बृहस्पति (Jupiter) एक ऐसा ग्रह है जो कई प्रकार से उक्त और अनुक्त दोषों का उपशमन करने की क्षमता रखता है। गुरु की धनु और मीन स्वराशि है। स्वराशि में स्थित ग्रह स्वग्रही कहलाता है। स्वग्रही ग्रह अपने पराक्रम के चरमोत्कर्ष पर होता है। मीन और धनु में तुलनात्मक दृष्टि से धनु में विशेष बली होता है। चंद्रमा की राशि कर्क में गुरु उच्च राशि में होता है, तो शनि की राशि मकर में यह नीच राशिस्थ हो जाता है। चंद्रमा की युति भी राजयोग बनाती है।
गुरु की संतान प्राप्ति, संतान सुख, विद्या प्राप्ति और राजनीतिक वर्चस्व में महत्वपूर्ण भूमिका है। कन्या का विवाह तो गुरु की अनुकूलता के बिना हो ही नहीं सकता है। मेष, कर्क, सिंह, वृश्चिक और मीन जन्म लग्र वाले जातकों के लिए गुरु विशेष योग कारक होता है। निम्नलिखित परिस्थिति में जन्म कुंडली में गुरु राजयोग कारक होता है-जन्म कुंडली में बृहस्पति केंद्र (प्रथम, चतुर्थ सप्तम अथवा दशम भाव) में हो तो व्यक्ति उच्च अधिकारी बनता है अथवा जनप्रतिनिधि बनकर शासन में प्रतिभागी होता है।
- जन्म लग्र मेष हो तथा उच्च का सूर्य लग्र में हो तथा नवम भाव में स्थित स्वग्रही गुरु लग्र को देख रहा हो तो ऐसा व्यक्ति राज्यपाल अथवा मुख्यमंत्री बनता है।
- जन्म लग्र मेष हो और उसमें मंगल और गुरु दोनों स्थित हों तो लग्रेश लग्र में तथा गुरु पूर्ण दृष्टि से नवम भाव को देखता है। यह स्थिति व्यक्ति को मंत्री बनने का अवसर प्रदान करती है।
- अकेला बृहस्पति नवम भाव में स्थित होने पर व्यक्ति को मंत्री पद से सुशोभित करता है। इसके लिए नवम भाव में धनु राशि होना आवश्यक शर्त है।
- गुरु, शुक्र और मंगल क्रमश: कर्क, तुला और मेष राशि में हो तो ऐसे जन्म लग्र में उत्पन्न हुआ व्यक्ति प्रशासन में उच्च पद पर आसीन होता है।
- मेष जन्म लग्र हो तथा एकादश भाव में गुरु और चंद्रमा हो तो व्यक्ति शासन में उच्च पद पर शोभित होता है।
- गुरु और चंद्रमा जन्म कुंडली में तृतीय, षष्ठ, दशम, एकादश भावों में से किसी एक में हो तो जातक राजकीय सेवा में उच्च पद पर आरूढ़ होता है।