खिलौने प्यारे प्यारे जी‚
खिलौने रंग बिरंगे हैं‚
खिलौने माटी के हैं जी।
इधर भी देखें कुछ थोड़ा‚
गाय हाथी लें या घोड़ा‚
हरी टोपी वाला बंदर‚
सेठ सेठानी का जोड़ा।
गुलाबी बबुआ हाथ पसार‚
बुलाता बच्चों को हर बार‚
सिपाही हाथ लिये तलवार‚
हरी काली ये मोटर कार।
सजी दुल्हन सी हैं गुड़ियां‚
चमकते रंगों की चिड़ियां‚
बहुत ही बच्चों को भाते‚
हिलाते सर बुढ्ढे–बुढ़ियां।
बहुत ही तड़के घर से आज‚
चला था लिये खिलौने लाद‚
तनिक आशा थी कुछ विश्वास‚
आज कुछ बिक जाएगा माल।
जमाया पटरी पर सामान‚
लगाई छोटी सी दुकान‚
देखता रहा गाहकों को‚
बिछा कर चेहरे पर मुस्कान।
भरा–पूरा था सब बाज़ार‚
लगे सब चीज़ों के अंबार‚
उमड़ती भीड़ झमेलों में‚
मगन कय–विकय में संसार।
लोग जो आते–जाते थे‚
उन्हें आशा से था तकता‚
कहीं कोई तो होगा जो‚
खिलौना माटी का लखता।
कभी इनकी भी क्या थी बात‚
बनाते हम इनको दिन रात‚
इन्हीं की खपत हज़ारों में‚
यही बिकते बाज़ारों में।
इन्हीं से बच्चों को था प्यार‚
इन्हीं को लेते बारंबार‚
इन्हीं से जी भर कर खेलें‚
इन्हीं को ले होती तकरार।
जमाना बदल गया सरकार‚
नहीं अब इनकी कुछ दरकार‚
करें क्या हम भी हैं लाचार‚
आप कुछ ले लें तो उपकार।
दाम मैं ठीक लगा दूंगा‚
आप का कहा निभा दूंगा‚
नहीं चिंता की कोई बात‚
बताएं तो, क्या लेंगे आप?
खिलौनों के जो भी हों दाम‚
खिलाते शिशु मुख पर मुस्कान‚
नहीं कोई भी इसका मोल‚
चीज यह बाबूजी अनमोल।
बताऊं बात राज़ की एक‚
नहीं करते हैं बच्चे भेद‚
खिलौनें महंगे या सस्ते‚
सभी उनको लगते अच्छे।
आप ले करके तो देखें,
तनिक फिर दे कर तो देखें,
सभी बच्चे मुस्काएंगे‚
खिलौनें ले इतराएंगे।
रचाएंगे वे कितने खेल‚
मिलाएंगे वे कितने मेल‚
अंत में टूटेगी सौगात‚
मगर इसमें दुख की क्या बात।
खिलौना माटी का ही था‚
एक दिन होना ही था नाश‚
पुरानी चीज नहीं टूटे‚
नई की कैसे हो फिर आस?
खिलौना यह सारी दुनियां‚
खेलता ऊपर वाला है‚
हमीं यह समझ नहीं पाते‚
अजब यह खेल निराला है।
आपका भला करे भगवान‚
आपकी बनी रहे यह शान‚
हमें दो रोटी की दरकार‚
आपको मिले सदा पकवान।
खिलौने ले लो बाबूजी‚
खिलौने प्यारे प्यारे जी‚
खिलौने रंग बिरंगे हैं‚
खिलौने माटी के हैं जी।