Nida Fazli, the son of Murtaza Hasan Baidi was born on October 12, 1938 in Delhi, to a Kashmiri family. At the time of partition, his parents migrated to Pakistan while Nida preferred to stay in India. He moved to Mumbai at an early age in search of job and started working for ‘Blitz’ and ‘Dharamyug’. He has also written several songs for Indian films. His works include Lafzon ke Phool (collection of sher-o-shayari), Mulaqaten (character-sketches), Mor Naach (collected works) in 1978, Aankh aur Khwab ke Darmiyan, Safar Mein Dhuup to Hogi, etc. His most acclaimed shers include; ‘Duniya jise kehte hain jaadu kaa khilona hai, Mil jaaye to mitti hai, kho jaaye to sona hai‘. Few of the popular film songs written by him are; Aa bhi jaa (Sur), Tu is tarah se meri zindagi mein (Aap To Aise Na The) and Hosh waalon ko khabar (Sarfarosh).
खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका–बासन
चिमटा, फुकनी – जैसी माँ!
बान की खुर्री खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोयी–आधी जागी
थकी दुपहरी – जैसी माँ!
चिड़ियों की चहकार में गूँजे
राधा–मोहन, अली–अली
मुर्गे की आवाज़ से खुलती
घर की कुण्डी – जैसी माँ!
बीबी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी–थोड़ी–सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी – जैसी माँ!
बाँट के अपना चेहरा, माथा
आँखें जाने कहाँ गयीं
फटे पुराने इक एलबम में
चंचल लड़की – जैसी माँ!
∼ निदा फ़ाज़ली
उनकी पुस्तक मुलाक़ातें में उन्होंने उस समय के कई स्थापित लेखकों के बारे मे लिखा और भारतीय लेखन के दरबारी-करण को उजागर किया जिसमें लोग धनवान और राजनीतिक अधिकारयुक्त लोगों से अपने संपर्कों के आधार पर पुरस्कार और सम्मान पाते हैं। इसका बहुत विरोध हुआ और ऐसे कई स्थापित लेखकों ने निदा का बहिष्कार कर दिया और ऐसे सम्मेलनों में सम्मिलित होने से मना कर दिया जिसमें निदा को बुलाया जा रहा हो।
उनकी पुस्तक मुलाक़ातें में उन्होंने उस समय के कई स्थापित लेखकों के बारे मे लिखा और भारतीय लेखन के दरबारी-करण को उजागर किया जिसमें लोग धनवान और राजनीतिक अधिकारयुक्त लोगों से अपने संपर्कों के आधार पर पुरस्कार और सम्मान पाते हैं। इसका बहुत विरोध हुआ और ऐसे कई स्थापित लेखकों ने निदा का बहिष्कार कर दिया और ऐसे सम्मेलनों में सम्मिलित होने से मना कर दिया जिसमें निदा को बुलाया जा रहा हो।
जब वह पाकिस्तान गए तो एक मुशायरे के बाद कट्टरपंथी मुल्लाओं ने उनका घेराव कर लिया और उनके लिखे शेर –
घर से मस्जिद है बड़ी दूर, चलो ये कर लें।
किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए॥
पर अपना विरोध प्रकट करते हुए उनसे पूछा कि क्या निदा किसी बच्चे को अल्लाह से बड़ा समझते हैं? निदा ने उत्तर दिया कि मैं केवल इतना जानता हूँ कि मस्जिद इंसान के हाथ बनाते हैं जबकि बच्चे को अल्लाह अपने हाथों से बनाता है।