Diwali Festival Hindi Rhyme दिवाली आई, दिवाली आई

दिवाली आई, दिवाली आई: हिंदी बाल-कविता

दिवाली आई, दिवाली आई: हिंदी बाल-कविता

दिवाली आई, दिवाली आई, खुशियो की बहार लायी।

धूम धमक धूम-धूम, चकरी, बम, हवाई इनसे बचना भाई।

दिवाली आई, दिवाली आई, खुशियो की बहार लायी।

पटाखे बाजे धूम-धूम, धूम-धूम।

आओ मिलकर नाचे गए हम और तुम…।

Diwali Aayi, Diwali Aayi

घर घर दीप जलेंगे, आएगी मिठाई।

दिवाली आई, दिवाली आई, खुशियो की बहार लायी।

धूम धमक धूम-धूम, चकरी, बम, हवाई इनसे बचना भाई।

दिवाली आई, दिवाली आई।

देखें अलग-अलग समाज में दिवाली मनाने का अनोखा अंदाज

दिवाली त्योहार है खुशियों का… रोशनी का… और अपनेपन का। शहर की हर कम्युनिटी में अपनेपन की यह मिठास घुली है। बंगाली, जैन, कायस्थ, कुमाऊंनी, सिख और अग्रवाल हर कम्युनिटी खुशियों और मिठास के दीयों से रोशन है। देश के अलग-अलग राज्यों की संस्कृति अलग है लेकिन होली और दीपावली जैसे त्योहार सभी को एक सूत्र में बांध देते हैं। आइए दिवाली पर किए जाने वाले कुछ ऐसे ही रिवाज और परंपराओं के बारे में जानते हैं…

कायस्थ समाज: होती है कलम-दवात की पूजा – दिवाली आई

कायस्थ समाज में दिवाली के बाद कलम-दवात की पूजा भी होती है। कायस्थ समाज के आध्यात्मिक प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बलदाऊजी श्रीवास्तव ने बताया कि पदम पुराण के अनुसार, जब ऋषियों के तप-बल के आगे यमराज धराशायी होने लगे, तब ब्रह्मा के तप से चित्रगुप्त प्रकट हुए। ब्रह्मा की काया में बसने के कारण चित्रगुप्त भगवान का समाज कायस्थ कहलाया। भगवान चित्रगुप्त कार्तिक शुक्ल द्वितीया को प्रकट हुए थे। ऐसे में इस दिन उनकी विशेष आराधना होती है। इस दिन स्नान के बाद भगवान चित्रगुप्त और कलम-दवात की पंच द्रव्य- दही, गौरस, दूध, चंदन और घी से पूजा होती है। इसके साथ एक कागज पर कम से कम 11 बार “ऊं यमाय धर्मराजाय श्री चित्रगुप्ताय वै नमः” लिख कर इसे एक साल के लिए सुरक्षित रख दिया जाता है और बीते साल का कागज जल में प्रवाहित किया जाता है। इससे पहले दिवाली पर कलम-दवात को लक्ष्मी-गणेश के सामने रखकर पूजा की जाती है। इसके बाद दो दिन लेखनी संबंधी काम बंद रखने की परंपरा थी। इस दौरान लोग अध्यात्म-सत्संग करते थे। बाद में दो दिन की यह छुट्टी ताश खेलने में बीतने लगी।

