Guru Purnima – The full moon day in the Hindu month of Ashad (July-August) is observed as the auspicious day of Guru Purnima. The spiritual Gurus are revered on this day by remembering their life and teachings.
Guru Purnima Date:
- 2026: Wednesday, 29 July
- 2025: Thursday, 10 July
- 2024: Sunday, 21 July
It is a propitious day of Guru Purnima, a day holy to the memory of the enormous Sage Vyasa. All Hindus are thankful to Saint Vyasa who shortened the four Vedas, also wrote the 18 Puranas, the Srimad Bhagavata, and Mahabharata. Vyasa even educated Dattatreya, who is considered as the “Guru of Gurus”. It is also known as “Vyasa Purnima“.
According to Hindu scriptures, people connect supreme importance to religious gurus. Gurus are frequently compare with God and always thought as a link between the Immortal and the individual. It is the time to start your religious lessons; Guru Purnima is a day for spiritual seekers who receives Diksha, divine power from their Guru’s.
The period of Chaturmas (four months) begins from Guru Purnima day. You may perform on this day Lakshmi Diksha, Kuber Diksha, Kanakdhara Diksha, asta-lakshmi Diksha, Mahavidya Diksha.
The Role of Guru:
Swami Sivananda asks: “Do you realize now the sacred significance and the supreme importance of the Guru’s role in the evolution of man? It was not without reason that the India of the past carefully tended and kept alive the lamp of Guru-Tattva. It is therefore not without reason that India, year after year, age after age, commemorates anew this ancient concept of the Guru, adores it and pays homage to it again and again, and thereby re-affirms its belief and allegiance to it. For, the true Indian knows that the Guru is the only guarantee for the individual to transcend the bondage of sorrow and death, and experience the Consciousness of the Reality.”
Sadhguru explains that the Guru Purnima, one the first 3 full moons after the Summer Solstice, is a very powerful situation for those who are on the spiritual path.
How to Observe Guru Purnima Day:
At the Sivananda Ashram, Rishikesh (Uttarakhand, India), the Guru Purnima is celebrated every year on a grand scale.
- All aspirants awake at Brahmamuhurta, at 4 o’clock. They meditate on the Guru and chant his prayers.
- Later in the day, the sacred worship of the Guru’s Feet is performed. of this worship it is said in the Guru Gita:
Dhyaana moolam guror murtih;
Pooja moolam guror padam;
Mantra moolam guror vakyam;
Moksha moolam guror kripa“The Guru’s form should be meditated upon; the feet of the Guru should be worshiped; his words are to be treated as a sacred Mantra; his Grace ensures final liberation.”
- Sadhus and Sannyasins are then worshiped and fed at noon.
- There is continuous Satsang during which discourses are held on the glory of devotion to the Guru in particular, and on spiritual topics in general.
- Deserving aspirants are initiated into the Holy Order of Sannyas, as this is a highly auspicious occasion.
- Devout disciples fast and spend the whole day in prayer. They also take fresh resolves for spiritual progress.
The Guru’s Advice:
Swami Sivananda recommends: “Wake up at Brahmamuhurta (at 4 a.m.) on this most holy day. Meditate on the lotus feet of your Guru. Mentally pray to him for his Grace, through which alone you can attain Self-realization. Do vigorous Japa and meditate in the early morning hours.”
“After bath, worship the lotus feet of your Guru, or his image or picture with flowers, fruits, incense and camphor. Fast or take only milk and fruits the whole day.”
In the afternoon, sit with other devotees of your Guru and discuss with them the glories and teachings of your Guru.
“Alternatively, you may observe the vow of silence and study the books or writings of your Guru, or mentally reflect upon his teachings. Take fresh resolves on this holy day, to tread the spiritual path in accordance with the precepts of your Guru.”
“At night, assemble again with other devotees, and sing the Names of the Lord and the glories of your Guru. The best form of worship of the Guru is to follow his teachings, to shine as the very embodiment of his teachings, and to propagate his glory and his message.”
