दो अनुभूतियाँ: अटल बिहारी वाजपेयी

दो अनुभूतियाँ: अटल जी की मानव मनोदशा पर कविताएँ

In most human endeavors, there are ups and downs. But in the field of politics, downswings can be brutal and up-swings full of elation and optimism. Two poems of Atal Ji reflect beautifully on this roller coaster. First one appears to have been written in a phase of disillusionment and dejection when the poet’s heart says, “I won’t sing any more”. But the scenario and circumstances change, the optimism is back in the air. Old desolation is forgotten and it is time to rise and march on with a new song in the heart. Please read on and experience these two moods.

दो अनुभूतियाँ: अटल बिहारी वाजपेयी

दो अनुभूतियाँ – पहली अनुभूति: गीत नहीं गाता हूँ

बेनक़ाब चेहरे हैं,
दाग़ बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ

लगी कुछ ऐसी नज़र
बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ

पीठ मे छुरी सा चांद
राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूँ
गीत नहीं गाता हूँ

अटल बिहारी वाजपेयी

दो अनुभूतियाँ – दूसरी अनुभूति: गीत नया गाता हूँ

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात
कोयल की कुहुक रात

प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूँ
गीत नया गाता हूँ

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलको पर ठिठकी
हार नहीं मानूँगा,
रार नहीं ठानूँगा,

काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूँ
गीत नया गाता हूँ

अटल बिहारी वाजपेयी

‘फल अच्छा है तो पेड़ बुरा कैसे’

जब रजत शर्मा ने अपने इंटरव्यू में अटल बिहारी वाजपेयी से कहा कि लेखक खुशवंत सिंह ने कहा है कि अटल बिहारी वाजपेयी अच्छे आदमी हैं लेकिन ग़लत पार्टी में हैं।

इस पर वाजपेयी हंसे और फिर कहा, “सरदार खुशवंत सिंह जी की मैं बड़ी इज़्ज़त करता हूं। उनका लिखा पढ़ने में बड़ा आनंद आता है। उन्होंने जो मेरी तारीफ़ की है, उसके लिए मैं उन्हें शुक्रिया अदा करता हूं। लेकिन उनकी इस बात से मैं सहमत नहीं हूं कि मैं आदमी तो अच्छा हूं लेकिन ग़लत पार्टी में हूं। अगर मैं सचमुच में अच्छा आदमी हूं तो ग़लत पार्टी में कैसे हो सकता हूं। और अगर ग़लत पार्टी में हूं तो अच्छा आदमी कैसे हो सकता हूं। अगर फल अच्छा है तो पेड़ ख़राब नहीं हो सकता।”

यही बात संसद में भी उठी थी। साल १९९६ के अपने चर्चित भाषण में उन्होंने विपक्ष की ओर इंगित करते हुए कहा, “किसी ने कहा कि मैं आदमी तो अच्छा हूं, पर ग़लत पार्टी में हूं। वो बताएं कि ऐसे अच्छे आदमी का वो क्या करने का इरादा रखते हैं।”

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