बंगीय समाज: रात भर होती है काली पूजन – दिवाली आई

बंगीय समाज दिवाली पर महाकाली की पूजा करता है। बंगाली समाज के वरिष्ठ पंडित वीरबहादुर राय चौधरी ने बताया कि इस दिन दीपमाला सजाने या आतिशबाजी की परंपरा नहीं है। जिस जगह दुर्गोत्सव का आयोजन हुआ हो, वहां बाकायदा प्रतिमा स्थापित कर महाकाली का पूजन किया जाता है। इसी तर्ज पर अलीगंज के चंद्रशेखर पार्क में ट्रांस गोमती दशहरा एवं दुर्गापूजा कमिटी की ओर से 27 अक्टूबर को श्रीश्रीश्याम पूजन किया जाएगा। मूल बंगीय परंपरा के अनुसार, निशा पूजन में रात दस बजे मां काली की प्रतिमा स्थापित की जाएगी। कलश स्थापना, चक्षुदान, प्राण प्रतिष्ठा के साथ मां भगवती, महाकाल और गुप्त देव सदाशिव का आवाह्न किया जाएगा। फिर मां के अस्त्रों का पूजन होगा। भैरवनाथ की आराधना के बाद मां काली की 15 शक्तियों का पूजन किया जाता है। गन्ना, कूष्मांडा और केले की सांकेतिक बली दी जाती है। महाभोग में खिचड़ी, खीर, पनीर, गोभी आदि की सब्जियां अर्पित की जाती हैं। पुष्पांजलि के बाद रात करीब ढाई बजे हवन शुरू होता है। यह सारा अनुष्ठान सुबह चार बजे तक चलता है। जो लोग इस महानिशा पूजन में पंडालों तक नहीं पहुंच पाते, वे घर पर ही पूजन करते हैं।

जैन समाज: महावीर स्वामी को चढ़ता है लाडू

जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी का मोक्ष निर्वाण कार्तिक अमावस्या पर हुआ था। ऐसे में दिवाली पर खासतौर से महावीर स्वामी की पूजा होती है। श्री दिगम्बर जैन तीर्थ संरक्षणी महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. अभय जैन के मुताबिक, मोक्ष निर्वाण पूजन के लिए समाज के लोग जैन मंदिरों में सुबह से जुटने लगते हैं। महावीर स्वामी को 24 किलो का लाडू चढ़ाया जाता है। इसके साथ जलाभिषेक और शांतिधारा के बाद विश्व कल्याण के लिए प्रार्थना होती है। शाम को भगवान महावीर के प्रमुख गणधर इंद्रभूति गौतम और 11 अन्य का मोक्ष कल्याणक मनाया जाता है। इस तरह चार महीने चलने वाला चातुर्मास संपन्न हो जाता है। इस बार मुनिश्री विशोक सागर, आर्यिका 105 विपुलमती माता और 105 विमुक्तमती माता ने शहर में चातुर्मास किया। यूं तो जैन समाज मोक्ष निर्वाण दिवस पर व्रत रखता है, लेकिन कुछ बरसों से दिवाली का उत्साह भी दिखने लगा है। अब शाम को पूजन के बाद पक्का खाना खाया जाता है। इसमें रोटी-चावल के बजाय पूड़ी-सब्जी और चावल की खीर खाई जाती है। यही नहीं, घर को दीपकों से रोशन भी किया जाता है।

सिख समाज: मनाते हैं बंदी छोड़ दिवस

सिख समाज दिवाली के दिन बंदी छोड़ दिवस मनाता है। लखनऊ गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के महामंत्री हरपाल सिंह ने बताया कि गुरु अर्जुन देव के पुत्र गुरु हरगोविंद ने अमृतसर की रक्षा के लिए अकाल तख्त का गठन किया था। इससे आक्रोशित होकर जहांगीर ने उन्हें कारागार में डलवा दिया। इससे सिख समाज में पनपे असंतोष से विचलित हो जहांगीर ने आखिरकार गुरु हरगोविंद को आजाद करने का फैसला लिया, लेकिन गुरु हरगोविंद साहब ने आपसी भाईचारे का परिचय देते हुए अपने साथ सभी 52 हिंदू राजाओं की रिहाई की भी मांग की। इस पर जहांगीर ने चालाकी दिखाते हुए कहा कि जो राजा गुरु हरगोविंद साहब के कुर्ते को पकड़कर कारागार से बाहर आ पाए, वे आजाद कर दिए जाएंगे। इस पर गुरु गोविंद सिंह ने 52 कली का खास कुर्ता बनवाया। उसे थाम कर कर सभी हिंदू राजा आजाद हो गए। इसी की याद में सिख समाज बंदी छोड़ दिवस मनाता है। इस दिन गुरुद्वारों में विशेष दीवान होते हैं।

