गुरुद्वारा बाबा अटल राय जी: गुरु की नगरी अमृतसर स्थित करोड़ों दिलों की धार्मिक राजधानी श्री हरिमंदिर साहिब परिसर के प्रांगण में स्थित नौ मंजिला गुरुद्वारा बाबा अटल राय जी को शहर की सबसे ऊंची इमारत होने का रुतबा प्राप्त है परन्तु यह भी एक प्रामाणिक सत्य है कि इस गुरुद्वारे की दीवारें विश्व स्तरीय भित्ति चित्रकारी से इस प्रकार से अलंकृत हैं कि इनका शुमार न सिर्फ चम्बा के शीशमहल व रामपुर के रंगमहल की दीवारों पर बने चित्रों, बल्कि यूरोप में इटली के विश्व प्रसिद्ध फ्रैस्कोज के सामने भी सराहनीय लगे।
गुरुद्वारा बाबा अटल राय जी, अमृतसर, पंजाब
Name: | Gurdwara Baba Atal Rai (ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਬਾਬਾ ਅਟੱਲ) |
Location: | Amritsar, Punjab State, India |
Affiliation: | Sikhism [Dedicated to Atal Rai, a son of Guru Hargobind and Mata Nanaki] |
Completed In: | – AD |
Architecture: | Sikh architecture |
Creator: | – |
इस गुरुद्वारे का निर्माण छठे गुरु श्री हरगोबिंद साहिब जी के रूहानियत के रंग में रंगे आज्ञाकारी पुत्र बाबा अटल राय जी की याद में करवाया गया था। बाबा अटल राय जी मात्र 9 वर्ष का छोटा-सा जीवन जीकर ही हमें उच्च मानवीय आदर्शों तथा पितृ भक्ति की जिंदा मिसाल दे गए और स्वयं ही इच्छा से ज्योति जोत समाने के बाद उनके 9 वर्ष के जीवनकाल की याद में इस नौ मंजिला गुरुद्वारा साहिब का निर्माण करवाया गया।
उनकी आज्ञाकारिता, पितृ भक्ति तथा कर्मठता से प्रभावित होकर गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने उन्हें आशीष दिया कि उनका धाम गुरु की नगरी का सबसे ऊंचा धर्मस्थल होगा।
गुरुद्वारे की पहली मंजिल पर बने भित्ति चित्रों के अलावा इसकी छत पर सोने में शीशे काट कर नीले रंग में इस प्रकार जड़ कर नक्काशी की गई है कि देखने वाले देखते ही रहें। नानकशाही ईंटों से उन दिनों भी अष्टभुजी मिस्र की इमारतों की भवन निर्माण कला से मेल खाती इस विशाल इमारत में गुरु प्यारों की श्रद्धा व प्रेम झलकता है।
इस गुरुद्वारा साहिब की दीवारों पर आज भी लगभग 110 चित्र शोभायमान हैं तथा इनमें से अधिकांश गुरु नानक देव जी के जीवन की प्रेरक साखियों से संबंधित हैं। इन चित्रों के नीचे घटनाओं का वृतांत मानो हमें उस युग में ले जाता है। गुरु नानक देव जी की बचपन की आनंदमयी कलाओं के अलावा संसार को जागृत करने वाली उनकी उदासियों से प्रेरित इन चित्रों को गीले पलस्तर पर एक अति दुर्लभ श्रेणी की तकनीक से बनाया गया है जो आज के युग में लगभग लुप्त हो चुकी है।
इस कला को भारत में मोहरकशी भित्ति चित्रकारी का नाम भी दिया जाता था परन्तु यह भी एक कटु सत्य है कि ये विश्वस्तरीय चित्र जो धातुओं तथा फूलों के रस के मिश्रण से बनकर देखने वाले को घटनाक्रम का आभास देते हैं।
अनेक स्थानों पर मौसम व समय के प्रभाव तथा बार-बार हाथ लगने से नष्ट हो चुके हैं परन्तु अब शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा हंसाली वाले बाबा जी के सहयोग से इस महान विरासत के संरक्षण हेतु विशेषज्ञों की सेवाएं ली जा रही हैं ताकि ये चित्र एक बार फिर दोबारा अपना खोया गौरव प्राप्त कर देश भर में श्रद्धालुओं के आकर्षण का केन्द्र बन सके।