ठुकरा दो या प्यार करो: सुभद्रा कुमारी चौहान

ठुकरा दो या प्यार करो: सुभद्रा कुमारी चौहान

देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं
सेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं।

धूमधाम से साज-बाज से वे मंदिर में आते हैं
मुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुऐं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं।

ठुकरा दो या प्यार करो: सुभद्रा कुमारी चौहान

मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लाई
फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आई।

धूप-दीप-नैवेद्य नहीं है झांकी का श्रृंगार नहीं
हाय! गले में पहनाने को फूलों का भी हार नहीं।

कैसे करूँ कीर्तन, मेरे स्वर में है माधुर्य नहीं
मन का भाव प्रकट करने को वाणी में चातुर्य नहीं।

नहीं दान है, नहीं दक्षिणा खाली हाथ चली आई
पूजा की विधि नहीं जानती, फिर भी नाथ चली आई।

पूजा और पुजापा प्रभुवर इसी पुजारिन को समझो
दान-दक्षिणा और निछावर इसी भिखारिन को समझो।

मैं उनमत्त प्रेम की प्यासी हृदय दिखाने आई हूँ
जो कुछ है, वह यही पास है, इसे चढ़ाने आई हूँ।

चरणों पर अर्पित है, इसको चाहो तो स्वीकार करो
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है ठुकरा दो या प्यार करो।

∼ ‘ठुकरा दो या प्यार करो’ poem by सुभद्रा कुमारी चौहान

1919 ई. में उनका विवाह ‘ठाकुर लक्ष्मण सिंह’ से हुआ, विवाह के पश्चात वे जबलपुर (Madhya Pradesh) में रहने लगीं। सुभद्राकुमारी चौहान अपने नाटककार पति लक्ष्मणसिंह के साथ शादी के डेढ़ वर्ष के होते ही सत्याग्रह में शामिल हो गईं और उन्होंने जेलों में ही जीवन के अनेक महत्त्वपूर्ण वर्ष गुज़ारे। गृहस्थी और नन्हे-नन्हे बच्चों का जीवन सँवारते हुए उन्होंने समाज और राजनीति की सेवा की।

आपका पहला काव्य-संग्रह ‘मुकुल’ 1930 में प्रकाशित हुआ। इनकी चुनी हुई कविताएँ ‘त्रिधारा’ में प्रकाशित हुई हैं। ‘झाँसी की रानी‘ इनकी बहुचर्चित रचना है। कविता: अनोखा दान, आराधना, इसका रोना, उपेक्षा, उल्लास,कलह-कारण, कोयल, खिलौनेवाला, चलते समय, चिंता, जीवन-फूल, झाँसी की रानी की समाधि पर, झांसी की रानी, झिलमिल तारे, ठुकरा दो या प्यार करो, तुम, नीम, परिचय, पानी और धूप, पूछो, प्रतीक्षा, प्रथम दर्शन,प्रभु तुम मेरे मन की जानो, प्रियतम से, फूल के प्रति, बिदाई, भ्रम, मधुमय प्याली, मुरझाया फूल, मेरा गीत, मेरा जीवन, मेरा नया बचपन, मेरी टेक, मेरे पथिक, यह कदम्ब का पेड़-2, यह कदम्ब का पेड़, विजयी मयूर, विदा, वीरों का हो कैसा वसन्त, वेदना, व्याकुल चाह, समर्पण, साध, स्वदेश के प्रति, जलियाँवाला बाग में बसंत.

सन् 1904 में इलाहाबाद के निहालपुर ग्राम में जन्मी सुभद्राकुमारी चौहान की कविताओं में राष्ट्रचेतना और ओज कूट-कूट कर भरा है। बचपन से ही आपके मन में देशभक्ति की भावना इतने गहरे तक पैठ बनाए हुए थी कि सन् 1921 में अपनी पढ़ाई छोड़ आपने असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। आज़ादी की इस लड़ाई में आपने कई बार जेल-यात्रा की।

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One comment

  1. Can you translate to English so people can read the English words but Hindi words will be said.
    Eg: Dev! Tumhare kayi upasak, kayi dhang se aate he