अप्रैल फूल - डॉ. मंजरी शुक्ला

अप्रैल फूल: मूर्ख दिवस की रोचक बाल-कहानी

आज शैतान मोंटू बन्दर को सुबह से ही बहुत मजा आ रहा था। आखिर 1 अप्रैल जो आने वाला था। वह हर साल इस दिन का बेसब्री से इंतज़ार करता था। आखिर इस दिन लोगों को मूर्ख बनाने में कोई ज्यादा डांट भी नहीं पड़ती थी, वरना वो तो पूरे साल किसी ना किसी को तंग करने के चक्कर में हमेशा मम्मी पापा से डांट खाया करता था। जब किसी का कोई नुकसान हो जाता था तो वह बड़ी ही मासूमियत से कहता था “अप्रैल फूल” और सामने वाला बेचारा खिसियानी हंसी हँसते हुए चल देता था। पर एक बार तो मोनी ने हद ही कर दी थी। पड़ोस में रहने वाले जंपी भालू को कह दिया था कि उनके बेटे का का एक्सीडेंट हो गया हैं, और वो बेचारे घबराते हुए जब हड़बड़ाकर सीढिया उतरे तो उनका पैर फिसल गया और पूरे दो महीने उन्हें पैर में प्लास्टर चढ़ाये हुए बिस्तर पर गुज़ारने पड़े। हाँ, ये बात जरूर थी कि जंपी के बिस्तर पर रहने से पूरे जंगल की मधुमक्खियां बहुत खुश थी क्योंकि अब उनका शहद कोई चुराकर नहीं ले जाता था। थोड़ी देर के लिए तो मोनी को जंपी के लिए बुरा लगा पर वो वापस जस का तस हो गया। और अगले साल तक तो वो पिछली सारी शरारते भूलकर नए सिरे से शैतानियों की योजनाएं बनाने लगता था। पर इस बार उसके पापा उससे बहुत गुस्सा थे क्योंकि उसने पिछले साल जम्बों हाथी के दो फूलों के पौधों में नकली इल्लियाँ लगा थी और उन में जगह जगह नकली फफूंदी लगे हुए पत्ते लगा कर उनका चश्मा छिपा दिया जिससे वो समझ नहीं पाया कि पौधों में कुछ नुक्सान नहीं हुआ हैं और मोनी के कहने पर उन्होंने वो पौधे उसी से उखड़वा दिए पर मोनी के पापा ने उन दोनों की बातें सुन ली थी और वो नकली पत्ते देख लिए थे। उन्होंने निश्चय किया कि पेड़ पौधों की अहमियत और पर्यावरण में उनके अमूल्य योगदान को वो उसे समझा के रहेंगे। उसके पापा गुलाब, गेंदा, चंपा, चमेली, जूही, बेला, तुलसी और नीम के कुछ पौधे लाये और रात में घर के पीछे बने बगीचे में लगा दिये। सुबह पापा उसे अपने साथ बगीचे में ले गए और बोले – “तुम्हें आज से इन पौधों की देखभाल करनी हैं “।

डॉ. मंजरी शुक्ला की मूर्ख दिवस पर रोचक बाल-कहानी: अप्रैल फूल

यह सुनकर मोनी ने पौधों को देखकर बुरा सा मुहँ बनाया और बोला – “इनकी देखभाल नहीं करूँगा”। पापा मुस्कुराते हुए बोले – “पर अगर तुम इनकी देखभाल करोगे तो मैं प्रॉमिस करता हूँ कि तुम्हें ढेर सारे तुम्हारे मनपसंद रसीले आम दूँगा जो तुम्हें बेहद पसंद है”।

यह सुनते ही मोनी के मुँह में पानी आ गया और वह ख़ुशी के मारे पापा से लिपट गया और बोला -“पापा, आप आम वाली बात याद रखो, मैं इन पौधों का अभी से पूरा ध्यान रखूँगा”।

यह सुनकर पापा मन ही मन अपनी योजना पर मुस्कुराते हुए मोनी के सर पर प्यार से हाथ फेरकर चले गए।

बस फिर क्या था मोनी ने जम्बो दादा को बुलाया और उनके कहे अनुसार पौधों में पानी और खाद डालना शुरू किया। पहले तो मोनी को यह काम बहुत उबाऊ लगता था पर जब उसने एक दिन गेंदा, बेला और गुलाब की नन्ही – नन्ही कलिया देखी तो वह ख़ुशी के मारे झूम उठा। उसने बड़े प्यार और दुलार से एक -एक कली को सहलाया। आज उसे पहली बार इन पौधों से सच्चा प्यार हुआ। अब तो वह बड़े चाव से सुबह जल्दी उठता और उन कलिओं को गौर से देखता। देखते ही देखते उसकी मेहनत रंग लाई और चंपा, मोगरे और गेंदे के फूल खूबसूरती से पौधों पर इतराने लगे। मोनी इतना खुश था कि ख़ुशी के मारे उसके पैर जमीन पर ही नहीं पड़ते थे । उसके सारे दोस्त भी उसके इतने सारे रंग बिरंगे सारे फूल देखने आते और खूब सारी फ़ोटो खींचकर ले जाते।

