राजधानी दिल्ली में 40% से ज़्यादा बच्चों को अस्थमा

राजधानी दिल्ली में 40% से ज़्यादा बच्चों को अस्थमा

दिल्ली तथा देश के अन्य महानगरों के साथ-साथ अब तो छोटे शहरों में भी विभिन्न कारणों से प्रदूषण में अत्यधिक वृद्धि होती जा रही है। इससे न सिर्फ पर्यावरण को भारी क्षति पहुंच रही है बल्कि बच्चों और बड़ों दोनों के ही स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

आज दिल्ली विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से एक बन चुकी है और यहां अस्थमा तथा सांस से जुड़ी अन्य बीमारियों के रोगियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। हवा की लगातार खराब हो रही क्वालिटी और बढ़ रहे प्रदूषण से हाल ही के वर्षों में दिल्ली के अस्पतालों में सांस से जुड़ी बीमारियों के रोगियों की संख्या 300 गुणा बढ़ कर खतरे के निशान के निकट पहुंच चुकी है जिस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है।

बी.एल.के. सुपर स्पैशिएलिटी अस्पताल के डा. विकास मौर्य के अनुसार प्रदूषण के स्तर के लिहाज से दिल्ली को रैड, यैलो और ग्रीन इन तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है और उसी के अनुरूप सांस की बीमारियों के बढ़ रहे खतरे से निपटने के लिए रणनीति बनाने की आवश्यकता है।

हरियाणा और दिल्ली के साथ लगती सीमाएं तथा औद्योगिक क्लस्टर ‘रैड जोन’ में आते हैं जिनमें मुंडका, साहूपुरा, राजौरी, गोपाल पुरी, ओखला, बदरपुर, नरेला, छतरपुर आदि शामिल हैं। यहां रहने वाले लोग स्वास्थ्य संबंधी खतरों के सर्वाधिक जोखिम पर हैं। अत: इन इलाकों में प्रदूषण के स्तर पर नियंत्रण लगाने के लिए कठोर अनुशासन लागू करने की आवश्यकता है।

इसके लिए विशेष रूप से बुजुर्गों और बच्चों के स्वास्थ्य की नियमित जांच हेतु शिविर लगाने और लोगों को बचाव व सावधानियों बारे जागरूक करने, ट्रैफिक नियंत्रण की ड्यूटी दे रहे पुलिस कर्मचारियों को विशेष सुरक्षा उपकरण देने के अलावा उनकी ड्यूटी की अवधि सीमित करने की आवश्यकता है।

‘रैड जोन’ में रहने वाले अस्थमा पीड़ितों को अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना और बाहर जाते समय मास्क लगाना चाहिए। डाक्टर तो अस्थमा के गंभीर केसों में घर के अंदर रहते हुए भी मास्क लगाए रखने की सलाह देते हैं। इन क्षेत्रों के लोगों के फेफड़ों पर सर्वाधिक दुष्प्रभाव पड़ रहा है।

‘यैलो जोन’ में वे इलाके आते हैं जहां भारी ट्रैफिक रहता है। इनमें कौशाम्बी, धौलाकुआं, लक्ष्मीनगर, आश्रम चौक, साऊथ एक्सटैंशन, रिंग रोड, मथुरा रोड आदि शामिल हैं। यहां सांस संबंधी तकलीफों का ‘रैड जोन’ की तुलना में खतरा कुछ कम हो सकता है परंतु यहां भी हवा की क्वालिटी की जांच करते रहने व लोगों को अच्छे स्वास्थ्य के लिए सुबह की सैर और शारीरिक गतिविधियों आदि के लिए जागरूक करने की आवश्यकता है।

लोगों को अधिक भीड़भाड़ वाले समय के दौरान सेफ्टी मास्क लगाने और लम्बी अवधि की ट्रैफिक लाइटों पर अपने वाहनों का इंजन बंद करने के प्रति जागरूक होना होगा तथा सांस की तकलीफ संबंधी लक्षण दिखाई देने पर तुरंत डाक्टर की सलाह ली जानी चाहिए।

‘ग्रीन जोन’ में मुख्य रूप से नई दिल्ली और लुटियन्स दिल्ली के इलाके आते हैं जिनमें कनाट प्लेस, अकबर रोड, बाबर रोड और मध्य दिल्ली का समूचा इलाका शामिल है। यहां रहने वाले लोगों के फेफड़ों का स्वास्थ्य तुलनात्मक दृष्टिï से बेहतर है परंतु हवा में मौजूद परागकण अस्थमा का कारण बन सकते हैं।

डाक्टरों का यह भी कहना है कि विशेष रूप से बच्चों के लिए तो दिल्ली भारत में अस्थमा की राजधानी बनती जा रही है। यहां खतरनाक स्तर तक पहुंच चुके प्रदूषण के परिणामस्वरूप अगले 3 वर्षों में 40 प्रतिशत बच्चों के अस्थमा के शिकार होने की आशंका है।

अन्य महानगरों की तुलना में दिल्ली के बच्चों पर प्रदूषण का सर्वाधिक प्रभाव पाया गया है। 10 से 15 वर्ष आयु वर्ग के 2000 बच्चों पर किए गए अध्ययन में पता चला कि राजधानी के 21 प्रतिशत बच्चों के फेफड़े असामान्य स्थिति में हैं जबकि 19 प्रतिशत बच्चों में सांस लेने में दिक्कत देखी गई।

देश के अन्य महानगरों में भी ऐसे बच्चों में सांस की परेशानी अधिक है जो खुले रिक्शा या दोपहिया वाहन से स्कूल जाते हैं। अकेले दिल्ली में 92 प्रतिशत स्कूली बच्चे खुले वाहनों में स्कूल पहुंचते हैं इसके विपरीत मुम्बई में 79, बेंगलूर में 86 प्रतिशत और कोलकाता में 65 प्रतिशत बच्चे खुले वाहनों में स्कूल पहुंचते हैं।

इसे देखते हुए न सिर्फ दिल्ली तथा देश के अन्य सभी भागों में किसी भी कारण से बढ़ रहे प्रदूषण को नियंत्रित करना आवश्यक है बल्कि बच्चों को स्वास्थ्य संबंधी अधिक जोखिम होने के कारण इनके आवागमन और स्वास्थ्य की देखभाल संबंधी स्थितियों में सुधार की भी नितांत आवश्यकता है।

Check Also

Annual Personal Number Predictions

Annual Personal Number Predictions 2025: Anupam V Kapil

Celebrity astro-numerologist Anupam V Kapil shows what  your Annual Personal Number reveals about your fate …