श्लोक:
पितृन् देवानृषीन् विप्रानतिथींश्च निराश्रयान्।
यो नरः प्रीणयत्यन्नैस्तस्य पुण्यफलं महत्।।
- खाना बनाकर पहले स्वयं न खाकर भगवान को भोग लगाना चाहिए। जिस घर में इस नियम का पालन किया जाता है उस घर में भगवान की कृपा बनी रहती है।
- अतिथि देवो भव: अर्थात घर में आया मेहमान भगवान के समान होता है। घर आए अतिथि को आदर से बैठा कर प्रेमपूर्वक भोजन करवाना चाहिए। ऐसे घर पर भगवान की कृपा से बुरा समय अधिक समय तक नहीं टिकता।
- बेघर अौर असहाय लोगों को घृणा की दृष्टि से न देखकर प्रेम व सम्मान से भोजन करवाना चाहिए। उनके आशीष से व्यक्ति को मान-यश अौर सफलता मिलती है।
- पितरों के नाराज हो जाने से घर में पितृ दोष का साया मंडराने लगता है। जिससे घर-परिवार में आए दिन कोई न कोई मुसीबत आती रहती है इसलिए श्राद्ध पक्ष और अमावस्या के दिन पितरों के निमित्त भोजन अवश्य दें। उनकी कृपा से घर-परिवार खुशहाल होता है।
- धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पंड़ितों व ऋषियों को भोजन करवाने से जहां पुण्य मिलता है वहीं अनजाने में हुए पाप भी मिट जाते हैं इसलिए इनको भोजन करवाने का मौका न गंवाएं।