सुबह सुबह ले शिव का नाम: महाशिवरात्रि भजन

महाशिवरात्रि फिल्म भजन: सुबह सुबह ले शिव का नाम – कर ले बन्दे यह काम

महाशिवरात्रि फिल्म भजन: शिव महिमा फिल्म से

सुबह सुबह ले शिव का नाम, कर ले बन्दे यह शुभ काम।
सुबह सुबह ले शिव का नाम, शिव आयेंगे तेरे काम॥

ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय

खुद को राख लपेटे फिरते, औरों को देते धन धाम।
देवो के हित विष पी डाला, नील कंठ को कोटि प्रणाम॥

सुबह सुबह ले शिव का नाम, शिव आयेंगे तेरे काम॥

ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय

शिव के चरणों में मिलते सारी तीरथ चारो धाम।
करनी का सुख तेरे हाथों, शिव के हाथों में परिणाम॥

सुबह सुबह ले शिव का नाम, शिव आयेंगे तेरे काम॥

ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय

शिव के रहते कैसी चिंता, साथ रहे प्रभु आठों याम।
शिव को भजले सुख पायेगा, मन को आएगा आराम॥

सुबह सुबह ले शिव का नाम, शिव आयेंगे तेरे काम॥

ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय

∼ महाशिवरात्रि फिल्म भजन: नन्द लाल पाठक

चित्रपट : शिव महिमा (10 June 1992)
गीतकार : नन्द लाल पाठक
संगीतकार : अरुण पौडवाल
गायक : हरिहरन
सितारे : गुलशन कुमार, गजेन्द्र चौहान, अरुण गोविल

Shiv Mahima is a 1992 Indian mythological movie produced by Gulshan Kumar under the banner of Super Cassettes Industries Ltd. It was directed by Shantilal Soni and written by Bhring Toopkari. The music was composed by Arun Paudwal.

महत्व: महाशिवरात्रि फिल्म भजन

किसी समय, भारतीय संस्कृति में, एक वर्श में 365 त्योहार हुआ करते थे। दूसरे शब्दों में कहें तो, वे साल के प्रति दिन, कोई न कोई उत्सव मनाने का बहाना खोजते थे। ये 365 त्योहार विविध कारणों तथा जीवन के विविध उद्देश्यों से जुड़े थे। इन्हें विविध ऐतिहासिक घटनाओं, विजय श्री तथा जीवन की कुछ अवस्थाओं जैसे फसल की बुआई, रोपाई और कटाई आदि से जोड़ा गया था। हर अवस्था और हर परिस्थिति के लिए हमारे पास एक त्योहार था। परंतु महाशिवरात्रि का महत्व सबसे अलग है।

महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है?

हर चंद्र मास का चौदहवाँ दिन अथवा अमावस्या से पूर्व का एक दिन शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। एक कैलेंडर वर्श में आने वाली सभी शिवरात्रियों में से, महाशिवरात्रि, को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, जो फरवरी-मार्च माह में आती है। इस रात, ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य भीतर ऊर्जा का प्राकृतिक रूप से ऊपर की और जाती है। यह एक ऐसा दिन है, जब प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद करती है। इस समय का उपयोग करने के लिए, इस परंपरा में, हम एक उत्सव मनाते हैं, जो पूरी रात चलता है। पूरी रात मनाए जाने वाले इस उत्सव में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि ऊर्जाओं के प्राकृतिक प्रवाह को उमड़ने का पूरा अवसर मिले – आप अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए – निरंतर जागते रहते हैं।

महाशिवरात्रि का महत्व

महाशिवरात्रि आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले साधकों के लिए बहुत महत्व रखती है। यह उनके लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है जो पारिवारिक परिस्थितियों में हैं और संसार की महत्वाकांक्षाओं में मग्न हैं। पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव की तरह मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं में मग्न लोग महाशिवरात्रि को, शिव के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के दिवस के रूप में मनाते हैं। परंतु, साधकों के लिए, यह वह दिन है, जिस दिन वे कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे। वे एक पर्वत की भाँति स्थिर व निश्चल हो गए थे। यौगिक परंपरा में, शिव को किसी देवता की तरह नहीं पूजा जाता। उन्हें आदि गुरु माना जाता है, पहले गुरु, जिनसे ज्ञान उपजा। ध्यान की अनेक सहस्राब्दियों के पश्चात्, एक दिन वे पूर्ण रूप से स्थिर हो गए। वही दिन महाशिवरात्रि का था। उनके भीतर की सारी गतिविधियाँ शांत हुईं और वे पूरी तरह से स्थिर हुए, इसलिए साधक महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात्रि के रूप में मनाते हैं।

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