होली की मस्ती - कुछ खट्टी कुछ मीठी

होली की मस्ती: कुछ खट्टी कुछ मीठी

होली का दिन आते ही पूरे शहर में होली की मस्ती भरा रंग चढ़ने लगता है लेकिन 14 साल के अरनव को यह त्योहार अच्छा नहीं लगता। जब सारे बच्चे गली में शोर मचाते, रंग डालते, रंगे पुते दिखते तो अरनव अपने खास दोस्तों को भी मुश्किल से पहचान पाता था। वह होली के दिन घर में एक कमरे में खुद को बंद कर लेता होली की मस्ती में चूर अरनव की बहन भी जब उसे जबरदस्ती रंग लगाती तो उसे बहुत बुरा लगता था। बहन की खुशी के लिए वह अनमने मन से रंग लगवा जरूर लेता पर खुद उसे रंग लगाने की पहल न करता। जब घर और महल्ले में होली का हंगामा कम हो जाता तभी वह घर से बाहर निकलता। कुछ साल पहले तक अरनव जैसे बच्चों की संख्या कम थी। धीरे-धीरे इस तरह के बच्चों की संख्या बढ़ रही है और होली के त्योहार से बच्चों का मोहभंग होता जा रहा है। आज बच्चे होली के त्योहार से खुद को दूर रखने की कोशिश करते हैं।

अगर उन्हें घर-परिवार और दोस्तों के दबाव में होली खेलनी भी पड़े तो तमाम तरह की बंदिशें रख कर वे होली खेलते हैं। पहले जैसी मौज-मस्ती करती बच्चों की टोली अब होली पर नजर नहीं आती। इस की वजह यही लगती है कि उन में अब उत्साह कम हो गया है।

नशे ने खराब की होली की छवि

पहले होली मौज-मस्ती का त्योहार माना जाता था लेकिन अब किशोरों का रुझान इस में कम होने लगा है। लखनऊ के लामार्टिनियर गर्ल्स कालेज की कक्षा 11 में पढ़ने वाली राजवी केसरवानी कहती है, “आज होली खेलने के तरीके और माने दोनों ही बदल गए हैं। सड़क पर नशा कर के होली खेलने वाले होली के त्योहार की छवि को खराब करने के लिए सब से अधिक जिम्मेदार हैं। वे नशे में गाड़ी चला कर दूसरे वाहनों के लिए खतरा पैदा कर देते हैं ऐसे में होली का नाम आते ही नशे में रंग खेलते लोगों की छवि सामने आने लगती है। इसलिए आज किशोरों में होली को ले कर पहले जैसा उत्साह नहीं रह गया है”।

Exams का डर

होली और किशोरों के बीच exam fever बड़ी भूमिका निभाता है। वैसे तो परीक्षा करीब-करीब होली के आसपास ही पड़ती है। लेकिन अगर बोर्ड के exams हों तो विद्यार्थी होली फैस्टिवल के बारे में सोचते ही नहीं हैं क्योंकि उन का सारा focus परीक्षाओं पर जो होता है। पहले परीक्षाओं का दबाव मन पर कम होता था जिस से बच्चे होली का खूब आनंद उठाते थे। अब पढ़ाई का बोझ बढ़ने से कक्षा 10 और 12 की परीक्षाएं और भी महत्त्वपूर्ण होने लगी हैं, जिस से परीक्षाओं के समय होली खेल कर बच्चे अपना समय बरबाद नहीं करना चाहते।

होली के समय मौसम में बदलाव हो रहा होता है। ऐसे में माता-पिता को यह चिंता रहती है कि बच्चे कहीं बीमार न पड़ जाएं। अत: वे बच्चों को होली के रंग और पानी से दूर रखने की कोशिश करते हैं, जो बच्चों को होली के उत्साह से दूर ले जाता है। डाक्टर गिरीश मक्कड़ कहते हैं, “बच्चे खेलकूद के पुराने तौर तरीकों से दूर होते जा रहे हैं। होली से दूरी भी इसी बात को स्पष्ट करती है। खेलकूद से दूर रहने वाले बच्चे मौसम के बदलाव का जल्द शिकार हो जाते हैं। इसलिए कुछ जरूरी सावधानियों के साथ होली की मस्ती का आनंद लेना चाहिए।” फोटोग्राफी का शौक रखने वाले क्षितिज गुप्ता का कहना है, “मुझे रंगों का यह त्योहार बेहद पसंद है। स्कूल में बच्चों पर परीक्षा का दबाव होता है। इस के बाद भी वे इस त्योहार को अच्छे से मनाते हैं। यह सही है कि पहले जैसा उत्साह अब देखने को नहीं मिलता।”

“अब हम बच्चों पर तमाम तरह के दबाव होते हैं। साथ ही अब पहले वाला माहौल नहीं है कि सड़कों पर होली खेली जाए बल्कि अब तो घर में ही भाई-बहनों के साथ होली खेल ली जाती है। अनजान जगह और लोगों के साथ होली खेलने से बचना चाहिए। इस से रंग में भंग डालने वाली घटनाओं को रोका जा सकता है।”

