हल्दीघाटी: अष्टादश सर्ग – श्याम नारायण पाण्डेय

अष्टादश सर्ग : मेवाड़ सिंहासन

यह एकलिंग का आसन है,
इस पर न किसी का शासन है।
नित सिहक रहा कमलासन है,
यह सिंहासन सिंहासन है ॥१॥

यह सम्मानित अधिराजों से,
अर्चत है, राज–समाजों से।
इसके पद–रज पोंछे जाते
भूपों के सिर के ताजों से ॥२॥

इसकी रक्षा के लिए हुई
कुबार्नी पर कुबार्नी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर
यह सिंहासन अभिमानी है ॥३॥

खिलजी–तलवारों के नीचे
थरथरा रहा था अवनी–तल।
वह रत्नसिंह था रत्नसिंह,
जिसने कर दिया उसे शीतल ॥४॥

मेवाड़–भूमि–बलिवेदी पर
होते बलि शिशु रनिवासों के।
गोरा–बादल–रण–कौशल से
उज्ज्वल पन्ने इतिहासों के ॥५॥

जिसने जौहर को जन्म दिया
वह वीर पद्मिनी रानी है।
राणा, तू इसकी रक्षा कर,
यह सिंहासन अभिमानी है ॥६॥

मूंजा के सिर के शोणित से
जिसके भाले की प्यास बुझी।
हम्मीर वीर वह था जिसकी
असि वैरी–उर कर पार जुझी ॥७॥

प्रण किया वीरवर चूड़ा ने
जननी–पद–सेवा करने का।
कुम्भा ने भी व्रत ठान लिया।
रत्नों से अंचल भरने का ॥८॥

यह वीर–प्रसविनी वीर–भूमि,
रजपूती की रजधानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर
यह सिंहासन अभिमानी है ॥९॥

जयमल ने जीवन–दान किया।
पत्ता ने अर्पण प्रान किया।
कल्ला ने इसकी रक्षा में
अपना सब कुछ कुबार्न किया ॥१०॥

सांगा को अस्सी घाव लगे,
मरहमपट्टी थी आंखों पर।
तो भी उसकी असि बिजली सी
फिर गई छपाछप लाखों पर ॥११॥

अब भी करूणा की करूण–कथा
हम सबको याद जबानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर
यह सिंहासन अभिमानी है ॥१२॥

क्रीड़ा होती हथियारों से,
होती थी केलि कटारों से।
असि–धार देखने को उंगली
कट जाती थी तलवारों से ॥१३॥

हल्दी–घाटी का भैरव–पथ
रंग दिया गया था खूनों से।
जननी–पद–अर्चन किया गया
जीवन के विकच प्रसूनों से ॥१४॥

अब तक उस भीषण घाटी के
कण–कण की चढ़ी जवानी है!
राणा! तू इसकी रक्षा कर,
यह सिंहासन अभिमानी है ॥१५॥

भीलों में रण–झंकार अभी,
लटकी कटि में तलवार अभी।
भोलेपन में ललकार अभी,
आंखों में हैं अंगार अभी ॥१६॥

गिरिवर के उन्नत–श्रृंगों पर
तरू के मेवे आहार बने।
इसकी रक्षा के लिए शिखर थे,
राणा के दरबार बने ॥१७॥

जावरमाला के गह्वर में
अब भी तो निर्मल पानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर,
यह सिंहासन अभिमानी है ॥१८॥

चूंड़ावत ने तन भूषित कर
युवती के सिर की माला से।
खलबली मचा दी मुगलों में,
अपने भीषणतम भाला से ॥१९॥

घोड़े को गज पर चढ़ा दिया,
्’मत मारो्’ मुगल–पुकार हुई।
फिर राजसिंह–चूंड़ावत से
अवरंगजेब की हार हुई ॥२०॥

वह चारूमती रानी थी,
जिसकी चेरि बनी मुगलानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर,
यह सिंहासन अभिमानी है ॥२१॥

कुछ ही दिन बीते फतहसिंह
मेवाड़–देश का शासक था।
वह राणा तेज उपासक था
तेजस्वी था अरि–नाशक था ॥२२॥

उसके चरणों को चूम लिया
कर लिया समर्चन लाखों ने।
टकटकी लगा उसकी छवि को
देखा कजन की आंखों ने ॥२३॥

सुनता हूं उस मरदाने की
दिल्ली की अजब कहानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर,
यह सिंहासन अभिमानी है ॥२४॥

तुझमें चूंड़ा सा त्याग भरा,
बापा–कुल का अनुराग भरा।
राणा–प्रताप सा रग–रग में
जननी–सेवा का राग भरा ॥२५॥

अगणित–उर–शोणित से सिंचित
इस सिंहासन का स्वामी है।
भूपालों का भूपाल अभय
राणा–पथ का तू गामी है ॥२६॥

दुनिया कुछ कहती है सुन ले,
यह दुनिया तो दीवानी है।
राणा! तू इसकी रक्षा कर,
यह सिंहासन अभिमानी है ॥२७॥

∼ श्याम नारायण पाण्डेय

Check Also

Sikandar Ka Muqaddar: 2024 Neeraj Pandey High-octane Crime Thriller

Sikandar Ka Muqaddar: 2024 Neeraj Pandey High-octane Crime Thriller

Movie Name: Sikandar Ka Muqaddar Directed by: Neeraj Pandey Starring: Avinash Tiwary, Jimmy Shergill, Tamannaah …