Devshayani Ekadashi Vrat, Date & Significance

Devshayani Ekadashi Vrat, Date & Significance

Devshayani Ekadashi is also known by the name Ashadh Shukla Paksha Ekadashi, Ashadi Ekadashi, Hari Shayani Ekadashi, Maha-Ekadashi and Prathama Ekadashi. Chaturmas, the holy period of four months when Lord Vishnu goes to sleep usually begins after Devshayani Ekadashi.

Devshayani Ekadashi Dates:

  • 2023: 29th June, 2023 (Thursday)
  • 2024: 17th July, 2024 (Wednesday)

Devshayani Ekadashi usually begins days after the Puri Rath Yatra. Padarpur Yatra in Maharashtra too concludes on this day. Pilgrims in Maharashtra observe Devshayani Ekadashi with religious fervor. Main celebration occurs in Lord Vithal temple. Lord Vital is considered an incarnation of Lord Krishna.

Initiation of Chaturmas Period

Devshayani Ekadashi occurs on a day prior to the beginning of the Chaturmas period. Chaturmas as the name signifies four months with chatur referring to four and mas to months. The four months that makes up the chaturmas period include the months of Ashadh, Shravan, Bhadarva ad Aaso. During the chaturmas period, the devotees are expected to observe penance, carry on devotional activities and have restriction over their senses. Festivities and celebrations make these chaturmas months lively and active.

Historic Significance of Devshayani Ekadashi

Religious scriptures have it that the significance of Devshayani Ekadashi was first explained by Lord Krishna to Yudhisthira. A King by the name of Mandata had to face drought for three years in a row in his kingdom. This created a precarious condition and the residents of the kingdom had to face hard times. Rivers dried out and man and animal suffered immensely. The King saddened by the happenings in his kingdom embarked on a journey to seek some solution for his people.

The King wished to appease the Rain Gods and met Rishi Angiras to seek a solution. The King was supposed to keep a fast on Devshayani Ekadashi along with the entire population of the kingdom as advised by the rishi. Lord Vishnu blessed the kingdom and heavy rains occurred following the religious devotion shown by the King and his peasants. With rains came prosperity and the people lived happily thereafter.

It became a ritual since then to fast on this auspicious day as this brought prosperity and luck to those who showed religious devotion.

Celebrations

Devotees get divine blessings of Lord Vishnu on Devshayani Ekadashi if they observe the day with utmost devotion. An ardent devotee is able to attain salvation if fasting is done in true earnest. Fasting on Devshayani Ekadashi helps devotees fulfill their wishes and help them attain freedom from any of the sins they have committed in the past.

Fasting on Devshayani Ekadashi also helps one strengthen the self control and become emotionally stable. Many devotees of Vishnu fast for two consecutive days. However, the fasting on the second day is suggested only for those who wish to attain Sanyas (salvation) in the long run. Widows and those looking forward to attaining Moksha too can go for the second day fast in Devshayani Ekadashi.

देवशयनी एकादशी कथा मंत्र और मुहूर्त

29th June, 2023 यानी आज आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है। इस एकादशी को शास्त्रों में देवशयनी एकदाशी कहा गया है क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु चार मास के लिए पाताल लोक में राजा बली के पास चले जाते हैं क्योंकि वामन रूप में भगवान विष्णु ने बली को वरदान दिया था कि वह हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल एकदशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक पाताल लोक में रहेंगे। इस चार महीने को चतुर्मास कहा जाता है। भगवान इन चार महीनों में पाताल में होते हैं इसलिए कहा जाता है कि भगवान इन दिनों शयन में रहते हैं।

देवशयनी एकादशी की कथाएक अन्य कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने हजारों वर्ष तक शंखचूर नामक असुर से युद्ध किया और अंत में शंखचूर मारा गया। युद्ध करते हुए भगवान बहुत थक गए। देवताओं ने भगवान विष्णु की पूजा की और उनसे विश्राम करने के लिए कहा तो भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर 4 महीने के लिए योगनिद्रा में सो गए। इस घटना के बाद से हर वर्ष भगवान विष्णु का शयनोत्सव आषाढ़ शुक्ल एकादशी के दिन मनाया जाता है।

Sheshashayi Vishnu
Sheshashayi Vishnu: Vishnu is called Sheshashayi because he lives on the serpent named Shesha