Sadhguru explains why Guru Purnima is so significant, and tells us how this is the day Adiyogi, the first yogi, became a guru, and transmitted technologies to evolve oneself beyond all boundaries. “The limitations of life and death, one can cross, if one is willing to strive for it,” Sadhguru says.
Guru Purnima Greeting Cards
जानिए पूजाविधि व गुरु नहीं हैं तो कैसे करें पूजा
गुरु पूर्णिमा पर्व गुरु की पूजा करने और उनके प्रति सम्मान प्रकट करने का त्योहार है। गुरु पूर्णिमा के दिन बहुत से लोग अपने दिवंगत गुरु अथवा ब्रह्मलीन संतों के चिता या उनकी पादुका का धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, चंदन, नैवेद्य आदि से विधिवत पूजन करते हैं।
गुरु पूर्णिमा पर ऐसे करें पूजा (Guru Purnima)
- गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर दैनिक क्रिया से निवृत्त होकर स्नान कर लें।
- स्नान ध्यान करके भगवान विष्णु, शिवजी की पूजा करने बाद गुरु बृहस्पति, महर्षि वेदव्यास की पूजा करें इसके बाद अपने गुरु की पूजा करें।
- घर की उत्तर दिशा में सफेद वस्त्र पर गुरु का चित्र रखें।
- गुरु को फूलों की माला पहनाएं, मिठाई से भोग लगाएं एवं आरती उतारकर उनसे आशीर्वाद ग्रहण करें।
- ध्यान रहे कि सफेद या फिर पीले वस्त्र पहनकर गुरु पूर्णिमा की पूजा करें।
आध्यात्मिक गुरु नहीं हैं तो
इस दिन आप अपने गुरु और टीचर्स के प्रति भी आभार व्यक्त कर सकते हैं। यदि आपने किसी को अपना आध्यात्मिक गुरु नहीं बनाया है तो आप वेद पुराण और शास्त्रों की भी पूजा कर सकते हैं। आज ही के दिन ऋषि वेदव्यासजी ने वेदों का विस्तार करने के बाद पहली बार अपने शिष्यों को पुराणों का ज्ञान दिया था। इसलिए इस आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं।
Guru Purnima: जानिए गुरु और किन्हें माना जाता है ब्रह्मांड का पहला गुरु
विभिन्नताओं से भरे हमारे देश में हर रिश्ते को सम्मान देने और उनकी कृतज्ञता को व्यक्त करने के लिए कोई न कोई त्योहार या फिर कोई न कोई अवसर निहित है। इसी प्रकार गुरु पूर्णिमा का पर्व पूरे देश में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु के प्रति आदर-सम्मान और अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के पर्व के रूप में मनाते हैं। इस बार यह गुरु पूर्णिमा 16 जुलाई यानी मंगलवार को है। भारतीय संस्कृति में गुरु को देवता के तुल्य माना गया है। गुरु को हमेशा से ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूज्य माना गया है।
महर्षि वेदव्यास को समर्पित है यह पर्व
वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन करने वाले वेद व्यास जी को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है। महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग 3000 ई. पूर्व में हुआ था। उनके सम्मान में ही हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है। बहुत से लोग इस दिन व्यास जी के चित्र का पूजन और उनके द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन करते हैं। बहुत से मठों और आश्रमों में लोग ब्रह्मलीन संतों की मूर्ति या समाधी की पूजा करते हैं।
गुरु पूर्णिमा का महत्व
गुरु पूर्णिमा के दिन बहुत से लोग अपने दिवंगत गुरु अथवा ब्रह्मलीन संतों के चिता या उनकी पादुका का धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, चंदन, नैवेद्य आदि से विधिवत पूजन करते हैं। गुरु को ब्रह्म कहा गया है, क्योंकि जिस प्रकार से वह जीव का सर्जन करते हैं, ठीक उसी प्रकार से गुरु शिष्य का सर्जन करते हैं। हमारी आत्मा ईश्वर रूपी सत्य का साक्षात्कार करने के लिए बेचैन है और ये साक्षात्कार वर्तमान शरीरधारी पूर्ण गुरु के मिले बिना संभव नहीं है, इसीलिए हर जन्म में वो गुरु की तलाश करती है।