डराता है जोकर जैसा चेहरा

होली रंगों का त्योहार है लेकिन समय के साथ-साथ होली खेलने के तौर-तरीके बदल रहे हैं। आज होली में लोग ऐसे रंगों का उपयोग करते हैं जो स्किन को खराब कर देते हैं। रंगों में ऐसी चीजों का प्रयोग भी होने लगा है जिन के कारण रंग कई दिनों तक छूटता ही नहीं। औयल पेंट का प्रयोग करने के अलावा लोग पक्के रंगों का प्रयोग अधिक करने लगे हैं। लखनऊ के Lamarts School में कक्षा 5 में पढ़ने वाला आदित्य वर्मा कहता है, “मुझे होली पसंद है पर जब होली खेल रहे बच्चों के जोकर जैसे चेहरे देखता हूं तो मुझे डर लगता है। इस डर से ही मैं घर के बाहर होली खेलने नहीं जाता।”

LaMartiniere College में कक्षा 4 में पढ़ने वाले उद्धवराज सिंह चौहान को गरमी का मौसम सब से अच्छा लगता है। गरमी की शुरुआत होली से होती है इसलिए इस त्योहार को वह पसंद करता है। उद्धवराज कहता है, “होली में मुझे पानी से खेलना अच्छा लगता है। इस फैस्टिवल में जो फन और मस्ती होती है वह अन्य किसी त्योहार में नहीं होती। इस त्योहार के पकवानों में गुझिया मुझे बेहद पसंद है। रंग लगाने में जोर-जबरदस्ती मुझे अच्छी नहीं लगती। कुछ लोग खराब रंगों का प्रयोग करते हैं, इस कारण इस त्योहार की बुराई की जाती है। रंग खेलने के लिए अच्छे किस्म के रंगों का प्रयोग करना चाहिए।”

Eco-friendly होली की हो शुरुआत

“होली का त्योहार पानी की बरबादी और पेड़-पौधों की कटाई के कारण मुझे पसंद नहीं है। मेरा मानना है कि अब पानी और पेड़ों का जीवन बचाने के लिए ईको फ्रैंडली होली की पहल होनी चाहिए। होली को जलाने के लिए प्रतीक के रूप में कम लकड़ी का प्रयोग करना चाहिए और रंग खेलते समय ऐसे रंगों का प्रयोग किया जाना चाहिए जो सूखे हों, जिन को छुड़ाना आसान हो। इस से इस त्योहार में होने वाले पर्यावरण के नुकसान को बचाया जा सकता है,” यह कहना है Symbiosis College में BBA LLB कर रहे शुभांकर कुमार का। वह कहता है, “समय के साथ-साथ हर रीति-रिवाज में बदलाव हो रहे हैं तो इस में भी बदलाव होना चाहिए। इस से इस त्योहार को लोकप्रिय बनाने और दूसरे लोगों को इस से जोड़ने में मदद मिलेगी।”

AMITY School में B.A. LLB कर रहे तन्मय प्रदीप को होली का त्योहार पसंद नहीं है। वह कहता है, “होली पर लोग जिस तरह से पक्के रंगों का प्रयोग करने लगे हैं उस से कपड़े और स्किन दोनों खराब हो जाते हैं। कपड़ों को धोने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। कई बार होली खेले कपड़े दोबारा पहनने लायक ही नहीं रहते। ऐसे में जरूरी है कि होली खेलने के तौर-तरीकों में बदलाव हो। होली पर पर्यावरण बचाने की मुहिम चलनी चाहिए। लोगों को जागरूक कर इन बातों को समझाना पड़ेगा, जिस से इस त्योहार की बुराई को दूर किया जा सके। इस बात की सब से बड़ी जिम्मेदारी किशोर व युवावर्ग पर ही है।होली बुराइयों को खत्म करने का त्योहार है, ऐसे में इस को खेलने में जो गड़बडि़यां होती हैं उन को दूर करना पड़ेगा। इस त्योहार में नशा कर के रंग खेलने और सड़क पर गाड़ी चलाने पर भी रोक लगनी चाहिए।”

किसी और त्योहार में नहीं होली जैसा fun

होली की मस्ती किशोरों व युवाओं को पसंद भी आती है। लखनऊ के Millennium School में कक्षा 12 में पढ़ने वाली शांभवी सिंह कहती है, “होली ऐसा त्योहार है जिस का साल भर इंतजार रहता है। रंग और पानी किशोरों को सब से पसंद आने वाली चीजें हैं। इस के अलावा होली में खाने के लिए तरह-तरह के पकवान मिलते हैं। ऐसे में होली किशोरों को बेहद पसंद आती है।

“परीक्षा और होली का साथ रहता है। इस के बाद भी टाइम निकाल कर होली के रंग में रंग जाने से मन अपने को रोक नहीं पाता। मेरी राय में होली जैसा फन अन्य किसी त्योहार में नहीं होता। कुछ बुराइयां इस त्योहार की मस्ती को खराब कर रही हैं। इन को दूर कर होली का मजा लिया जा सकता है।” G D Goenka Public School में पढ़ रही गौरी मिश्रा कहती है, “होली यदि सुरक्षित तरह से खेली जाए तो इस से अच्छा कोई त्योहार नहीं हो सकता। होली खेलने में दूसरों की भावनाओं पर ध्यान न देने के कारण कई बार लड़ाई झगड़े की नौबत आ जाती है, जिस से यह त्योहार बदनाम होता है। सही तरह से होली के त्योहार का आनंद लिया जाए तो इस से बेहतर कोई दूसरा त्योहार हो ही नहीं सकता।”

“दूसरे आज के किशोरों में हर त्योहार को online मनाने का रिवाज चल पड़ा है। वे होली पर अपनों को online बधाइयां देते हैं। भले ही हमारा lifestyle change हुआ हो लेकिन फिर भी हमारा त्योहारों के प्रति उत्साह कम नहीं होना चाहिए।”

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