गई थीं। राजपूताना इतिहास के विद्वान कर्नल जेम्स टाड के अनुसार, महाराणा संग्राम सिंह के पास 80,000 घोड़े, 500 हाथी और करीब 2 लाख पैदल सैनिक सैनिक थे।

कर्नल जेम्स टॉड ने बताया है कि महाराणा संग्राम सिंह के पास ऊँचे दर्जे के सात राजा, 9 राव और 104 रावल थे। मारवाड़ और आम्बेर उन्हें सम्मान देते थे। ग्वालियर, अजमेर, सीकरी, रायसेन, कालपी, चंदेरी, बूंदी, गागरौन, रामपुरा और आबू के राजा उन्हें अपना अधिपति मानते थे। वहीं, हिंदू उन्हें अपना देवता मानते थे।

इब्राहिम लोदी को ही नहीं, मालवा-गुजरात के सुल्तानों को भी राणा सांगा ने हराया

राणा सांगा ने दिल्ली, मालवा और गुजरात के सुल्तानों के साथ 18 भीषण युद्ध लड़े और सबको हराया। उनके शासन काल में आधुनिक राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, गुजरात के उत्तरी हिस्से और पाकिस्तान स्थित अमरकोट सहित कुछ अन्य हिस्सों पर विजय प्राप्त करके अपने राज्य में मिला लिया था। सन 1305 ईस्वी में परमार साम्राज्य के पतन के बाद उन्होंने पहली बार मालवा में राजपूत सत्ता को दोबारा स्थापित किया।

दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के नेतृत्व वाले लोदी वंश और राणा सांगा के नेतृत्व वाले मेवाड़ साम्राज्य के बीच 1517 में खतोली की लड़ाई लड़ी गई थी। इस युद्ध में राणा सांगा ने इब्राहिम लोधी को बुरी तरह हराया था। उसने दोबारा 1518-19 में हमला करके राणा सांगा से बदला लेने की कोशिश की, लेकिन राणा सांगा ने फिर से उसे राजस्थान के धौलपुर में बुरी तरह परास्त किया। इब्राहिम लोदी वहाँ से भाग गया।

इब्राहिम लोदी ने कई बार सांगा से युद्ध किया, लेकिन हर बार उसे हार का सामना करना पड़ा। इन युद्धों के कारण आधुनिक राजस्थान में इब्राहिम ने अपनी पूरी ज़मीन खो दी। वहीं, राणा सांगा ने अपना प्रभाव आगरा के पीलिया खार तक फैला दिया। 16वीं सदी की पांडुलिपि ‘पार्श्वनाथ-श्रवण-सत्तवीसी’ के अनुसार, राणा सांगा ने मंदसौर की घेराबंदी के ठीक बाद रणथंभौर में इब्राहिम लोदी को हराया।

सन 1517 और फिर सन 1519 में उन्होंने मालवा के शासक महमूद खिलजी द्वितीय को हराया। यह लड़ाई ईडर और गागरोन में हुई। उन्होंने महमूद को पकड़ कर 2 महीने तक बंधक बनाकर रखा। बाद में महमूद ने माफी माँगी और दोबारा हमले नहीं करने की कसम खाई तो राणा सांगा ने सनातन युद्ध नियमों का पालन करते हुए उसे छोड़ दिया। हालाँकि, बदले में महमूद के राज्य के एक बड़े हिस्से को अपने राज्य में मिला लिया।

सन 1520 में राणा सांगा ने इडर राज्य के निज़ाम खान की मुस्लिम सेना को हराया और उसे अहमदाबाद की ओर धकेल दिया। अहमदाबाद की राजधानी से 20 मील दूर राणा सांगा ने अपना आक्रमण रोक दिया। कई लड़ाइयों के बाद राणा सांगा ने सफलतापूर्वक उत्तरी गुजरात पर कब्ज़ा कर लिया और अपने एक जागीरदार को वहाँ का शासक बना दिया। हटेली में मालवा और गुजरात के सुल्तान की संयुक्त सेना को राणा सांगा ने हराया।