शिव हैं सबसे पहले गुरु
पुराणों के अनुसार, भगवान शिव सबसे पहले गुरु माने जाते हैं। शनि और परशुराम इनके दो शिष्य हैं। शिवजी ने ही सबसे पहले धरती पर सभ्यता और धर्म का प्रचार-प्रसार किया था इसलिए उन्हें आदिदेव और आदिगुरु कहा जाता है। शिव को आदिनाथ भी कहा जाता है। आदिगुरु शिव ने शनि और परशुराम के साथ 7 लोगों को दिया। ये ही आगे चलकर सात ह्मर्षि कहलाए और इन्होंने आगे चलकर शिव के ज्ञान को चारों तरफ फैलाया।
Guru Poornima Facebook Covers:
जानिए क्यों आषाढ़ में ही पड़ती है गुरु पूर्णिमा और किसलिए मनाते हैं यह त्योहार
एक बालक को जन्म भले ही मां-बाप देते हैं लेकिन उसको जीवन का अर्थ और इस संसार के बारे में समझाने का कार्य गुरु करता है। गुरु को ब्रह्म कहा गया है, क्योंकि जिस प्रकार से वह जीव का सर्जन करते हैं, ठीक उसी प्रकार से गुरु अपने शिष्य का सर्जन करते हैं। गुरु के प्रति आदर-सम्मान और अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का विशेष पर्व मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा को गुरु की पूजा की जाती है। इस बार यह गुरु पूर्णिमा 16 जुलाई यानी मंगलवार को पड़ रही है
शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार और रु का का अर्थ – उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाता है। प्राचीन काल में शिष्य जब गुरु के आश्रम में नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करते थे तो इसी दिन पूर्ण श्रद्धा से अपने गुरु की पूजा का आयोजन करते थे।
क्यों मनाते हैं गुरु पूर्णिमा?
भारतीय संस्कृति में गुरु देवता को तुल्य माना गया है। गुरु को हमेशा से ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूज्य माना गया है। वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन करने वाले वेद व्यास जी को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है। महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग 3000 ई. पूर्व में हुआ था। उनके सम्मान में ही हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन व्यास जी ने शिष्यों एवं मुनियों को सर्वप्रथम श्री भागवतपुराण का ज्ञान दिया था। अत: यह शुभ दिन व्यास पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।
इसी दिन वेदव्यास के अनेक शिष्यों में से पांच शिष्यों ने गुरु पूजा की परंपरा प्रारंभ की। पुष्पमंडप में उच्चासन पर गुरु यानी व्यास जी को बिठाकर पुष्प मालाएं अर्पित कीं, आरती की तथा अपने ग्रंथ अर्पित किए थे। जिस कारण हर साल इस दिन लोग व्यास जी के चित्र का पूजन और उनके द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन करते हैं। कई मठों और आश्रमों में लोग ब्रह्मलीन संतों की मूर्ति या समाधि की पूजा करते हैं।
इसलिए आषाढ़ में पड़ती है गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima)
भारत वर्ष में सभी ऋतुओं का अपना ही महत्व है। गुरु पूर्णिमा खास तौर पर वर्षा ऋतु में मनाने के पीछे भी एक कारण है, क्योंकि इन चार माह में न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी होती है। यह समय अध्ययन और अध्यापन के लिए अनुकूल व सर्वश्रेष्ठ है। इसलिए गुरुचरण में उपस्थित शिष्य ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति को प्राप्त करने हेतु इस समय का चयन करते हैं।
