ज्योतिषशास्त्र के अनुसार धन वैभव और सुख के लिए जन्मकुंडली में मौजूद धनदायक योग महत्वपूर्ण होता हैं। जन्मकुंडली एवं चंद्र कुंडली में विशेष धन योग तब बनते हैं जब लग्न व चंद्र कुंडली में धनेश एकादश भाव में हो व लाभेश दूसरे भाव में स्थित हो अथवा धनेश व लाभेश एक साथ होकर भगेश द्वारा दृष्ट हो तो व्यक्ति धनवान होता है।
वैदिक ज्योतिष के काल पुरुष सिद्धांत अनुसार मूलत द्वितीय भाव पर शुक्र का अधिपत्य होता है तथा एकादश भाव पर शनि का अधिपत्य होता है। अगर शुक्र की द्वितीय या सप्तम भाव में स्थिति हो व शनि सातवें या एकादश भाव में स्थित हो तो व्यक्ति राजा के समान जीवन जीता है। ऐसे योग में साधारण परिवार में जन्म लेकर भी जातक अत्यधिक संपति का मालिक बनता है।
शकुन शास्त्रों में ऐसे कुछ संकेत वर्णित है जो शनि व लक्ष्मी सम्बंधित भाग्योदय को सूचित करते हैं अर्थात शनि के मेहरबान होने को सूचित करते हैं।
- घर में किसी काले सांप का निकलना।
- कौए का घर की छत पर घोंसला बनाना।
- पूजा घर में चींटियों का झुंड जमा हो जाना।
- घर की छत पर पीपल के पौधे का उग जाना।
- मंदिर या गुरूद्वारे के बाहर से जूतों का चोरी हो जाना।
- प्रसूता काली बिल्ली का घर के किसी कोने में बच्चे देना।
- अमावस्या के दिन किसी रिश्तेदार द्वारा उपहार स्वरुप काला छाता मिलना।
- दीपावली या होली पर बड़े भाई-बहन द्वारा उपहार स्वरुप काले कपड़े, काले जूते या गाड़ी मिलना।