महिलाएं और आत्म-सम्मान: अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस

महिलाएं और आत्म-सम्मान: नई शताब्दी में महिलाओं की एक नई छवि उभर कर सामने आई है। सदियों से जो महिलाएं बेडिय़ों में जकड़ी थीं वे आज अनके बंधन से मुक्त हो कर अपनी नई पहचान बनाने में बहुत हद तक कामयाब भी हैं। आज की महिलाएं अबला नहीं रही, कहीं ज्यादा सक्षम और सबल हो चुकी हैं। इस संदर्भ में स्वामी विवेकानंद जी ने वर्षों पूर्व कहा था कि किसी भी राष्ट्र की प्रगति का सर्वोत्तम थर्मामीटर है वहां की महिलाओं की स्थिति।

महिलाएं और आत्म-सम्मान

घर-गृहस्थी हो या सामाजिक जीवन दोनों जगह ही महिलाओं की भूमिका अहम है। महिलाएं वंदनीय एवं पूजनिय हैं। उनका सम्मान सदा बना रहे इसके लिए गरुड़ पुराण में वर्णित है कि महिलाओं को 4 बातें अपने जीवन में अपनानी चाहिए।

शादी के उपरांत पत्नी को सदा पति के साथ ही रहना चाहिए। अधिक दिनों तक उनसे दूर नहीं रहना चाहिए। पति व्यापार संबंधित काम के लिए विदेश चला जाए तो स्त्री मानसिक रूप से कमजोर पड़ जाती है क्योंकि पति की अनुपस्थिती में उसे बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जीवनसाथी का संग होने से स्त्री सशक्त और सुरक्षित रहती है।

समाज में महिलाएं कभी भी स्वतंत्र रूप से निर्वाह नहीं कर पाई हैं। शास्त्रों के अनुसार बचपन में उन्हें पिता का, जवानी में पति का और वृद्धावस्था में पुत्र के साथ की आवश्यकता होती है।

महिलाएं जीवन के किसी भी पड़ाव पर चरित्रहीन लोगों का संग न करें अन्यथा भविष्य में उन्हें असुरक्षा, अपयश और अपमान का सामना करना पड़ेगा। महिलाओं का चरित्रबल संसार में सब बलों में श्रेष्ठ और सब संपत्तियों में मूल्यवान संपत्ति है। चरित्रवान स्त्री की आत्मा उज्जवल एवं बलिष्ठ होती है। महिलाओं का चरित्र ही उनके लिए अमर उपलब्धि है। तभी तो वह नारी से देवी बन जाती हैं।

जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए सुख और आनंद ऐसे इत्र हैं, जिन्हें जितना अधिक दूसरों पर छिड़केंगे, उतनी ही सुगंध आपके भीतर समाएगी। दूसरों के प्रति प्रेम भाव, सेवा-परोपकार, उदारता और मधुरता का व्यवहार मानव जीवन को तनाव से मुक्त कर देता है लेकिन ऐसा ही व्यवहार आपका अपने पारिवारिक सदस्यों के प्रति होगा तो सोने पे सुहागे का काम करेगा।

महिलाओं को कभी भी किसी पराए घर में नहीं रहना चाहिए। जो स्त्री पराए घर में रहती है उसे समाज में गलत न होते हुए भी गलत समझा जाता है। देवी सीता के अग्नि परिक्षा देने पर भी समाज ने उन पर बहुत से आरोप लगाएं। श्रीराम को अपनी प्राण प्रिया को स्वयं से अलग करना पड़ा।

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