राम नाम उर मैं गहिओ जा कै सम नहीं कोई।
जिह सिमरत संकट मिटै दरसु तुम्हारे होई।।
जिनके सुंदर नाम को ह्रदय में बसा लेने मात्र से सारे काम पूर्ण हो जाते हैं। जिनके समान कोई दूजा नाम नहीं है। जिनके स्मरण मात्र से सारे संकट मिट जाते हैं। ऐसे प्रभु श्रीराम को मैं कोटि-कोटि प्रणाम करता हूं।
रामनवमी का अध्ययन
कलयुग में न तो योग, न यज्ञ और न ज्ञान का महत्व है। एक मात्र राम का गुणगान ही जीवों का उद्धार है। संतों का कहना है कि प्रभु श्रीराम की भक्ति में कपट, दिखावा नहीं आंतरिक भक्ति ही आवश्यक है। गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं – ज्ञान और वैराग्य प्रभु को पाने का मार्ग नहीं है बल्कि प्रेम भक्ति से सारे मैल धूल जाते हैं। प्रेम भक्ति से ही श्रीराम मिल जाते हैं।
छूटहि मलहि मलहि के धोएं।
धृत कि पाव कोई बारि बिलोएं।
प्रेम भक्ति जल बिनु रघुराई।
अभि अंतर मैल कबहुं न जाई।।
अर्थात – मैल को धोने से क्या मैल छूट सकता है। जल को मथने से क्या किसी को घी मिल सकता है। कभी नहीं। इसी प्रकार प्रेम-भक्ति रूपी निर्मल जल के बिना अंदर का मैल कभी नहीं छूट सकता। प्रभु की भक्ति के बिना जीवन नीरस है अर्थात् रसहीन है। प्रभु भक्ति का स्वाद ऐसा स्वाद है जिसने इस स्वाद को चख लिया, उसको दुनिया के सारे स्वाद फीके लगेंगे।
भक्ति जीवन में उतनी ही महत्वपूर्ण है, जितना स्वादिष्ट भोजन में नमक।
भगति हीन गुण सब सुख ऐसे।
लवन बिना बहु व्यंजन जैसे।।
अर्थात – जिस तरह नमक के बिना उत्तम से उत्तम व्यंजन स्वादहीन है, उसी तरह प्रभु के चरणों की भक्ति के बिना जीवन का सुख, समृद्धि सभी फीके है।
रामनवमी के दिन क्या करें:
1. प्रभु से भक्ति करते हुए मांगे –
नाथ एक वर मांगऊं राम कृपा करि देहु।
जन्म-जन्म प्रभु पद कमल कबहुं घटै जनि नेहु।।
हे प्रभु राम! मैं आपसे केवल एक ही वर मांगता हूं, इसे देने की कृपा करें। प्रभु आपके चरण कमलों में मेरा प्रेम जन्म-जन्मांतर में कभी न घटे।।
2. प्रभु से अनुपम प्रेम भक्ति मांगे –
परमानंद कृपानयन मन परिपूरन काम।
प्रेम भगति अनपायनी देहु हमहि श्रीराम।।
हे प्रभु श्रीराम! आप हमें अपनी अत्यंत पावन और तीनों प्रकार के तापों अथवा जन्म-मरण के क्लेशों का नाश करने वाली अनुपम प्रेम भक्ति का वरदान दीजिए।
3. प्रभु से शरण में लेने की प्रार्थना कीजिए –
प्रभु मेरे मन में आप निवास करें। आप मेरे आंतरिक मैल को स्वच्छ करके उसमें भक्ति का समावेश करें। हे दीनानाथ, मैं आपकी शरण में हूं। मुझ शरणागत की रक्षा करें। इस प्रकार निष्कपट भक्ति करने से प्रभु प्रसन्न होकर हर मनोरथ पूर्ण करेंगे। प्रभु की दया और रक्षा के भरोसे सच्चा मनुष्य संसार में सदा निर्भय और निर्लिप्त बना रहता है। प्रभु अपनी शरण में आए जीवों की रक्षा स्वयं करते हैं। प्रभु कहते है कि –
मम पन सरणागत भयहारी।।
अर्थात – शरणागत के भय को दूर करना मेरा प्रण है। वे फिर कहते हैं-
जो सभीत आवा सरनाई। रखिहऊं ताहि प्राण की नाई।।
अर्थात – जो भयभीत होकर मेरी शरण में आया है, तो मैं उसे प्राणों की तरह संभाल कर रखूंगा।
रामनवमी पर यह दृढ़निश्चय करें कि अपने मन और मार्ग को श्रीराम की भक्ति में लगा देंगे।