इसी तरह राणा सांगा ने मालवा के सुल्तान नासिरुद्दीन खिलजी को बुरी तरह हराया औऱ गागरोन, भीलसा, रायसेन, सारंगपुर, चंदेरी और रणथंभौर को अपने राज्य में मिला लिया। महाराणा सांगा ने अपने द्वारा जीते गए सभी राज्यों से मुस्लिमों द्वारा गैर-मुस्लिमों पर लगाए जाने वाले जजिया कर को खत्म कर दिया और उनके द्वारा बनवाए गए मस्जिद-मकबरों को ध्वस्त करवा दिया।

राणा सांगा ने बयाना के युद्ध में बाबर को बुरी तरह परास्त किया

बाबर ने पंजाब और सिंध पर जीत के बाद दिल्ली पर कब्जा करने की योजना बनाई। उसने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी के खिलाफ हमला कर दिया। 21 अप्रैल 1526 ईस्वी में बाबर और इब्राहिम लोदी के खिलाफ हरियाणा के पानीपत में भयानक लड़ाई हुई। इस लड़ाई में बाबर जीत गया और उसने इब्राहिम लोदी की हत्या कर दी। इस तरह बाबर का प्रभाव कई क्षेत्रों पर फैल गया।

हालाँकि, चित्तौड़ में राणा सांगा और पूर्व में अफगान उसके लिए मुश्किल खड़ी कर रहे थे। राणा सांगा बाबर की बढ़ती ताकत को रोकने के लिए तैयारी करने लगे। उन्होंने बाबर के अधिकार क्षेत्र वाले आगरा पर चढ़ाई की तैयारी शुरू की। बाबर को इसकी खबर लगी तो उसने अपने बेटे हुमायूँ को बुलाया और आगरा के बाहर धौलपुर, ग्वालियर और बयाना के मजबूत किले पड़ते थे।

बाबर ने पहले इन किलों को अपने अधिकार में लेने की योजना बनाई। वहीं, बयाना का किला पर निजाम खाँ के अधिकार में था। बाबर ने उससे समझौते की कोशिश की। बाद में निजाम खाँ बाबर की तरफ जा मिला। 21 फरवरी 1527 को बयाना में बाबर और राणा सांगा की सेना युद्ध के मैदान में आ गईं। इस युद्ध में बाबर की सेना की करारी हार हुई। वह वापस आगरा लौट गया।

इस युद्ध में बाबर महाराणा सांगा का साथ मारवाड़ के शासक राव गांगा के पुत्र मालदेव, चन्देरी के मेदिनी राय, मेड़ता के रायमल राठौड़, सिरोही के अखैराज दूदा, डूंगरपुर के रावल उदय सिंह, सलूम्बर के रावत रत नसिंह, सादड़ी के झाला अज्जा, गोगुन्दा का झाला सज्जा, उत्तर प्रदेश के चन्दावर क्षेत्र से चन्द्रभान सिंह, माणिकचन्द चौहान और मेहंदी ख्वाजा आदि वीरों ने दिया था।

स्कॉटिश इतिहासकार विलियम एर्स्किन ने लिखा है, बाबर ने राणा सांगा के पराक्रम में पहले से ही जानता था, लेकिन उसका सामना पहली बार बयाना के युद्ध में हुआ। उन्होंने लिखा है, “बयाना में मुगलों को अहसास हुआ कि उनका सामना अफगानों से कहीं भयंकर सेना के साथ हुआ है। राजपूत किसी भी वक्त जंग के मैदान में दो-दो हाथ करने के लिए तैयार रहते थे और जान देने से गुरेज नहीं करते हैं।”

इस युद्ध को लेकर बाबर ने खुद अपनी आत्मकथा ‘बाबरनामा’ में लिखा, “काफिरों ने वो भयंकर युद्ध किया कि मुगल सेना का मनोबल टूट गया। वो घबरा गए थे।” इतिहासकार वीके कृष्णराव के अनुसार, राणा सांगा बाबर को एक आततायी और विदेशी आक्रांता मानते थे। वे दिल्ली और आगरा को जीतकर विदेशी आक्रांताओं का अंत करना चाहते थे।

