गणेश जन्म: हिंदी पौराणिक कथा

गणेश जन्म: हिंदी पौराणिक कथा – जानिए कैसा हुआ गणेशजी का जन्म

गणेश जन्म: हिंदी पौराणिक कथा – Lord Ganesha is one of the most widely worshiped deities in the Hindu Patheon. Ganesha is widely revered as the Remover of Obstacles and more generally as Lord of Beginnings and Lord of Obstacles (Vighnesh (विघ्नेश, विघ्नेश्वर)), patron of arts and sciences, and the deva of intellect and wisdom.

Ganesha has been represented with the head of an elephant since the early stages of his appearance in Indian art. There are several stories of how Lord Ganesha acquired the elephant head. However, the most popular story goes like this:

गणेश जन्म: हिंदी पौराणिक कथा

एक बार भगवती पार्वती स्नान कर रही थीं। उसी समय भगवन शिव वहाँ पहुँच गये। पार्वती जी उन्हें देखकर लजा गयीं। अपनी प्रिय सखी जया – विजया के कहने पर उन्होनें अपने शरीर के मैल से एक पुरुष का निर्माण किया। वह देखने में परम सुन्दर तथा बल – पराक्रम से सम्पन्न था। पार्वती जी ने उसे नाना प्रकार के आभूषण और आशीर्वाद दिये। उन्होनें उससे कहा – ‘तुम मेरे पुत्र हो। तुम्हारा नाम गणेश है। आज से तुम मेरे द्वारपाल हुए। पुत्र! मेरी आज्ञा के विरुद्ध कोई भी मेरे महल में प्रवेश न करने पाये।

ऐसा कहकर भगवती पार्वती ने गणेश जी के हाथ में एक छड़ी दे दी। महावीर गणेश हाथ में छड़ी लेकर पहरा देने लगे। उधर पार्वती जी सखियों के साथ स्नान करने लगीं। उसी समय भगवान शिव दरवाजे पर आ पहुँचे। पार्वती के प्राणप्रिय पुत्र गणेश से सर्वथा अपरिचित थे और उनकी अभिलाषा अन्त:पुर में प्रवेश करने की थी। गणराज ने उनसे कहा – ‘आप माताजी की आज्ञा के बिना भीतर नहीं जा सकते। माता स्नान कर रही हैं।’

भगवान शिव बोले – ‘मुर्ख! तू मुझे रोक रहा है, तुझे पता नहीं की मैं कौन हूँ। मैं पार्वती का पति साक्षात् शिव हूँ। मेरे ही घर में मुझे रोकने वाला तू कौन है?’ मातृभक्त वीर बालक गणेश ने कहा – ‘आप कोई भी हों, किंतु इस समय मेरी माता की आज्ञा के बिना भीतर नहीं जा सकते।’ ऐसा कहकर गणेश जी ने अपनी छड़ी अड़ा दी।

लीलाधारी भगवान शिव ने अपने गणों को आज्ञा दी – ‘पता करो, यह कौन है और मेरा मार्ग क्यों रोक रहा है?’ शिव गणों ने गणेश से कहा – ‘तुम कौन हो? कहाँ से आये हो? यदि तुम अपने प्राणों की रक्षा चाहते हो तो शीघ्र ही यहाँ से चले जाओ।’

गणेश जी बोले – ‘मैं माता पार्वती का पुत्र हूँ। माता ने मुझे किसी को भी भीतर प्रवेश न करने देने की आज्ञा दी है। ‘शिव गणों ने लौटकर भगवन शिव से बताया कि बालक माता पार्वती का पुत्र है। वह अपने स्थान से नहीं हट रहा है। भगवान शिव ने अपने गणों को डाँटते हुए कहा – मुर्ख! तुम लोग एक बालक के सामने विवश हो गये! जाओ, जैसे भी हो – उसे शीघ्र दरवाजे से हटा दो!’

महेश्वर शिव का आदेश शिरोधार्य कर उनके गण अपने-अपने अस्त्र-शस्त्रों से सज्जित होकर पार्वती नन्दन गणेश को प्रभूत करने चले।

भयंकर युद्ध शुरू हो गया। शिवा-पुत्र गणेश के आगे शिव-गणों की एक न चली। शक्ति-पुत्र के प्रहार से व्याकुल होकर सब-के-सब प्राण बचाकर भाग चले। तत्पश्चात समस्त देवता भी भगवान शिव की ओर से युद्ध करने आये, परंतु वे भी वीरवर गणेश के आगे टिक न सके।

तारकासुर का संहार करने वाले कुमार कार्तिकेय के भी अस्त्र-शस्त्र निष्फल हो गये। स्वयं भगवान शिव का त्रिशूल और पिनाक भी मातृभक्त गणेश के सम्मुख बेकार हो गया। फिर भगवान विष्णु और गणेश का भयंकर युद्ध प्रारंभ हो गया। पार्वती नन्दन को युद्ध में संलग्र देख महेश्वर शिव ने अपना तीक्ष्ण शूल उनपर फेंका। शूल के प्रहार से गणेश का मस्तक कटकर दूर जा गिरा।

यह समाचार सुनकर पार्वती जी शोक से व्याकुल हो गयीं। कुपित होकर उनहोंने अनन्त शक्तियों को पैदा किया। शक्तियों ने उनकी आज्ञा से सम्पूर्ण सृष्टी का संहार करना शुरू कर दिया। देवता और ऋषिगण भय से थर्रा उठे। व्याकुल होकर उन लोगों ने पार्वती जी की स्तुति की। भगवती पार्वती ने कहा – ‘यह प्रलय तभी बंद होगा, जब मेरा पुत्र जीवित हो जाय और देवताओं में सर्वश्रेष्ठ  मान लिया जाय।’ भगवन शिव के आदेश से उत्तर दिशा से हाथी का सिर काटकर लाया गया और उसे गणेश जी के मस्तक के स्थान पर जोड़ दिया गया। तभी से गणेश जी देवताओं में सर्वश्रेष्ट और सर्वपूज्य बन गये।

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