Aajibainchi Shala

दादी माओं का स्कूल A school for grannies

कांता तथा उनकी 29 सहपाठिनें रोज सुबह गुलाबी साड़ी पहन कर, बैग लेकर स्कूल पहुंचती हैं। वहां वे सभी मराठी भाषा के अक्षर, कविताएं व बहुत कुछ पढ़ती हैं और स्लेट पर चॉक की मदद से लिखने का अभ्यास भी करती हैं।

यह सब छोटे के किसी आम स्कूल का एक आम-सा दृश्य प्रतीत होता है परंतु हम अलग तरह के स्कूल की बात कर रहे हैं जहां 60 से 90 वर्ष आयु की बुजुर्ग महिलाओं को साक्षर बनाने का प्रयास हो रहा है।

कांता तथा उनके जैसी अन्य दादियां महाराष्ट्र के थाणे स्थित फंगाने गांव के ‘आजीबाईची शाला‘ नामक इस स्कूल में पढ़ रही हैं। यहां वे प्राथमिक शिक्षा प्राप्त कर रही हैं जिसमें गणित, विभिन्न अक्षर तथा उनके सही उच्चारण का ज्ञान तथा नर्सरी कविताएं भी शामिल हैं।

यह अनूठा स्कूल 45 वर्षीय योगेंद्र बांगर की पहल से शुरू हुआ है जिनका लक्ष्य किसानों के इस गांव की बुजुर्ग महिलाओं को साक्षर बनाना है।

फंगाने जिला परिषद प्राथमिक स्कूल के शिक्षक योगेंद्र ने इस स्कूल को मोतीराम चैरीटेबल ट्रस्ट के सहयोग से शुरू किया है जिसने स्कूल को कक्षाओं के लिए ब्लैकबोर्ड तथा बुजुर्ग महिलाओं को गुलाबी साड़ी वाली वर्दी, स्कूल बैग, स्लेट, चॉक, पैंसिलें आदि जरूरी सामान उपलब्ध करवाया है।

Aajibainchi Shala, Thane, Maharashtra
Aajibainchi Shala, Thane, Maharashtra

स्कूल में पढ़ रहीं कांता अब पढ़ना तथा लिखना सीख चुकी हैं परंतु शुरुआत में वह स्कूल जाने को लेकर झिझक रही थीं। उनका कहना है कि साक्षर होने के बाद वह स्वयं को स्वतंत्र महसूस करती हैं।

वह कहती हैं, “शुरुआत में स्कूल जाने की बात पर मुझे झिझक और शर्म आ रही थी लेकिन जब मैंने सुना कि मेरी जैसी और मुझसे भी ज्यादा उम्र वाली महिलाएं स्कूल में दाखिला ले रही हैं तो मैंने भी शाला में नाम लिखवाने का फैसला किया। अब मैं अपनी भाषा में पढ़-लिख सकती हूं।”

उनके अनुसार, “मुझे शिक्षा के महत्व का पता चल गया है। साक्षरता आपको स्वाभिमान देती है। पहले बैंक के दस्तावेजों पर मुझे अंगूठा लगाना पड़ता था, अब मैं अपने हस्ताक्षर करती हूं और मुझे किसी की मदद की जरूरत भी नहीं पड़ती।”

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