रिश्तों पर दीवारें – मनोहर लाल ‘रत्नम’

टूटी माला बिखरे मनके, झुलस गये सब सपने।
रिश्ते नाते हुए पराये, जो कल तक थे अपने॥

अंगुली पकड़ कर पाँव चलाया, घर के अँगनारे में,
यौवन लेकर सम्मुख आया, वह अब बटवारे में।
उठा नाम बटवारे का तो, सब कुछ लगा है बटने॥
टूटी माला बिखरे मनके, झुलस गये सब सपने…

रिश्तों की अब बूढ़ी आँखें, देख–देख पथरायीं,
आशाओं के महल की साँसें, चलने से घबरायीं।
कल का नन्हा हाथ गाल पर, लगा तमाचा कसने॥
टूटी माला बिखरे मनके, झुलस गये सब सपने…

दीवारों पर चिपके रिश्ते, रिश्तों पर दीवारें,
घर आँगन सब हुए पराये, किसको आज पुकारें।
रिश्तों की मैली–सी चादर, चली सरक कर हटने॥
टूटी माला बिखरे मनके, झुलस गये सब सपने…

हर घर में बस यही समस्या, चौखट पार खड़ी है,
जिसको छू–कर देखा ‘रत्नम’ विपदा वहीं बड़ी है।
हर रिश्तों में पड़ी दरारें, लगा कलेजा फटने॥
टूटी माला बिखरे मनके, झुलस गये सब सपने…

∼ मनोहर लाल ‘रत्नम’

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2 comments

  1. Purnendu Kumar

    हर घर में बस यही समस्या, चौखट पार खड़ी है,
    जिसको छू–कर देखा ‘रत्नम’ विपदा वहीं बड़ी है।

    रचनाकार ने अपने जीवन के अनुभवों को निचोर ही लिख दिया है मनो…अद्भुत?

  2. Amit kumar sahdev

    दोनों पंक्तियों पर बहुत खूब कहा आपने!!!

    कल का नन्हा हाथ गाल पर, लगा तमाचा कसने॥

    रिश्तों की मैली–सी चादर, चली सरक कर हटने॥