अपने ही मन से कुछ बोलें - अटल बिहारी वाजपेयी

अपने ही मन से कुछ बोलें: अटल की आत्म चिंतन कविता

Atal Jis poems have special significance. He was leader of a country of one billion people; a seasoned politician who would have seen all that is to be seen on this earth. It is admirable that he retained the sensitivity of heart as a poet too, a member of the rare breed of philosopher kings. I was specially moved by the second stanza in the following poem, where he says that it is enough that we retain the sensitivity of our inner selves when the death finally knocks.

अपने ही मन से कुछ बोलें: अटल बिहारी वाजपेयी

क्या खोया, क्या पाया जग में
मिलते और बिछुड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्यपि छला गया पग-पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें!

पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी
जीवन एक अनन्त कहानी
पर तन की अपनी सीमाएँ
यद्यपि सौ शरदों की वाणी
इतना काफ़ी है अंतिम दस्तक पर, खुद दरवाज़ा खोलें!

जन्म-मरण अविरत फेरा
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ, कल कहाँ कूच है
कौन जानता किधर सवेरा
अंधियारा आकाश असीमित, प्राणों के पंखों को तौलें!
अपने ही मन से कुछ बोलें!

अटल बिहारी वाजपेयी

‘आपकी बेटी बहुत शरारती है’

वाजपेयी ने गठबंधन सरकार चलाई और इसे चलाने में उनका व्यवहार बहुत काम आया। पर मुश्किलें कम न थीं। जयललिता और ममता बनर्जी की रोज़ रोज़ की मांगें उनके लिए सिरदर्द बनी रहती थीं। ममता बनर्जी मंत्रालयों के बंटवारे और उनके काम-काज को लेकर जब-तब नाराज़गी ज़ाहिर करती रहती थीं।

वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय के मुताबिक, जब ममता रेल मंत्री थीं तो आए दिन कोई न कोई मुसीबत खड़ी हो जाती। एक बार पेट्रोल-डीज़ल के दामों को लेकर ममता नाराज़ हो गईं। वाजपेयी ने अपने संकटमोचकों में से एक जॉर्ज फर्नांडीज़ को ममता को मनाने के लिए कोलकाता भेजा।

जॉर्ज शाम से पूरी रात तक इंतज़ार करते रहे पर ममता ने मुलाक़ात नहीं की। इसके बाद एक दिन अचानक प्रधानमंत्री वाजपेयी ममता के घर पहुंच गए। उस दिन ममता कोलकाता में नहीं थीं। वाजपेयी ने ममता के घर पर उनकी मां के पैर छू लिए और उनसे कहा, “आपकी बेटी बहुत शरारती है, बहुत तंग करती है।” बताते हैं कि इसके बाद ममता का ग़ुस्सा मिनटों में उतर गया।

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