बिट्टू की दिवाली: प्रेरणादायक हिंदी बाल-कहानी

बिट्टू की दिवाली: प्रेरणादायक हिंदी बाल-कहानी

बिट्टू की दिवाली: प्रेरणादायक हिंदी बाल-कहानी – बहुत सारे पटाखे, मिठाई और नए नए कपड़े चाहिए मुझे इस दिवाली पर… कहता हुआ नन्हा बिट्टू पैर पटककर माँ के सामने जमीन पर ही लोट गया। उसकी मम्मी ने अपनी हँसी को दबाते हुए कहा – “हाँ – हाँ, सब ले आयेंगे”।

यह सुनकर बिट्टू बड़े ही लाड़ से माँ के गले में हाथ डालता हुआ फुसफुसाया, मानों किसी खजाने का पता बता रहा हो – “पर माँ, किसी भी दोस्त को मैं अपना एक भी लाल वाला मिर्ची बम और चकरी नहीं चलाने दूंगा। अनार को तो अपनी मुट्ठी में छुपाकर रखूँगा”।

और यह कहते हुए बिट्टू ने अपनी नन्ही हथेली फैला दी जो कि अनार से भी छोटी थी।

बिट्टू की दिवाली: डॉ. मंजरी शुक्ला की प्रेरणादायक हिंदी बाल-कहानी

पर यह सुनकर माँ थोड़ा सा परेशान हो गई। बिट्टू के गुस्से का कारण पिछले साल की दिवाली थी जब उसके दोस्तों ने उसकी बड़ी वाली पटाखों की थैली से उसको बिना बताये गुपचुप तरीके से कुछ फुलझड़ी, चकरी और मिर्ची बम निकाल लिए थे। बस वो इसी बात पर पूरे एक साल से मुँह फुलाए बैठा हुआ था। उसकी मम्मी इस बात को कई बार टालने के लिए बोली – “अगर तुम्हारे दोस्त नहीं होते तो तुम भला ढेर सारी मस्ती अकेले थोड़ी ही कर लेते। हम इस साल तुम्हारे लिए फिर से ढेर सारे पटाखे लेकर आयेंगे”।

“और जो फूट गए, उनका क्या? नहीं… नहीं… मुझे तो वही चकरी चाहिए जिसे मोनू ने मेरी थैली से निकाल कर नचाया था”।

उसकी माँ का सर अब गुस्से में चकरी की तरह घूमने लगा था । उन्होंने बिट्टू की ओर घूर कर देखा पर वो तो जैसे अपने पटाखों के सपनों में ही व्यस्त था। उन्हें अपना बचपन याद आ गया जब घर में सभी भाई बहनों के लिए एक ही थैली में थोड़े से पटाखे बाबूजी के पीछे महीने भर पड़ने पर आते थे और सब ख़ुशी के मारे नाच उठते थे। दोस्त भी ना जाने कितने पटाखे ले लेते थे पर किसी के चेहरे पर कोई शिकन नहीं आती थी। ईर्ष्या या बँटवारे जैसे शब्द तो जैसे उन सभी बच्चों के शब्दकोश में थे ही नहीं। उन्होंने सोचा अब वही प्यार और अपनापन वो बिट्टू के मन भी लाकर रहेंगी। डाँटने – फटकारने के बजाय उन्होंने बिट्टू को बिलकुल ही अनोखे अंदाज़ में समझाने का निश्चय किया।

दुसरे दिन सुबह वो बिट्टू से बोली – “मुझे ऑफिस से लौटने में थोड़ी देर हो जायेगी, तुम मोनू के घर बैठ जाना”।

मोनू का नाम सुनते ही बिट्टू को अपनी चकरी और अनार फिर से याद आ गए जो मोनू ने बंटी, गोपू और नीलू के साथ मिलकर उसकी थैली से निकाल लिए थे।

बिट्टू रोने जैसा मुँह बनाता हुआ बोला – “मैं नहीं जाऊँगा उसके घर”।

“ठीक हैं, तो धूप में बाहर बरामदे में बैठे रहना” मम्मी थोड़ी तेज आवाज़ में बोली।

मम्मी को गुस्से में देखकर बिट्टू चुपचाप वहाँ से खिसक लिया।

स्कूल से लौटने पर जब उसने घर में ताला लगा देखा तो वो मम्मी के कहे अनुसार मोनू के घर चला गया। मोनू उसे देखते ही ख़ुशी से उछल पड़ा और अपने साथ लंच करने की जिद करने लगा।

थोड़ी ही देर बाद उसके घर बंटी, गोपू और नीलू भी पहुँच गए। उन सबके हाथों में रंगबिरंगे स्टिकर्स और टॉफियाँ थी जिन्हें देखकर बिट्टू का मन ललचा उठा।

तभी मोनू बोला – “चलो, अब हम सब मिलकर खेलते हैं। मैं अपने और भी खिलौने ले आता हूँ”।

हाँ – हाँ… जल्दी लाओ… आखिर हमारा दोस्त बिट्टू इतने दिनों बाद हमारे साथ खेलने आया हैं। गोपू बिट्टू को गुदगुदी करता हुआ बोला।

बिट्टू जोरो से हँसने लगा। बस फिर क्या था थोड़ी ही देर में सभी दोस्तों ने कमरे में धमा चौकड़ी मचानी शुरू की। पर बिट्टू का पूरा ध्यान उन चमकते हुए चाँद सितारों के स्टिकरों पर था।

नीलू बोल – “अरे बिट्टू, तू इतनी देर से इन्हें देख रहा हैं। तेरा जो मन करे वो ले ले”।

तब तक गोपू ने तो अपने स्टिकरों में से दो सबसे सुन्दर मिकी डोनाल्ड निकालकर उसके हाथ में दे दिए।

बिट्टू ख़ुशी के मारे उनके गले लग गया।

तभी उसकी मम्मी वहाँ आ गई और उसे आवाज़ देने लगी।

बिट्टू उन्हें देखते ही उनकी तरफ़ दौड़ा और बोला – “माँ, तुम सही कह रही थी। मेरे सभी दोस्त बहुत अच्छे हैं और हमने सब कुछ मिलजुल कर खेला”।

माँ ने प्यार से बिट्टू को गोदी में उठा लिया।

फिर वो अपने दोस्तों की तरफ मुँह करके बोला – “मैं इस बार ढेर सारे पटाखे लाऊंगा। हम सब उन्हें मिलकर एक साथ छुड़ाएंगे”।

उसकी इस बात पर सभी दोस्तों के चेहरे ख़ुशी से खिल उठे और माँ जोरो से हंस पड़ी।

और इस बार बिट्टू की दिवाली अपने सभी दोस्तों के साथ बहुत ही धूमधड़ाके से मनी।

~ ‘बिट्टू की दिवाली‘ story by “डॉ. मंजरी शुक्ला

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