वैसे तो हर दिन गुरु की सेवा करनी चाहिए लेकिन इस दिन हर शिष्य को अपने गुरु की पूजा कर अपने जीवन को सार्थक करना चाहिए। वर्ष की अन्य सभी पूर्णिमाओं में इस पूर्णिमा का महत्व सबसे ज्यादा है। इस पूर्णिमा को इतनी श्रेष्ठता प्राप्त है कि इस एकमात्र पूर्णिमा का पालन करने से ही वर्ष भर की पूर्णिमाओं का फल प्राप्त होता है। गुरु पूर्णिमा एक ऐसा पर्व है, जिसमें हम अपने गुरुजनों, महापुरुषों, माता-पिता एवं श्रेष्ठजनों के लिए कृतज्ञता और आभार व्यक्त करते हैं।
गुरु पूर्णिमा मनाने के ये होते हैं फायदे: श्री श्री रविशंकरगुरु
एक सर्किट ब्रेकर की तरह है। जब आप जीवन को संभाल नही सकते, आपके गुरु आते हैं और आपकी रक्षा करते हैं ताकि आप संतुलित रह सको। यदि कोई आपके साथ हो और लगातार इच्छाओं के लिये मजबूर कर रहा हो तो गुरु आपको शांति प्रदान करते हैं। आप अपनी सभी इच्छाएं और पीड़ा गुरु को समर्पित कर दो। गुरु प्राप्ति का अर्थ है सदैव विश्राम में रहना और मुस्कुराना, आत्मविश्वास से चलना, निर्भय होकर रहना।
गुरु एक तत्व है – एक गुणवत्ता जो आपके भीतर है। यह एक शरीर तक सीमित नही है। गुरु आपके जीवन में आते हैं, चाहे आप अस्वीकार कर दें या अवज्ञाकारी हो जाएं। गुरु सिध्दांत जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है। हर मनुष्य में गुरु तत्व होता है। यही बुध्दिमता सब में जगानी है। जब यह तत्व जागृत हो जाता है तब जीवन की सभी परेशानियां समाप्त हो जाती हैं।
गुरु पूर्णिमा अपने विकास की समीक्षा का दिन है। यही समीक्षा आपको प्रोत्साहित करती है। यदि आपको लगता है कि आपने आध्यात्मिकता के पथ पर गत कुछ वर्षो में कोई विकास नही किया है तो आपने ज्ञान का प्रयोग नही किया है। यदि आप कहीं अटक गए हैं तो यह जान लो आपका विकास भी अटक गया है।
इसीलिए हम गुरु पूर्णिमा मनाते हैं। यह वह दिन है जब भक्त पूर्ण कृतज्ञता से भर जाता है और इस महान ज्ञान के प्रति अपना सम्मान प्रकट करता है जो उसे अपने गुरु से प्राप्त हुआ है। यह समय है इस बात की समीक्षा करने का कि आप कितना ज्ञान में जीते है और आपने जीवन में कितना ज्ञान अर्जित किया है।
यह अनुभव आपमें विकास का आधार बन सकता है जो कि आपमें विनम्रता लाता है। इस मार्ग के प्रति, जो कि आपके जीवन में इतना परिवर्तन लेकर आया है कि कृतज्ञ हो जाएं। बस थोड़ा सा ये सोचे कि इसके बिना आप कैसे हो सकते थे। कृतज्ञता और विनम्रता साथ मिलकर आप में एक सही प्रार्थना को खिलाते हैं।
गुरु पूर्णिमा पर पूर्व में हुए सभी गुरुओं को याद करें। जब आपका जीवन पूर्ण होता है, तब आपमें कृतज्ञता आती है, तब आप गुरु के साथ आरंभ होते हैं और और जीवन में प्रत्येक वस्तु की प्राप्ति पर समाप्त होते हैं। गुरु पूर्णिमा पर हर भक्त कृतज्ञता में जागता है। भक्त एक अंतरिम सागर की तरह अनुभव करता है। गुरु पूर्णिमा भक्ति में विकास और कृतज्ञता का उत्सव है।
~ श्री श्री रविशंकरगुरु (www.artofliving.org)
आखिर क्यों मनाते हैं गुरु पूर्णिमा…
जीवन में गुरु का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान
जीवन में गुरु का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान होता है। धर्म शास्त्रों में भी कहा गया है कि बिना गुरु के ईश्वर नहीं मिलता। इसलिए जीवन में गुरु का होना अत्यंत आवश्यक है। सनातन धर्म में गुरु की महिमा का बखान अलग-अलग स्वरूपों में किया गया है। इसी कड़ी में आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का विशेष पर्व मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा को गुरु की पूजा की जाती है।
आइए जानते हैं क्यों मनाते हैं गुरु पूर्णिमा और क्या है इसका महत्व?
