चूहों की दिवाली: चतुर चूहों की चटपटी कहानी

चूहों की दिवाली: चतुर चूहों की चटपटी कहानी

चूहों की दिवाली: जब से चूहों को पता चला था कि दिवाली आने वाली है तो उनमें कानाफूसी शुरू हो गई थी। सबने मिलकर एक शाम को एक मीटिंग करने का निश्चय किया।

छोटा चूहा, मोटा चूहा, लम्बा चूहा, नाटा चूहा, कोई भी नहीं छूटा… सब भागते हुए मीटिंग अटेंड करने जा पहुँचे थे।

मीटिंग की राय देने वाले नाटू चूहे की तो ख़ुशी देखते ही बन रही थी। वह घूम घूम कर इसका श्रेय लेने की कोशिश कर रहा था पर सभी दिवाली के बारें में बात करते नज़र आ रहे थे। आख़िर थकहार कर नाटू एक कोने में बैठ गया।

तभी चीखू चूहे को बोलने के लिए बुलाया गया। चीखू अपना नाम सुनकर इतनी तेज दौड़ा कि दो चार गुलाटी खाते हुए सबसे आगे जा पहुँचा।

चीखू की आवाज़ इतनी तेज थी कि बिल्लियों को पता चल जाता था कि चूहें कहाँ पर है, इसलिए सर्व सम्मति से ये निर्णय लिया गया था कि बेफ़ालतू में चीखू एक शब्द भी नहीं बोलेगा।

खैर चीखू ने अपने गले पर हाथ फेरते हुए कहा – “हम सब जानते है कि बिल्लियाँ हर साल हमारे पटाखें छीन कर ले जाती है और हमें चिढ़ा चिढ़ाकर हमारे ही सामने फोड़ती रहती है और हम कुछ नहीं कर पाते”।

चूहों की दिवाली: मंजरी शुक्ला जी की बाल-कहानी

“हम भला क्या कर सकते है”? पिद्दू चूहा बोला।

“पर कोई तो रास्ता निकालना ही पड़ेगा। बिल्लियाँ इतनी शैतान है कि हमें दिये तक जलाने नहीं देती और हमें अगरबत्ती जलाकर बैठना पड़ता है” रोंदू चूहे ने रोतली आवाज़ में कहा।

आख़िर बहुत देर तक माथा पच्ची करने के बाद बुद्धू चूहे ने एक ऐसा उपाय बताया कि आश्चर्य के मारे सब पलक झपकाना ही भूल गए।

“वाह… वाह… आज से तुम्हारा नाम बुद्धू नहीं बल्कि बुद्धिमान होगा” एक बुजुर्ग चूहे ने बुद्धू को आशीर्वाद देते हुए कहा।

हँसमुख चूहे ने हँसते हुए कहा – “चलो, चलो, हो गई मीटिंग… अब चलकर जल्दी से सारी तैयारियाँ कर ले”।

अगली सुबह जब चीखू ने बिल्लियों के अपने बिल के आगे से निकलते हुए देखा तो अपनी गरजती हुई आवाज़ में कहा -“हम सबने मिलकर ये निर्णय लिया है कि हम अपने पटाखें तुम्हें ख़ुशी ख़ुशी दे देंगे पर तुम हमें वहाँ खड़ी रहने देना”।

बिल्लियों के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई।

सुरीली बिल्ली अपनी महीन आवाज़ में बोली – “पर तुम लोग एक भी पटाखा नहीं फोड़ोगे”।

“नहीं, हम सिर्फ़ वहाँ खड़े होकर देखेंगे, बस तुम हम लोगो को दिवाली की मिठाई खिला देना”।

चीखू की बात सुनकर तो बिल्लियाँ ख़ुशी के मारे उछलने लगी और मुटल्ली बिल्ली हाँफते हुए बोली – “हाँ… पर हमारे साथ कोई चालाकी करने की कोशिश मत करना”।

“नहीं, भला कैसी चालाकी, पहले तुम लोग हमारी वाली बिल्डिंग के सामने आना हम वहाँ पर पटाखे लेकर पहुँच जायँगे उसके बाद तुम जाकर अपने पटाखे फोड़ना और इस साल तो हमने ‘ईको फ्रेंडली’ पटाखे लिए है”।

“हाँ… हाँ… ठीक है, पिछले साल धुँए की वजह से हम सबको भी बहुत दिक्कत हुई थी तो पटाखें तो हम सबने भी ‘इको फ्रेंडली’ ही लिए है”।

सुरीली ने मुस्कुराते हुए कहा और सभी बिल्लियों के साथ हँसते हुए वहाँ से चली गई।

पहली बार ऐसा हो रहा था कि बिल्लियाँ चूहों का गुणगान करते नहीं थक रही थी। हर साल चूहों को पीछे दौड़ने के बाद बड़ी मुश्किल से पटाखें मिलते थे और इस साल तो वे आराम से खूब मस्ती करते हुए पटाखे फोड़ेंगी।

दिवाली की रात को सभी बिल्लियाँ सज धज कर शाम से ही आकर चूहों की बिल्डिंग के सामने बैठ गई थी।

बहुत देर तक रास्ता देखने के बाद जब उन्हें एक भी चूहा नहीं दिखा तो वे समझ गई कि चूहों ने उन्हें बेवकूफ बना दिया।

वे अपना मिठाई का डिब्बा उठाते हुए जाने ही वाली थी कि तब तक चूहे पटाखों के साथ आते दिखे।

बिल्लियाँ अपना सारा गुस्सा पल भर में ही भूल गई और फटाफट पटाखें फोड़ने लगी।

गिल्लू बिल्ली बोली – “फ्री के पटाखें फोड़ने का तो मज़ा ही कुछ और है और वो भी जब सामने वाला खुद लाकर दे”।

हा हा हा… हँसते हुए सभी बिल्लियों ने गिल्लू की बात का समर्थ किया।

उधर चूहे, बिल्लियों की लाई हुई मिठाई खाते हुए रंगबिरंगी आतिशबाजियाँ देखकर बहुत खुश हो रहे थे।

जब सारे पटाखें खत्म हो गए तो सुरीली बोली – “अब चलो, जल्दी से चलकर अपने पटाखें फोड़ते है”।

चूहों से विदा लेकर वे सब उछलती कूदती हुई चली गई।

जब सभी बिल्लियाँ आँखों से ओझल हो गई तो हँसमुख चूहा बोला – “चलो, अब बिल्लियों के पटाखें तो सब फूट गए अब जरा अपने पटाखें भी फोड़ ले”।

“पटाखें तो हम उनके चुपके से ले आये थे और मिठाई तो वे खुद ही आकर दे गई” पतलू चूहा पेट पर हाथ फेरते हुए बोला।

और फ़िर चूहों ने जी भरकर खूब धमा चौकड़ी मानते हुए दिवाली मनाई।

उधर बिल्लियों ने भी फिर किसी भी दिवाली पर चूहों को तंग नहीं किया क्योंकि चूहों से हर दिवाली पर पटाखें छीनने के बाद भी चूहों ने उनके पटाखें ना लेकर उन्हें ही फोड़ने को दे दिए थे।

~ ‘चूहों की दिवाली‘ story by “डॉ. मंजरी शुक्ला

Check Also

Kabuliwala - Rabindranath Tagore Classic English Short Story

Kabuliwala: Bengali short story written by Rabindranath Tagore

Kabuliwala: My five years’ old daughter Mini cannot live without chattering. I really believe that …