अग्रवाल समाज: बरकरार है बहीखाता पूजन की परंपरा

अग्रवाल समाज में दिवाली पर लक्ष्मी-गणेश और बहीखाते की पूजा होती है। श्री अग्रवाल समाज लखनऊ के मंत्री भारत भूषण गुप्ता ने बताया कि दिवाली पर नए बहीखाते का पूजन कर भाई दूज से इसका प्रयोग शुरू किया जाता है। धनतेरस पर लक्ष्मी-गणेश और हनुमान जी की प्रतिमाएं खरीदी जाती हैं और भगवान धन्वंतरि का भी पूजन होता है। बड़ी दिवाली पर नए बहीखाते पर ‘श्री गणेशाय नम:’ लिखा जाता है। इसी तरह रामभक्त हनुमान, धन के देवता कुबेर, खाटू श्याम बाबा और कुल देवता का नाम लिखा जाता है। इसके अलावा स्वास्तिक के साथ शुभ लाभ रिद्धि सिद्धि लिखा जाता है। पूजन में खासतौर से पान, सुपारी, इलायची, लौंग, कमलगट्टा, दूब और एक सिक्का रखा जाता है। पूजन के बाद लाल कपड़े के बसना में बहीखाते को संभाल कर रखा जाता है। वक्त के साथ लेनदेन का हिसाब अब कम्यूटर पर होने लगा है। ऐसे में अब बहीखाते के प्रतीक के तौर पर बिलों की फाइल और कलम दवात की जगह पेन का पूजन किया जाने लगा है। इसके अलावा अन्नकूट पर सब्जियों का पौष्टिक और आयुर्वेदिक पकवान तैयार कर भोग लगाया जाता है।

पर्वतीय समाज: ऐपण की परंपरा

कुमाऊंनी भाषा में त्योहार को ‘त्यार’ कहते हैं। पर्वतीय समाज के वरिष्ठ संस्कृतिविद व गायक महेंद्र पंत ने बताया कि धनतेरस पर सामान्य पूजन और खरीदारी की जाती है, लेकिन इसके अलगे दिन नरक चतुर्दशी पर स्नान का खास महत्व होता है। इस दिन शाम को बड़ा दीपक रोशन किया जाता है। इसमें परिवार के सभी सदस्य के नाम से रुई की बाती डाली जाती है। दिवाली पर पिसे चावल के पेस्ट से जमीन पर रंगोली बनाई जाती है। इसे ऐपण कहते हैं। इसके साथ महालक्ष्मी के पांव, घर में प्रवेश करते हुए बनाए जाते हैं। फिर लक्ष्मी-गणेश की पूजा होती है। इसके बाद गोवर्धन पूजा पर भगवान कृष्ण और गौ माता का पूजन किया जाता है। इस दिन गौमाता का शृंगार किया जाता है। वहीं, भैयादूज को ‘दुतिया का त्यार’ करते हैं। इस दिन घरों में विशेष पकवान- सिंगल बनता है। बहनें भाई को टीका करती हैं।

महाराष्ट्र समाज: करते हैं गाय-बछड़े की पूजा

धनतेरस से एक दिन पहले मराठी समाज गाय-बछड़े की पूजा करता है। कटरा मकबूलगंज महाराष्ट्र समाज संगठन के अध्यक्ष विवेक फड़के ने बताया कि इस दिन माताएं अपने बच्चों की समृद्धि के लिए व्रत रखती हैं। छोटी दिवाली पर सूर्योदय से पहले समाज के लोग उबटन लगाकर सूर्योदय से पहले स्नान करते हैं। इसके साथ दीप रौशन कर आतिशबाजी का भी चलन है। बड़ी दिवाली पर गणेश-लक्ष्मी का पूजन होता है। समाज के लोग दिवाली पर गुझिया, करंजी, चकली, लड्डू और सेव तैयार करते हैं। वहीं, जिस लड़के की हाल में शादी हुई हो, उसे ससुराल की तरफ से तोहफे भेंट किए जाते हैं। इसके साथ समाज में दूज पूजन की भी परंपरा है।

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