सबसे पहले जान लें गुरु का अर्थ
शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है – अंधकार और रु का का अर्थ- उसका निरोधक। गुरु को गुरु इसलिए कहा जाता है कि वह अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाता है। प्राचीन काल में शिष्य जब गुरु के आश्रम में नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करते थे तो इसी दिन पूर्ण श्रद्धा से अपने गुरु की पूजा का आयोजन करते थे।
इसलिए मनाते हैं गुरु पूर्णिमा का पर्व
भारतीय संस्कृति में गुरु देवता को तुल्य माना गया है। गुरु को हमेशा से ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूज्य माना गया है। वेद, उपनिषद और पुराणों का प्रणयन करने वाले वेद व्यास जी को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है। महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को लगभग 3000 ई. पूर्व में हुआ था। उनके सम्मान में ही हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन व्यास जी ने शिष्यों एवं मुनियों को सर्वप्रथम श्री भागवतपुराण का ज्ञान दिया था। अत: यह शुभ दिन व्यास पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है।
इसी दिन वेद व्यास के शिष्यों ने शुरु की थी यह परंपरा
इसी दिन वेदव्यास के अनेक शिष्यों में से पांच शिष्यों ने गुरु पूजा की परंपरा प्रारंभ की। पुष्पमंडप में उच्चासन पर गुरु यानी व्यास जी को बिठाकर पुष्प मालाएं अर्पित कीं, आरती की तथा अपने ग्रंथ अर्पित किए थे। जिस कारण हर साल इस दिन लोग व्यास जी के चित्र का पूजन और उनके द्वारा रचित ग्रंथों का अध्ययन करते हैं। कई मठों और आश्रमों में लोग ब्रह्मलीन संतों की मूर्ति या समाधि की पूजा करते हैं।
इसलिए आषाढ़ में पड़ती है गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima)
भारत वर्ष में सभी ऋतुओं का अपना ही महत्व है। गुरु पूर्णिमा खास तौर पर वर्षा ऋतु में मनाने के पीछे भी एक कारण है। क्योंकि इन चार माह में न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी होती है। यह समय अध्ययन और अध्यापन के लिए अनुकूल व सर्वश्रेष्ठ है। इसलिए गुरु चरण में उपस्थित शिष्य ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति को प्राप्त करने हेतु इस समय का चयन करते हैं। वैसे तो हर दिन गुरु की सेवा करनी चाहिए लेकिन इस दिन हर शिष्य को अपने गुरु की पूजा कर अपने जीवन को सार्थक करना चाहिए।
अत्यंत महत्वपूर्ण है यह आषाढ़ी गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima)
वर्ष की अन्य सभी पूर्णिमाओं में इस पूर्णिमा का महत्व सबसे ज्यादा है। इस पूर्णिमा को इतनी श्रेष्ठता प्राप्त है कि इस एकमात्र पूर्णिमा का पालन करने से ही वर्ष भर की पूर्णिमाओं का फल प्राप्त होता है। गुरु पूर्णिमा एक ऐसा पर्व है, जिसमें हम अपने गुरुजनों, महापुरुषों, माता-पिता एवं श्रेष्ठजनों के लिए कृतज्ञता और आभार व्यक्त करते हैं।