पीतल अर्थात ब्रास एक मिश्रित धातु है। पीतल का निर्माण तांबा व जस्ता धातुओं के मिश्रण से बनाया जाता है। पीतल शब्द “पीत” से बना है तथा संस्कृत में ‘पीत’ का अर्थ ‘पीला’ होता है तथा धार्मिक दृष्टि से पीला रंग भागवान विष्णु को संबोधित करता है। सनातन धर्म में पूजा-पाठ व धार्मिक कर्म हेतु पीतल के बर्तन का ही उपयोग किया जाता है। वेदों के खंड आयुर्वेद में पीतल के पात्रों को भगवान धनवंतरि का अतिप्रिय बताया गया है। शास्त्र महाभारत में वर्णित एक वृतांत के अनुसार सूर्यदेव ने द्रौपदी को पीतल का अक्षय पात्र वरदान स्वरुप दिया था जिसकी विशेषता थी कि जब तक द्रोपदी स्वयं उस पात्र से भोजन नहीं कर लेती तब तक द्रौपदी चाहे जितने लोगों को भोजन करा दे खाना घटता नहीं था।
पीतल के पात्रों का महत्व ज्योतिष व धार्मिक शास्त्रों में बताया गया है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सुवर्ण व पीतल की ही भांती पीला रंग देवगुरु बृहस्पति को संबोधित करता है तथा ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार पीतल पर देवगुरु बृहस्पति का अधिपत्य होता है। बृहस्पति ग्रह की शाति हेतु पीतल का उपयोग किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रह शांति व ज्योतिष अनुष्ठानो में दान हेतु भी पीतल के बर्तन दिए जाते हैं। पीतल के बर्तनों का कर्म काड में भी अत्यधिक महत्व है। वैवाहिक कार्य में वेदी पढने हेतु व कन्यादान के समय पीतल का कलश प्रयोग किया जाता है। शिवलिंग पर दूध चढाने हेतु भी पीतल के कलश का उपयोग किया जाता है तथा बगलामुखी देवी के अनुष्ठानो में मात्र पीतल के बर्तन ही प्रयोग लिए जाते हैं।
भारत के कई क्षेत्रों में आज भी सनातन धर्मी जन्म से लेकर मृत्यु के उपरांत तक पीतल के बर्तनों का इस्तेमाल करते हैं। स्थानिक मान्यताओं के अनुसार बालक के जन्म पर नाल छेदन करने के उपरांत पीतल की थाली को लोहे की छूरी से पीटा जाता है। मान्यता है कि इससे पितृगण को सूचित किया जाता है कि आपके कूल में जल और पिंड दान करने वाले वंशज का जन्म हो चूका है। मृत्यु के उपरात अंंत्येष्टि क्रिया के दसवें दिन अस्थी विसर्जन के उपरांत नारायणवली व पीपल पर पितृ जलांजलि मात्र पीतल के कलश से दी जाती है। मृत्यु संस्कार के अंत में बारहवें दिन त्रिपिंडी श्राद्ध व पिंडदान के बाद बारवीं के शुद्धि हवन व गंगा प्रसादी से पहले पीतल के कलश में सोने का टुकड़ा व गंगा जल भरकर पूरे घर को पवित्र किया जाता है।
पीतल के बर्तन घर में रखना शुभ मना जाता है। सेहत की दृष्टि से पीतल के बर्तनों में बना भोजन स्वादिष्ट तुष्टि-पुष्टि प्रदाता होता है तथा इससे आरोग्यता और शरीर को तेज प्राप्त होता है। पीतल का बर्तन जल्दी गर्म होता है जिससे गैस तथा अन्य ऊर्जा की बचत होती है। पीतल का बर्तन दुसरे बर्तन से ज्यादा मजबूत और जल्दी न टूटने वाला धातु है। पीतल के कलश में रखा जल अत्यधिक ऊर्जा प्रदान करने में सहायक होता है। पीतल पीले रंग के होने से हमारी आंखों के लिए टॉनिक का काम करता है। पीतल का उपयोग थाली, कटोरे, गिलास, लोटे, गगरे, हंडे, देवताओं को मूर्तियां व सिंहासन, घटे, अनेक प्रकार के वाद्ययंत्र, ताले, पानी की टोटियां, मकानों में लगने वाले सामान और गरीबों के लिए गहने बनाने में होता है।
ये बर्तन रखेंगे आपकी सेहत का ख्याल और कर देंगे मालामाल
- भाग्यौोदय हेतु पीतल की कटोरी में चना दाल भिगोकर रात भर सिरहाने रखें व सुबह चना दाल पर गुड़ रखकर गाय को खिलाएं।
- अटूट धन प्राप्ति हेतु पूर्णिमा के दिन भगवान श्री कृष्ण पर शुद्ध घी भरा पीतल का कलश चढ़ाकर निर्धन विप्र को दान करें।
- लक्ष्मी की प्राप्ति हेतु “वैभव लक्ष्मी” का पूजन कर पीतल के दिए में शुभ घी का दीपक करें।
- दुर्भाग्य से मुक्ति पाने हेतु पीतल की कटोरी में दही भरकर कटोरी समेत पीपल के नीचे रखें।
- सौभाग्य प्राप्ति हेतु पीतल के कलश में चना दाल भरकर विष्णु मंदिर में चढ़ाएं।
- घर में पीतल के बर्तन में खट्टे पदार्थ कभी न रखें।