क्रिसमस डे पर कविता: राहुल उपाध्याय
छुटि्टयों का मौसम है
त्योहार की तैयारी है
रौशन हैं इमारतें
जैसे जन्नत पधारी है।
कड़ाके की ठंड है
और बादल भी भारी है
बावजूद इसके लोगों में जोश है
और बच्चे मार रहे किलकारी हैं
यहाँ तक कि पतझड़ की पत्तियाँ भी
लग रही सबको प्यारी हैं
दे रहे हैं वो भी दान
जो धन के पुजारी हैं।
खुश हैं ख़रीदार
और व्यस्त व्यापारी हैं
खुशहाल हैं दोनों
जबकि दोनों ही उधारी हैं।
भूल गई यीशु का जनम
ये दुनिया संसारी है
भाग रही है उसके पीछे
जिसे हो हो हो की बीमारी है।
लाल सूट और सफ़ेद दाढ़ी
क्या शान से सँवारी है
मिलता है वो मॉल में
पक्का बाज़ारी है।
बच्चे हैं उसके दीवाने
जैसे जादू की पिटारी है
झूम रहे हैं जम्हूरे वैसे
जैसे झूमता मदारी हैं।
∼ राहुल उपाध्याय
क्रिसमस या बड़ा दिन ईसाई धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि यह वह दिन है जब ईसा मसीह का जन्म हुआ था। क्रिसमस का यह त्योहार पूरे 12 दिनों का त्योहार होता है जिसकी शुरुआत 25 दिसंबर के दिन से होती है। क्रिसमस के त्योहार को लेकर लोगों में विशेष उत्साह रहता है, इस दिन हर जगह रंगबिरंगी झांकिया, झालरों से सजे क्रिसमस ट्री और सितारे दिखाई देते है। भले ही यह त्योहार ईसाई धर्म का पर्व हो फिर भी भारत में सभी धर्मों के लोग इसे काफी उत्साह के साथ मनाते है और यह दिन पूरे देशभर में एक सार्वजनिक अवकाश के रुप में घोषित है। भारत के कई राज्यों में क्रिसमस का यह त्योहार काफी भव्य रुप से मनाया जाता है, जिसमें गोआ सबसे प्रमुख है।
क्रिसमस का यह त्योहार हमें यीशु के जन्म, संघर्ष और बलिदान की याद दिलाता है, कि आखिर कैसे उन्होंने मानवता के भलाई के लिए तमाम कष्टों को सहा और सूली पर चढ़ाने के बाद भी उन्होंने अपने हत्यारों को भी माफ कर दिया। उनके द्वारा प्रदान की गई यहीं सिखे मानव समाज को सदैव आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं।