Mirabai Devotional Hindi Bhajan मेरो तो गिरधर गोपाल: मीरा की कृष्ण भक्ति

मेरो तो गिरधर गोपाल: मीरा की कृष्ण भक्ति – Mirabai Devotional Bhajan

मेरो तो गिरधर गोपाल: जोधपुर के राठौड़ रतन सिंह की इकलौती पुत्री मीराबाई का मन बचपन से ही कृष्ण-भक्ति में रम गया था। मीराबाई के बालमन से ही कृष्ण की छवि बसी थी इसलिए यौवन से लेकर मृत्यु तक उन्होंने कृष्ण को ही अपना सब कुछ माना। उनका कृष्ण प्रेम बचपन की एक घटना की वजह से अपने चरम पर पहुँचा था। बाल्यकाल में एक दिन उनके पड़ोस में किसी धनवान व्यक्ति के यहां बारात आई थी। सभी स्त्रियां छत पर खड़ी होकर बारात देख रही थीं। मीराबाई भी बारात देखने के लिए छत पर आ गईं। बारात को देख मीरा ने अपनी माता से पूछा कि मेरा दूल्हा कौन है इस पर मीराबाई की माता ने उपहास में ही भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति की तरफ़ इशारा करते हुए कह दिया कि यही तुम्हारे दूल्हा हैं यह बात मीराबाई के बालमन में एक गांठ की तरह समा गई और वे कृष्ण को ही अपना पति समझने लगीं।

मेरो तो गिरधर गोपाल: मीराबाई

मेरो तो गिरधर गोपाल
दूसरा न कोई

जाके सिर मोर मुकुट
मेरो पति सोई

छांड़ि दई कुल की कानि
कहा करि है कोई

सन्तन संग बैठि–बैठि
लोक लाज खोई

अंसुवन जल सींचि–सींचि
प्रेम बेलि बोई

अब तो बेल फैल गई
आणन्द फल होई

भगत देखि राजी हुई
जगत देखि रोई

दासी ‘मीरा’ लाल गिरधर
तारौ अब मोहीं

मेरो तो गिरधर गोपाल
दूसरा न कोई

~ मीरा बाई

भोजराज से विवाह:

विवाह योग्य होने पर मीराबाई के घर वाले उनका विवाह करना चाहते थें, लेकिन मीराबाई श्रीकृष्ण को पति मानने के कारण किसी और से विवाह नहीं करना चाहती थी। मीराबाई की इच्छा के विरुद्ध जाकर उनका विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोजराज के साथ कर दिया गया।

मीरा की कृष्ण भक्ति:

पति की मृत्यु के बाद मीरा की भक्ति दिनों-दिन बढ़ती गई। मीरा मंदिरों में जाकर श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने घंटो तक नाचती रहती थीं। मीराबाई की कृष्ण भक्ति उनके पति के परिवार को अच्छा नहीं लगा। उनके परिजनों ने मीरा को कई बार विष देकर मारने की भी कोशिश की। लेकिन श्रीकृष्ण की कृपा से मीराबाई को कुछ नहीं हुआ।

पति की मृत्यु के बाद क्या हुआ मीरा के साथ:

विवाह के कुछ साल बाद ही मीराबाई के पति भोजराज की मृत्यु हो गई। पति की मौत के बाद मीरा को भी भोजराज के साथ सती करने का प्रयास किया गया, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं हुई। इसके बाद मीरा वृंदावन और फिर द्वारिका चली गई। वहां जाकर मीरा ने कृष्ण भक्ति की और जोगन बनकर साधु-संतों के साथ रहने लगीं।

श्रीकृष्ण में समाकर हुआ मीराबाई का अंत:

कहते हैं कि जीवनभर मीराबाई की भक्ति करने के कारण उनकी मृत्यु श्रीकृष्ण की भक्ति करते हुए ही हुई थीं। मान्यताओं के अनुसार वर्ष 1547 में द्वारका में वो कृष्ण भक्ति करते-करते श्रीकृष्ण की मूर्ति में समां गईं थी।

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