इको फ्रेंडली दिवाली: सात साल का चुन्नू सुबह से ही पटाखे खरीदने की जिद कर रहा था।
वह पापा के पास आते हुए बोला – “पटाखे लेने चलो, मेरे सब दोस्त ले आये है”।
“अरे, बेटा, तुम पहले अपना होमवर्क तो खत्म कर लो फ़िर समय नहीं मिलेगा”।
“अभी तो स्कूल खुलने में चार दिन है, आप पहले पटाखे लेने चलो”।
चुन्नू की इको फ्रेंडली दिवाली: मंजरी शुक्ला
हारकर पापा को चुन्नू की बात माननी पड़ी और वह चुन्नू को लेकर बाजार चल पड़े।
बहुत देर तक चलने के बाद चुन्नू ने कहा – “सारी दुकाने तो निकली जा रही है, आप पटाखे क्यों नहीं खरीद रहे”?
“पापा मुस्कुराते हुए बोले – “क्योंकि हम ईको फ्रेंडली पटाखे खरीदेंगे”।
चुन्नू खुश होता हुआ बोला – “हमारी टीचर ने भी कहा था कि हम सबको ईको फ्रेंडली पटाखे ही चलाने चाहिए उससे धुँआँ नहीं फैलता और वे सेफ भी है”।
पापा हँसते हुए बोले – “अरे वाह… चुन्नू तो कितना समझदार हो गया है”।
अपनी तारीफ़ सुनकर चुन्नू मुस्कुरा उठा और बोला – “टीचर ने ये भी कहा है कि हमें सूती कपड़े ही पहनने चाहिए क्योंकि वे जल्दी आग नहीं पकड़ते और हमारे शरीर से चिपकते भी नहीं”।
“अरे वाह… चुन्नू तो सच में बड़ा बुद्धिमान हो गया है”।
“सच पापा!” चुन्नू ने पापा की ओर देखते हुए कहा।
पापा ने मुस्कुराते हुए कहा – “हम एक डिब्बा मिठाई भी ले लेते है”।
“क्यों पापा?” चुन्नू बोला।
“तुम्हारी टीचर के घर जो चलना है” पापा बोले।
“सच! पर हम उनके घर क्यों जाएँगे”?
“क्योंकि हम जिन्हें प्यार करते है, सम्मान देते है, उन्हें दिवाली पर शुभकामनाएँ भी तो देने चाहिए”।
“पर पापा, बुआ को तो आप इतना प्यार करते हो तो उन्हें फोन क्यों करते हो” चुन्नू ने मासूमियत से पूछा।
“बेटा, वो दूसरे शहर में है ना, जो लोग दूर रहते हैं, उन्हें हम फ़ोन पर विश करते है”।
“पर हमारी टीचर तो इसी शहर में है, इसलिए हम उनके घर जाएँगे” चुन्नू ख़ुशी से उछलते हुए बोला।
पापा जोरों से हँस पड़े और चुन्नू का हाथ पकड़े हुए मिठाई की दुकान की ओर चल पड़े।