पाकिस्तान जहाँ हिंन्दू रखते हैं रोज़े

पाकिस्तान जहाँ हिंन्दू रखते हैं रोज़े

आज जबकि भारत के कुछ प्रदेशों में गौहत्या पर प्रतिबंध लगाने के प्रस्ताव पर काफी विवाद छिड़ा हुआ है, मुझे पाकिस्तान के एक समाचार पत्र में छपे एक लेख को पढऩे का अवसर मिला जो इस विवाद में उलझे लोगों के मार्गदर्शन का एक अनुपम उदाहरण बन सकता है और उन्हें यह सूझ-बूझ दे सकता है कि विभिन्न धर्मों के अनुयायी किस प्रकार एक-दूसरे की भावनाओं का आदर करते हुए आपस में प्रेमभाव से रहकर न केवल अपने ही सम्प्रदाय की शांति और कल्याण का साधन बन सकते हैं बल्कि दूसरे धर्मों के अनुयायियों के लिए भी एक अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत कर सकते हैं।

यह कहानी है पाकिस्तान के रेगिस्तान क्षेत्र सिंध की एक नगरी की जिसका नाम है ‘मीठी’। जैसा नाम वैसा ही गुण। इस नगरी के लोगों के रहन-सहन, भाईचारा और एक-दूसरे की धार्मिक भावनाओं के प्रति सम्मान का ब्यौरा पढ़कर यूं महसूस हुआ जैसे सिंध के रेगिस्तान में मीठे पानी का कोई चश्मा बह रहा हो।

घृणा और वैमनस्य की तपती धूप में झुलसती आत्माओं को इस मीठी गाथा से शीतलता और तृप्ति मिलेगी, यह मेरा विश्वास है। स्वयं इसका आनंद लीजिए और दूसरों को भी इस चश्मे की मिठास से आनंदित कीजिए।

‘मीठी’ नगरी का यह वृत्तांत प्रस्तुत किया है एक युवा पाकिस्तानी पत्रकार हसन रजा ने कराची के प्रमुख दैनिक समाचार पत्र ‘डान’ में। हसन रजा लिखते हैं: पाकिस्तान का दूसरा नाम पड़ चुका है ‘आतंक’। स्थानीय और अन्तर्राष्ट्रीय समाचार चैनलों पर हम सुनते हैं कि चरमपंथियों के हाथों अल्पसंख्यकों का किस तरह वध किया जा रहा है, मंदिरों, चर्चों, इमामबाड़ों पर हमले किए जा रहे हैं या मुल्क में हिन्दुओं और ईसाइयों का जबरदस्ती धर्म परिवर्तन किया जा रहा है।

मुझे यकीन है कि आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि सिंध प्रांत के जिला थारपरकर में एक ऐसी छोटी सी नगरी है जहां ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा।

‘मीठी’ पाकिस्तान के कुछ उन नगरों में से एक है जहां मुसलमान बहुसंख्या में नहीं हैं। जबसे पाकिस्तान बना है हिन्दू और मुसलमान विस्तीर्ण रेगिस्तान के एक शांतमय क्षेत्र में आपस में मिलजुल कर भाइयों की तरह रहते हैं।

नवम्बर 2014 में तीन सप्ताह की फैलोशिप पर जब मैं अमरीका गया तो वहां मेरी भेंट मेरे अपने ही बैच के एक नौजवान से हुई जिसने अपना परिचय कुछ इस तरह से करवाया:

मैं सिंध से आया हिन्दू हूं, लेकिन जीवन भर मैं मुसलमानों के साथ रहा हूं और यही कारण है कि रमजान के दौरान हम भी उनके साथ रोजे रखते हैं। हम हिन्दू लड़के मुहर्रम के जलूस के आगे-आगे होते हैं क्योंकि सूफी धर्म से हमें यही शिक्षा मिली है। रमजान के दिनों में कोई हिन्दू रोजे रखता है या मुहर्रम के जलूस के आगे-आगे चलता है। यह बात सुनकर मैं चकित रह गया, क्या वास्तव में यह सच है?

फिर इस वर्ष फरवरी में मुझे दोस्तों के साथ थारपरकर जाने का अवसर मिला जहां हम सूखा पीड़ित इलाकों की हालत का जायजा लेकर वहां हर वर्ष होने वाली तबाही से बचने के लिए कोई प्रोजैक्ट शुरू करना चाहते थे। इस सिलसिले में मैं उक्त छोटी सी नगरी ‘मीठी’ भी पहुंचा और वहां मुझे देखने को जो कुछ मिला उसकी मैं कभी कल्पना भी नहीं कर सकता था कि पाकिस्तान में किसी जगह ऐसा कुछ भी देखने को मिल सकता है।

‘मीठी’ उतनी है मीठी है जैसा कि उसका नाम। वहां की लगभग 80 प्रतिशत आबादी हिन्दू है। यह एक ऐसी बस्ती है जहां हिन्दुओं की भावनाओं का सम्मान करते हुए मुसलमानों ने कभी गौहत्या नहीं की और जहां मुसलमानों के रीति-रिवाजों का सत्कार करते हुए हिन्दुओं ने मुहर्रम के दिनों में कभी शादी नहीं रचाई।

इतना ही नहीं, रमजान के दिनों में हिन्दू खुशी-खुशी मुसलमानों के लिए खाने-पीने का प्रबंध करते हैं और ईद व दीवाली पर दोनों आपस में मिठाइयां बांटते हैं। यहां अपराध संख्या केवल 2 प्रतिशत है और धार्मिक असहिष्णुता की कभी कोई घटना नहीं हुई।

बस्ती निवासियों से बातचीत कर मुझे पता चला कि मुहर्रम के दिनों में हिन्दू वक्ता यहां मजलिसें करते हैं-यह एक ऐसी बात है जो आपको पाकिस्तान में कहीं और देखने को नहीं मिलेगी। और जैसा कि अमरीका में मुलाकात के वक्त मेरे दोस्त ने मुझे बताया था-बस्ती के हिन्दुओं ने मुझे मुहर्रम के किस्से सुनाए कि किस तरह अशुरा के जलूस के आगे-आगे चलकर वे जलूस में शामिल उन मुसलमानों की सेवा करते हैं जिनकी आबादी इस बस्ती में मुश्किल से 20 प्रतिशत ही है।

एक थार निवासी मुसलमान ने बताया कि हमारे गांव में हिन्दू और मुसलमान दशकों से इकठ्ठे रह रहे हैं। मैंने एक भी दिन ऐसा नहीं देखा जब कभी यहां कोई धार्मिक झगड़ा हुआ हो। जिस समय हिन्दू मंदिर में पूजा-आरती करते हैं तब आजान के लिए लाऊड स्पीकर इस्तेमाल नहीं किए जाते और जब नमाज पढ़ी जानी होती है मंदिर में घंटे-घडिय़ाल नहीं बजाए जाते। रमजान के दिनों में रोजे के समय कोई भी खुलेआम खाना नहीं खाता और जब होली होती है तो गांव के सभी लोग मनाते हैं।

सिंध में विभिन्न सम्प्रदाय आपस में किस तरह भाईचारा बनाकर रहते हैं ऐसे किस्से मैं हमेशा सुनता आया था लेकिन उनका स्वयं साक्षात्कार बड़ा आश्चर्यजनक था। ‘मीठी’ के हिन्दुओं और मुसलमानों में जो प्यार और भाईचारा है वह सिंध की सुहृदयता और सहनशील सूफी सभ्यता का उत्तम उदाहरण है।

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