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मां वाराही देवी मंदिर, मुकुन्दपुर, गोण्डा जिला, उत्तर प्रदेश

मां वाराही देवी मंदिर, मुकुन्दपुर, गोण्डा जिला, उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश के देवीपाटन मण्डल में गोण्डा जिले की कर्नलगंज क्षेत्र के मुकुन्दपुर गांव में बने ऐतिहासिक मन्दिर में मां वाराही देवी के मंदिर में चल रहे नवरात्र मेले में प्रतीकात्मक नेत्र चढ़ाने के लिए दूर दराज से आए श्रद्धालुओं की दर्शनार्थ भीड़ जुटी है। यहां दर्शन कर भक्तजन मां वाराही की कृपा पाते हैं। वाराह पुराण के मतानुसार जब …

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दो भाई

चुन्नू मुन्नू थे दो भाई, रसगुल्ले पर हुई लड़ाई। चुन्नू बोला, मैं लूंगा, मुन्नू बोला, कभी न दूंगा। झगड़ा सुनकर मम्मी आई, प्यार से एक बात बताई। आधा ले तू चुन्नू बेटा, आधा ले तू मुन्नू बेटा। ऐसा झगड़ा कभी न करना, दोनों मिलकर प्रेम से रहना।

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गुड़िया – महजबीं

मेरी गुड़िया बहुत प्यारी नाम उसका राजकुमारी। पहले थी मैं कितनी अकेली अब यह है मेरी सहेली। करती है मुझसे बातें दिन भर भी हम साथ बिताते। काटते हैं अब दिन कितने अच्छे नहीं थे पहले उतने अच्छे। ∼ महजबीं

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दो चूहे

दो चूहे थे, मोटे-मोटे थे, छोटे-छोटे थे। नाच रहे थे, खेल रहे थे, कूद रहे थे। बिल्ली ने कहा, म्याऊँ (मैं आऊँ)। ना मौसी ना, हमें मार डालोगी। फिर खा जाओगी, हम तो नहीं आएँगे। हम तो भाग जाएँगे।

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ध्यान रखेंगे – दिविक रमेश

मेरी बिल्ली आंछी-आंछी, अरे हो गया उसे जुकाम। जा चूहे ललचा मत जी को, करने दो उसको आराम। दूध नहीं अब चाय चलेगी, थोड़ा हलुवा और दवाई। लग ना जाए आंछी हमको, ध्यान रखेंगे अपना भाई। ∼ डॉ. दिविक रमेश

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हाथी बोला – दिविक रमेश

सूँड उठा कर हाथी बोला बोला क्या तन उसका डोला बोला तो मन मेरा बोला देखो देखो अरे हिंडोला “आओ बच्चो मिलजुल आओ आओ बैठो तुम्हें डुलाऊँ मस्त मस्त चल, मस्त मस्त चल झूम झूम कर तुम्हें घुमाऊँ घूम घूम कर, झूम झूम कर ले जाऊँगा नदी किनारे सूँड भरूँगा पानी से मैं छोडूँगा तुम पर फव्वारे।” ∼ डॉ. दिविक रमेश

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हाथी राजा बहुत भले

हाथी राजा बहुत भले। सूंड हिलाते कहाँ चले ? कान हिलाते कहाँ चले ? मेरे घर भी आओ ना, हलवा पूरी खाओ ना। आओ बैठो कुर्सी पर, कुर्सी बोले चटर मटर।

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हम भी वापस जायेंगे – अभिनव शुक्ला

आबादी से दूर, घने सन्नाटे में, निर्जन वन के पीछे वाली, ऊँची एक पहाड़ी पर, एक सुनहरी सी गौरैया, अपने पंखों को फैलाकर, गुमसुम बैठी सोंच रही थी, कल फिर मैं उड़ जाऊँगी, पार करुँगी इस जंगल को, वहां दूर जो महके जल की, शीतल एक तलैया है, उसका थोड़ा पानी पीकर, पश्चिम को मुड़ जाऊँगी, फिर वापस ना आऊँगी, …

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संत की मज़ार

संत की मज़ार

किसी मज़ार पर एक फकीर रहते थे। सैकड़ों भक्त उस मज़ार पर आकर दान-दक्षिणा चढ़ाते थे। उन भक्तों में एक बंजारा भी था। वह बहुत गरीब था, फिर भी, नियमानुसार आकर माथा टेकता, फकीर की सेवा करता, और फिर अपने काम पर जाता, उसका कपड़े का व्यवसाय था, कपड़ों की भारी पोटली कंधों पर लिए सुबह से लेकर शाम तक …

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बच्चों की रेल

बच्चों की यह रेल है, बड़ा अनोखा खेल है। यह कोयला नहीं खाती है , इसे मिठाई भाती है। यह नहीं छोड़ती धुआं, मुड़ जाती देख कर कुआँ। चलते-चलते जाती रुक, छुक-छुक, छुक-छुक, छुक-छुक, छुक-छुक।

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