तभी एक दिन उसके स्कूल में “फ्लावर डे” प्रतियोगिता मनाने की घोषणा हुई। जिसमें बच्चो को अपने आप लगाये गए फूलों वाले पौधों को लाना था। मोनी ने यह सुनकर अपना नाम भी प्रतियोगिता में लिखवा दिया। मोनी ने बड़ी मेहनत से रंग-बिरंगे स्टोन लगाकर गमलों को बड़ी ही खूबसूरती से सजाया। इन्द्रधनुषी रंगों वाली प्लास्टिक की तितलियाँ लाकर फूलों पर बैठाई जो दूर से बिलकुल असली तितलियाँ लग रही थी। और फ्लावर डे के दिन पापा की गाड़ी में सारे गमले बड़ी ही सावधानी से रखकर स्कूल पहुँच गया। वहाँ पर बहुत सारे बच्चों के गमले पहले से ही रखे हुए थे। थोड़ी ही देर बाद प्रिंसिपल सर और सारे टीचर्स एक के बाद एक सभी छात्रों के पौधे चेक करने लगे। वे साथ साथ बच्चों से उन पौधों के बारे में पूछते भी जा रहे थे। कई छात्र ठीक से जवाब भी नहीं दे पा रहे थे क्योंकि प्रतियोगिता जीतने के चक्कर में उन्होंने बाज़ार से गमले खरीद लिए थे इसलिए उन्हें फूलों की देख रेख के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था। पर जब मोनी की बारी आई तो शेरसिंह जो कि प्रिंसिपल थे, बहुत खुश हो गए। उन के साथ साथ सभी टीचर्स की आँखों में प्रशंसा के भाव साफ़ दिखाई दिए। इतने सुन्दर फूल उन्होंने और किसी भी गमले में नहीं देखे थे।

शेरसिंह ने मोनी से पौधों की देखभाल के बारे में कई सवाल पूछे जिन्हें उसने बड़े ही प्रसन्नता और उत्साह से बताया। जब उसने बताया कि किस तरह से उसने पहली बार पौधों पर कलियाँ देखी और फिर कब वो फूल बनी तो सब उसकी मासूमीयत पर हँस पड़े।

थोड़ी ही देर बाद शेरसिंह स्टेज पर पहुँचे और माइक पर बोले – “आज मैं सभी बच्चों का पेड़ और पौधों के लिए प्रेम देखकर बहुत खुश हूँ। हम सभी को यह बात समझनी चाहिए कि पेड़ और पौधों के नहीं रहने से पर्यावरण दूषित हो जाएगा। जब तक पृथ्वी पर पेड़ और पौधे हैं तभी तक हम लोगों का अस्तित्व हैं। ये सभी हवा और पानी का संचालन करने वाले जीवित यंत्र हैं। पर हमारे बच्चे यह बात समझते हैं इसलिए मुझे उन पर गर्व हैं। पर आज का प्रथम पुरस्कार मोनी को दिया जाता हैं क्योंकि उसने अपने पौधों को अपना दोस्त मानकर उनकी देखभाल की और उनसे उसे सच में बहुत प्यार हैं।

यह सुनकर मोनी ने अपने पापा की ओर देखा जो ख़ुशी के मारे अपने आँसूं पोंछ रहे थे। मोनी की आँखें भी नम हो गई। तालियों की गडगडाहट के बीच जब वह मंच पर जा रहा था तो उसने निश्चय किया कि घर लौटकर वह जम्बो दादा के पैर छूकर पिछले साल के पौधों को नुकसान पहुँचाने के लिए माफ़ी माँगेगा और अब से हर दोस्त के जन्मदिन पर उसे ढेर सारे फूलों वाले पौधे गिफ्ट में देगा ताकि सब बच्चे उस की तरह सच्चे दिल से पेड़ पौधों का महत्व समझे और उनसे प्यार करना सीखे। लौटते समय पापा ने मुस्कुरा क़र पूछा – “तो इस बार 1 अप्रैल को क्या करने का इरादा हैं”?

मोनी हँसते हुए बोला -“पापा अब तो इस दिन मैं हमेशा ढेर सारे पौधे लगाया करूँगा”।

और दोनों जोरों से खिलखिलाकर हँस दिए।

~ डॉ. मंजरी शुक्ला

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