खानवा का युद्ध और एक तीर ने बदली तकदीर

बयाना के भयानक हार से बाबर हतोत्साहित हो चला था। उसके सैनिक उससे वापस लौटने की बात करने लगे थे। हालाँकि, बाबर एक मौका और आजमाना चाहता था। उसने सेना में एकजुटता रखने के लिए इस्लाम का सहारा लिया। उसने राजपूतों का साथ देने वाले अफगानों को काफिर और गद्दार बताकर अपने साथ मिलाने की कोशिश की। इस्लाम के नाम पर उसने अपने सैनिकों में जोश भर दिया।

उसने अपने सैनिकों से कहा, “सरदारों और सिपाहियों, संसार में आने वाला प्रत्येक मनुष्य अवश्य मरता है। जब हम चले जाएँगे तब एक खुदा ही बाकी रहेगा। यहाँ बदनाम होकर जीने की से अच्छा इज्जत के साथ मरना अच्छा है। खुदा ने हम पर बड़ी मेहरबानी की है। इस जंग में मरेंगे तो ‘शहीद’ होंगे और जीतेंगे तो ‘गाजी’ कहलाएँगे। इसलिए कुरान हाथ में लेकर कसम खाना है कि जान रहते कोई जंग में पीठ नहीं दिखाएगा।”

उधर ‘मानवों का खंडहर’ कहलाने वाले राणा सांगा भी बाबर को अंतिम चोट देना चाहते थे। इसकी तैयारी उन्होंने शुरू कर दी। आखिरकार 16 मार्च 1527 के बाबर और राणा सांगा की सेना आगरा के 60 किलोमीटर पश्चिम में स्थित खानवा में आमने-सामने आ गईं। कहा जाता है कि राणा सांगा की सेना में 1 लाख सैनिक थे, जबकि बाबर के पास 80 हजार। सभी इतिहासकार इसमें एकमत हैं कि राणा सांगा की सेना बाबर से कहीं ज्यादा शक्तिशाली थी।

उस समय बाबर के बारूद से राजपूतों के तलवार से हो रहा था। यह पहली बार था, जब भारत बारूद, तोप और बंदूक देख रहा था। इतिहासकारों का मानना है कि अगर बाबर के पास तोपें नहीं होती तो राणा सांगा को हराना मुश्किल था। अपने पूर्वज बप्पा रावल की तरह की राणा सांगा ने भी हिंदू शासकों का गठबंधन बनाकर विदेशी हमलावरों का मुकाबला कर रहे थे।

इतिहासकार प्रदीप बरुआ लिखते हैं कि अगर बाबर ने तोपों की मदद नहीं ली होती और पानीपत वाली रणनीति न दोहराई होती तो शायद दिल्ली में मेवाड़ का केसरिया ध्वज फहरा रहा होता। इस युद्ध के बाद राणा सांगा द्वारा गठित हिंदुओं का गठबंधन हमेशा के लिए बिखर गया और अगले लगभग 250 सालों तक मुगलों का भारत में शासन रहा।

क्या राणा सांगा ने बाबर को बुलाया था?

इतिहासकारों का मानना है कि पंजाब के गवर्नर दौलत खान दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी की जगह लेना चाहता था। वह यह जानता था कि फरगना का शासक बाबर अफगानिस्तान को जीतते हुए भारत की ओर आ रहा है। वहीं, इब्राहिम लोदी का चाचा आलम खान भी सल्तनत पर कब्जा करना चाहता। वह बाबर को जानता था। आलम खान और दौलत खान ने बाबर को भारत आने का न्योता भेजा।

दरअसल, सन 1523 में बाबर को दिल्ली सल्तनत के प्रमुख लोगों ने भारत आने का निमंत्रण दिया था। इसमें सुल्तान सिकंदर लोदी का भाई आलम खान लोदी, पंजाब के गवर्नर दौलत खान लोदी और इब्राहिम लोदी के चाचा अलाउद्दीन लोदी शामिल था। ये लोग इब्राहिम लोदी के शासन को चुनौती देने के लिए उसकी मदद माँगी थी। आलम खान ने बाबर के दरबार में भी गया किया।