देवशयनी एकादशी पूजन और मंत्र

शास्त्रों में बताया गया है कि देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए। पूरे साल की 24 एकादशी में आषाढ़ शुक्ल और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत सबसे उत्तम और मोक्षदायी होता है। इस दिन रात के समय भगवान विष्णु के लिए चादर, तकिया और शयन के लिए जरूरी व्यवस्था करके भगवान को सुलाना चाहिए। भगवान को सुलाते समय इस मंत्र को पढ़ना चाहिएः- सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत सुप्तं भवेदिदम्। विबुद्वे च बुध्येत प्रसन्नो मे भवाव्यय।।

भगवान विष्णु के सो जाने पर कोई भी शुभ कर्म जैसे विवाह, मुंडन, जनेऊ, मकान का नींव डालना नहीं करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि भगवान के सो जाने पर इन कर्मों को करने पर ग्रह नक्षत्रों और देवी-देवताओं का आशीर्वाद नहीं मिल पाता है इसलिए यह सभी कर्म शुभ फलित नहीं होते हैं।

Devshayani Ekadashi Date जानिए कब है देवशयनी एकादशी और क्‍यों 4 महीने के लिए सो जाते हैं भगवान विष्‍णु

आषाढ़ मास के शुक्‍ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है और ऐसा माना जाता है कि इस दिन से भगवान विष्‍णु समेत समस्‍त देवतागण 4 महीने के लिए सो जाते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है। इस बार देवशयनी एकादशी 20 जुलाई को पड़ रही है। देवशयनी एकादशी के दिन से सभी मांगलिक कार्यों पर रोक लगा दी जाती है और फिर 4 महीने तक यानी देवप्रबोधिनी एकादशी तक कोई शुभ कार्य नहीं होता है। इन 4 महीनों में शादियां, नामकरण, जनेऊ ग्रह प्रवेश और मुंडन जैसे कारज बंद कर दिए जाते हैं। आज हम आपको बता रहे हैं 4 महीने के विष्‍णुजी के सो जाने के पीछे कौन सी पौराणिक कथा है।

इसलिए सो जाते हैं भगवान विष्‍णु

वामन पुराण में बताया गया है कि एक बार राजा बलि ने अपने बल के प्रयोग से तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया था। यह देखकर इंद्र देवता समेत अन्‍य देवता घबरा गए और श्रीहर‍ि की शरण में आए। देवताओं को परेशान देखकर भगवान विष्‍णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए। राजा बलि ने वामन देवता से कहा कि जो मांगना चाहते हैं मांग लीजिए। इस पर वामन देवता ने भिक्षा में तीन पग भूमि मांग ली। पहले और दूसरे पग में वामन देवता ने धरती और आकाश को नाप लिया। अब तीसरे पग के लिए कुछ नहीं बचा तो राजा बलि ने अपना सिर आगे कर दिया।

भगवान शिव को जल से इतना प्रेम क्‍यों है, सावन के महीने से क्‍या है शिवजी का संबंधयह देखकर भगवान राजा बलि से बेहद प्रसन्‍न हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा। बलि ने उनसे वरदान में पाताल लोक में बस जाने की बात कही। बलि की बात मानकर उनको पाताल में जाना पड़ा। ऐसा करने से समस्‍त देवता और मां लक्ष्‍मी परेशान हो गए। अपने पति विष्‍णुजी को वापस लाने के लिए मां लक्ष्‍मी गरीब स्‍त्री के भेष में राजा बलि के पास गईं और उन्‍हें अपना भाई बनाकर राखी बांध दी और उपहार के रूप में विष्‍णुजी को पाताल लोक से वापस ले जाने का वरदान ले लिया।

मां लक्ष्‍मी के साथ वापस जाते हुए श्रीहरि ने राजा बलि को वर दिया है वह प्रत्‍येक वर्ष आषाढ़ शुक्‍ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक मास की एकादशी तक पाताल में ही निवास करेंगे और इन 4 महीने की अवधि को उनकी योगनिद्रा माना जाएगा। यही वजह है कि दीपावली पर मां लक्ष्‍मी की पूजा भगवान विष्‍णु के बिना ही की जाती है।

इसलिए सावन में शिवजी देखते हैं भगवान विष्‍णु का काम

एक अन्‍य पौराणिक कथा में बताया गया है कि एक बार शंखचूर नामक राक्षस से भगवान विष्‍णु का काफी लंबा युद्ध चला और अंत में असुर मारा गया। युद्ध करते-करते भगवान विष्‍णु थक गए और शिवजी को सृष्टि का काम सौंपकर योगनिद्रा में चले गए। इसलिए इन 4 महीनों में भगवान ही विष्‍णुजी का काम देखते हैं और यही वजह है सावन में शिवजी की विशेष रूप से पूजा की जाती है।

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