सूरज भाई - इंदिरा गौड़

सूरज भाई – इंदिरा गौड़

क्या कहने हैं सूरज भाई
अच्छी खूब दुकान सजाई

और दिनों की तरह आज भी
जमा दिया है खूब अखाड़ा
पहले किरणों की झाड़ू से
घना अँधेरा तुमने झाड़ा
फिर कोहरे को पोंछ उषा की
लाल लाल चादर फैलाई।

ज्यों ही तुमको आते देखा
डर कर दूर अँधेरा भागा
दिन भर की आपा धापी से
थक कर जो सोया था जागा
झाँक झाँक कर खिड़की द्वारे
जब तुमने आवाज लगाई।

दिन भर अपना सौदा बेचा
जैसे किरण, धूप, गरमाहट
शाम हुई दूकान समेटी
उठा लिया सामान फटाफट
वस फिर उस दिन बादल आए
जिस दिन लेटे ओढ़ रजाई।

~ इंदिरा गौड़

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