वहाँ आलम खान लोदी ने बाबर से भारत में राजनीतिक अस्थिरता के बारे में बताया था। इसके बाद बाबर ने पंजाब में अपने दूत को भेजा। अपने दूत की रिपोर्ट आलम खान की बात को सही बताया। इसके बाद बाबर हिंदुस्तान फतह करने का सपना देखने लगा। उसने भारत पर सन 1503, फिर 1504, उसके बाद 1518 और 1519 में हमला किया। हालाँकि, सफल नहीं हो पाया।

इसके बाद बाबर ने 1526 में इब्राहिम लोदी के खिलाफ हमला कर दिया। राणा सांगा कई बार के युद्ध में हराकर उसे पहले ही कमजोर कर चुके थे। इसके कारण पानीपत के इस युद्ध में बाबर ने इब्राहिम लोदी को बुरी तरह हराया और हिंदुस्तान की गद्दी पर कब्जा कर लिया। इससे पहले वह गद्दी हथियाने की कोशिश में लगा था, लेकिन उसे राणा संग्राम सिंह उर्फ राणा सांगा से भय था।

इतिहासकार इस बात से इनकार करते हैं कि राणा सांगा ने बाबर को इब्राहिम लोदी को हराने के लिए बुलाया था। दरअसल, राणा सांगा उस समय के सबसे शक्तिशाली शासक थे। उन्होंने राजपूताना (राजस्थान का पुराना नाम) के सभी शासकों को मिलाकर एक गठबंधन बना लिया था। उन्हें हराना नामुमकिन था। उन्होंने दिल्ली के सुल्तान से लेकर शक्तिशाली गुजरात और मालवा के मुस्लिम शासकों को तक को हरा दिया था।

राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी को बार-बार हराया था। यहाँ तक कि एक बार बाबर को भी बयाना के युद्ध में हराया। इसलिए यह कहना है कि राणा सांगा ने बाबर को इब्राहिम लोदी को हराने के लिए बुलाने था, पूरी तरह से गलत है। बयाना के युद्ध में हार के बाद बाबर अपनी आत्मकथा बाबरनामा में खुद लिखा है, “हिंदुस्तान में राणा सांगा और दक्कन में कृष्णदेव राय से महान शासक कोई नहीं है।”

‘राष्ट्रीय राजनीति में मेवाड़ का प्रभाव’ नाम का पुस्तक लिखने वाले डॉक्टर मोहनलाल गुप्ता भी इससे सहमत नहीं है। उन्होंने लिखा है कि बाबर दिल्ली पर कब्जा करना चाहता था और वह इब्राहिम लोदी और राणा सांगा की शत्रुता से परिचित था। इसको देखते हुए बाबर ने राणा सांगा के पास एक दूत भेजा और कहा कि बाबर दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी से युद्ध करना चाहते हैं।

दूत ने राणा सांगा को बताया कि इसी वजह से बाबर ने उनके साथ संधि का पत्र भेजा है। अपनी पुस्तक में मोहनलाल गुप्त आगे लिखते हैं कि बाबर ने आगे लिखा कि वे दिल्ली पर आक्रमण करेगा। हालाँकि, अधिकांश इतिहासकार इससे इत्तेफाक नहीं रखते। उनका मानना है कि उस समय के सबसे शक्तिशाली राजा को किसी बाहरी के सहयोग की जरूरत नहीं थी।

जीएन शर्मा और गौरीशंकर हीराचंद ओझा जैसे कई इतिहासकारों का मानना है कि बाबर ने भारत पर आक्रमण करने की योजना पहले ही बना रखी थी। उसने पानीपत की पहली लड़ाई जीतने से पहले भारत पर आक्रमण का चार बार प्रयास कर चुका था, लेकिन जीत नहीं मिली थी। वह राणा सांगा के पराक्रम से परिचित था। वह चाहता था कि राणा सांगा हस्तक्षेप ना करें।

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